आलम ख़ुर्शीद ग़ज़लें 1 याद करते हो मुझे सूरज निकल जाने के बाद चाँद ने ये मुझ से पूछा रात ढल जाने के बाद मैं ज़मीं पर हूँ तो फिर क्यूँ देखता हूँ आसमाँ ये ख़्याल आया मुझे अक्सर फिसल जाने के बाद दोस्तों के साथ चलने में भी ख़तरे हैं हज़ार भूल जाता हूं हमेशा मैं संभल जाने के बाद अब ज़रा सा फ़ासला रख कर जलाता हूँ चराग़ तज्रबा हाथ आया हाथ जल जाने के बाद एक ही मंज़िल पे जाते हैं यहाँ रस्ते तमाम भेद यह मुझ पर खुला रस्ता बदल जाने के बाद वहशते दिल को बियाबाँ से तअल्लुक है अजीब कोई घर लौटा नहीं , घर से निकल जाने के बाद *** 2 हम पंछी हैं जी बहलाने आया करते हैं अक्सर मेरे ख़्वाब मुझे समझाया करते हैं तुम क्यूँ उनकी याद में बैठे रोते रहते हो आने-जाने वाले , आते-जाते रहते हैं वो जुमले जो लब तक आ कर चुप हो जाते हैं दिल के अंदर बरसों शोर मचाया करते हैं चैन से जीना शायद हम को रास नहीं आता शौक़ से हम दुख बाज़ारों से लाते रहते हैं आँखों ने भी सीख लिए अब जीने के दस्तूर भेस बदल कर आँसू हँसते गाते रहते हैं कांट
जयनंदन टेढ़ी उंगली और घी बिल्टूराम बोबोंगा पर पूरे शहर की निगाहें टिक गयी थीं। एक दबा , कुचला , बदसूरत और जंगली आदमी देश का कर्णधार बनने का ख्वाब देख रहा था। झारखंड मुक्ति संघ नामक एक ऐसी पार्टी का लोकसभा टिकट उसने प्राप्त कर लिया था जिसका तीन-तीन राष्ट्रीय पार्टियों , राष्ट्रीय जनता दल , कांग्रेस और सीपीआई से चुनावी तालमेल था। मतलब चार पार्टियों का वह संयुक्त उम्मीदवार बन गया और इस आधार पर ऐसा माना जाने लगा कि उसका जीतना तय है। डॉ. रेशमी मलिक सुनकर ठगी रह गयी। बाप की जगह बेटे-पोते , बीवी-बहू या मुजरिमों-माफियाओं , फिल्म-खेल के चुके हुए सितारों या धन पशुओं के एकाधिकार वाले प्रजातंत्र में एक अदना आदमी को पार्टी का टिकट! उसे स्कूल का वह मंजर याद आ गया। बिल्टू कक्षा में सबसे पिछली बेंच पर बैठा करता था। काला-कलूटा , नाक पकौड़े की तरह फुला हुआ और बेढब। पढ़ाई में सबसे फिसड्डी यानी मेरिट लिस्ट का आखिरी लड़का। कुछ सहपाठी उसे जंगली कहकर मजाक उड़ाते थे। नाम , शक्ल और अक्ल देखकर कोई नहीं कह सकता था कि यह लड़का कभी किसी काम के लायक बन पायेगा या इस लड़के से किसी को प्यार हो सकता है या फिर यह ल