हमको भी लगता था ऐसा / कुछ लिख लेंगे,कुछ पढ़ लेंगे / इस भागती-दौड़ती दुनिया में / हम चार क़दम भी बढ़ लेंगे / अपनी इन जागती आँखों में / सपना जैसा इक सपना था / बेगानों की इस भीड़ में भी / लगता था कोई अपना था/ हमने भी वहम कुछ पाले थे / हमको भी कुछ खुशफहमियाँ थीं / महलों में तसव्वुर के कितनी / ख्वाबीदा-सी शहज़ादियां थीं/ दुनिया तो बहुत आसान-सी थी / क़दमों में रवानी,राहें सहल / सब कुछ अपना-सा लगता था/ सोये लम्हे या जागते पल / वो कमसिनी के कुछ क़िस्से थे/ वो बचपन की कुछ बातें थीं/ वो सादादिली का अफ़साना / वो इश्क़ की नाज़ुक ग़ज़लें थीं/ और वक़्त ने एक लम्हा यकदम / इक ऐसी भीड़ में ला पटका/ नाआशना था हर शख्श जहां / हर शख्श जहां पर तनहा था/ था कौन यहाँ दिल का साथी / एहसास से कैसा रिश्ता था/ बस उनको ही सब मानते थे / जो ज़ाहिर था,जो दिखता था/ अपनी थी ख़्वाबों की दुनिया / अपनी थी ख़लाओं की धरती / अपनी थी जसामत कोई नहीं/ लोहा,सोना,पत्थर ,मिट्टी / फिर भी तो सुकूँ इस बात का है/ सब चलता है,सब चलता है / कातिल हो,ताजिर हो ,शैदा / सब अपनी आग में जलता है/ आंसू हो हंसी ,दुख हो ,सुख हो / सबका...
यह ब्लॉग बस ज़हन में जो आ जाए उसे निकाल बाहर करने के लिए है .कोई 'गंभीर विमर्श ','सार्थक बहस 'के लिए नहीं क्योंकि 'हमको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन ..'