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चंद ही रोज़ की क़िस्मत है ......



किसी ख़ुशबू की तरह आ के बिखर जाती है /
इक  उदासी  मेरे आँगन में बिखर जाती है  /
चंद बेबूझ तमन्नाओं की होती है निशस्त  /
जाने क्या सोचता रहता है ये बूढा-सा दरख़्त /
आस्मां एक वरक़,चाँद की हल्की-सी लकीर /
रात के सीने में पेवस्त धुंए  की   शमशीर /
चंद बदरंग मकां, हाँफते दर और दीवार  /
खिड़कियाँ परदों से उलझी हुईं ,कमरे बेज़ार /
दूर से आती  हुई  रिक्शे  की बेकल घंटी   /
और शराबी की वही गालियाँ कुछ फाहश-सी /
जाने से बिजली के हर ओर अन्धेरा वो दबीज़ /
याद आ जाना अचानक कोई भूली हुई चीज़ /
आस्मां तारों के ज़रिये से कोई करता सवाल /
और सीने में ज़मीं के कोई गहरा-सा मलाल /
मेरा  बेचैनी  से कमरे  में टहलना  यूं ही    /
अपनी नाअहली पे ग़ुस्से से उबलना यूं ही /
सुब्ह से शाम तक हर शख्श के चेहरे पे सवाल /
नारसा ज़िंदगी  ,हर एक तमन्ना बेहाल /
सारे मंज़र पे अजब एक मुलम्मा चस्पां /
भीड़ में देखिये हर शख्श का चेहरा वीराँ  /
पर चटानों से कोई बूँद फिसलती सी है /
ज़िंदगी जैसे हों  हालात,बहलती ही है /
आलमे-हब्स ,ये हर ओर थकन और घुटन /
टीस सी सीने में है सच है के है सीने में जलन /
ख़्वाब आँखों से किया करता है किस दर्जा गुरेज़ /
धडकनें हुआ करती हैं अक्सर कुछ तेज़ /
मुस्करा देता है जब नींद में ड़ूबा बच्चा /
ऐसे ही हब्स में लगता है के सक्ता टूटा /
तेज़ हो धूप मगर गुलमोहर देता है सुकूँ/
जाग उठता है अचानक कोई सोया-सा जुनूँ/
हाकिमे-शह्र,अभी जश्न मनाते जाओ /
ग़ोश्त इंसान का खाते हो तो खाते जाओ /
ज़िंदा मंज़र से जो खींचा है लगातार लहू /
दिल में आबादी के भर दी है अजब-सी इक hoo/
माना के पस्त हैं ,पजमुर्दा हैं,पसमांदा हैं लोग / 
ख़ूब फ़र्बा हो ,परेशान हैं दरमान्दा हैं लोग /
मौत की ज़हनियत ,तुम अपने ही जी की कर लो /
इनकी आहों से ही तुम अपने ख़जाने भर लो /
ज़िंदगी मौत से हारी है न हारेगी कभी /
सुब्ह को रोक ले, शब ऐसी न भारी है कभी /
चंद ही रोज़ की क़िस्मत है तुम्हारी ख़ातिर/
राज कर पाए न कर पाएंगे हम पर ताजिर /
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