सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

अप्रैल, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं
TO WRITE OR TO EXPRESS Sometimes I am in a fix you write just to write or to express yourself.Though simple it seems but it is an intriguing question.If you say you write just to write I don't put you in a wrong box.When you're playing with letters even without any rules of the play,one way or the other, you are in a process of expressing yourself.Another aspect is you are practising.So many letters and words flyin g on your mental screen and you jumping  to catch them and frolicking then .The exercise in itself is not meaningless.The restlessness in itself is an indicator--an indicator of creativity.Your proximity,your nearness with letters ,your touching them,feeling their breath on your cheeks,invite expressions also.Expressions are like wandering souls hankering to be personified in letters and words. You have plethora of letters and words and copious memories and experiecces in your sub-conscious.Expressions do need them.And expressions become your expression just tra...
मेरे दोस्त रफ़ी हैदर अंजुम की कहानी शाह मोहम्मद विथ फ़ैमिली -- रफ़ी हैदर अंजुम       ज़यादा खुश तो बच्चे ही थे ... ... उस के दोनों बच्चे , चिंटू और मिंटू . और इन बच्चों की खुशियों में माँ - बाप भी मस्रूरो - शादमाँ   थे . दरअस्ल आज शहर के एक मशहूरो - मारूफ घराने से शादी का दावत - नामा आया था . इस तरह के मोकों पर बच्चो का खुश होना   तो फितरी रद्देअमल है लेकिन शाह मोहम्मद कुछ और ही सोच रहा था ... ... ये बड़े लोग भी अजीब सनकी होते हैं . कभी कभी उन से   ऐसी गैरमुतवक्को ( अप्रतियाशित ) हरकतें सरज़द हो जाती हैं के छोटा आदमी हैरानो - परेशान हो जाता है . शहर के खानदानी रईस   सय्यद वजाहत हुसैन की इकलोती साहबजादी की शादी की तकरीब में शिरकत के लिए शाह मोहम्मद जैसे एक बेहद मामूली और अदना   आदमी का फैमिली के साथ मदउ ( आमंत्रित ) किय जाना हैरान - कुन नहीं तो और क्या है ? एक चपरासी की औकात ही क्या होती है...