प्रतिभा वर्मा की एक कविता हथेलियों पर उड़ेले हुए सपने वही बचपन की कहानी चन्दा मामा की चमकती चाँदी की थाली मुन्ने के पुए और मुन्नी की चमकती आँख दूर खड़ी मुन्नी थाली की पेंदी के अँधेरे में कुछ देखती है थाली की चमक के ठीक पीछे अँधेरा है उसमें कुछ सपने मुन्नी ने अनायास ही उगा लिए हैं छोटे-छोटे तारे सपनों के झिलमिल करते हैं मुन्नी तवे पर रोटी फुलाती है रोटी के गुम्बद में सपने घुस आते हैं मुन्नी को छेड़ते हैं गुदगुदाते हैं उसके हाथ को मुनी हँसती है सपने दौड़ेंगे उसकी चिकनी हथेली पर कभी कोई उस अँधेरे से उठाकर हाथों पर उड़ेल जाएगा समय गुज़रता है रोटी आज भी फूलती है फर्क बस इतना है कि सपने अब टिमटिमाते नहीं हथेलियाँ और सपने दोनों वक्त की रगड़ से खुरदरे और धुँधले हो गए हैं न जाने क्यों मुन्नी अब भी अँधेरे से धुँधले सपने उठाकर पोंछती है ***************** —
यह ब्लॉग बस ज़हन में जो आ जाए उसे निकाल बाहर करने के लिए है .कोई 'गंभीर विमर्श ','सार्थक बहस 'के लिए नहीं क्योंकि 'हमको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन ..'