अरुण कमल की कविताएँ अरुण कमल ( चित्र: साभार, कृष्ण समिद्ध ) पड़ता रहे नाँद में सानी फिर कैसा ग़म कैसी बंदी बिजली बत्ती गैस सिलिन्डर और टेंट में नगदी दिन दुपहर हो शाम रात हो खाना सोना यही काम हो घर में सारे सुख के साधन बाहर चाहे पड़ा लाम हो जिसको मरना है वो मरेगा भाग्य में जिसके जैसा कोई खटमल वाइरस कोई कोई बनेगा भैंसा हर सुखाड़ में बाढ़ आग में हर आफ़त में मौजाँ बंदी हो नकबंदी हो नटबंदी हो या मंदी मौजाँ भौजी मौजाँ नन्दी— *** लिख लिख कर क्यों काट रहे हो खोद ताल क्यों पाट रहे हो बंद नगर घर बंद हवाएँ क्यों खिड़की से झाँक रहे हो ऊपर बादल नीचे पानी क्यों मुखड़े को ढाँक रहे हो बाहर निकलो ...
यह ब्लॉग बस ज़हन में जो आ जाए उसे निकाल बाहर करने के लिए है .कोई 'गंभीर विमर्श ','सार्थक बहस 'के लिए नहीं क्योंकि 'हमको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन ..'