नंगानाच
एक पुराने खिलाड़ी ने
समझाया था कि रैगिंग से बोल्डनेस आती है, और बोल्डनेस से सब कुछ। रैग होकर आदमी स्मार्ट हो जाता है।
डर और हिचक की सच्ची मार है रैगिंग। रैगिंग से रैगिंग करने वाले और कराने वाले
दोनों का फायदा होता है। धीरे-धीरे ही सही, रैगिंग के साथ बोल्डनेस बढ़ती रहती है। असल में
सीनियरों को यही चिंता खाये रहती है कि सामने वाला बोल्ड क्यों नहीं है। पुराने
खिलाड़ी ने आगे समझाया था कि अगर गाली-गलौज, डाँट-डपट से बचना है तो ऐसा दिखाओ कि सीनियर मग्घा
न समझे। रिस्पेक्ट पूरी करो, पर आँखों में आँखें डालकर बात करो। आवाज ऐसी रखो कि पुराने
मरीज न लगो। गाली खाने के बाद भी मुस्कुराते रहो। कपड़े सही पहनो। टिपटॉप रहो। पीछे
वाली जेब में कंघी रखो। सीनियर समझेंगे लड़का मँजा-मँजाया है, रैगिंग की खास जरूरत नहीं। फिर जहाँ और सब साथी
रात दिन इंट्रोडक्शन देते फिरेंगे, सीनियरों के सामने नजरें नीची किये खौफजदा खड़े रहेंगे या
उनकी फरमाइश पर अधनंगे होकर डांस करेंगे, आप मौज करो।
पर विश्वास मानिये, जब नुस्खा आजमाने का समय आया तो बंदे की
सिट्टी-पिट्टी गुम। हम बोल्ड बनना चाहे पर उन्होंने शुरूआती असर डालने ही नहीं
दिया। रिक्शेवाले के सामने ही ऐसी गत बनाये कि बेचारा बिना पैसा लिये भागा। आँख
तीसरी बटन पर फिक्स करके दोनों हाथों को समानांतर सीधे फैलाकर और घुटनों को तीस
डिगरी मोड़कर अधखड़ा रहने के लिए पुलिसिया आदेश मिला। पहले तो कुछ समझ न आया, लेकिन बगल में ही एक गुर्गा पहले से ही उसी दशा
में था। उसकी कंधी पीछे वाली पॉकेट से गिरने को थी। चुपचाप मैंने उसी की नकल की।
देखते-देखते तीन और रंगरूट लाइन में अपने आपको जोकर बनाये अधखड़े हो गये। एक ने
झुकने में कंजूसी क्या की अपनी शामत बुला ली। पूरी पी.टी. हो गयी उसकी । देखते
ही-देखते सीनियरों का एक फुलफ्लेजेड गैंग इकट्ठा हो गया। उन सभी का मन लंच टाइम के
बाद अठखेलियाँ करने को ललचा रहा था। किसी ने हमारी ठुड्डियों को छुआ, किसी ने गाल सहलाये, किसी ने बालों की लंबाई ली, किसी ने कंघी ले ली। फिर कहा गया कि दौड़ो.... एक
पैर पर। जिसने दोनों पैरों का इस्तेमाल किया उसे घंटों बैठना नसीब न होगा। फिर
जाते समय हमें आपस में सुबह-शाम मिलने पर एक दूसरे का सलाम करने का तरीका भी
बताया-दोनों हाथ उपर उठाकर हथेली से हथेली मिला दो और सींपो-सींपो करते हुए कम से
कम सात बार कूदो।
इसके बाद रैगिंग का
एक ऐसा अंतहीन सिलसिला शुरू हुआ कि फ्रेशर और सीनियर शब्दों से भय खाने लगे।
लगातार छः महीने तक सुबह, दोपहर, शाम जब जिसके दिल में आया रैगिंग करने लगा। हॉस्टल के अपने
कानून-कायदे थे, अपनी परंपराएँ और
अपने अलग रीति-रिवाज थे- जिनका खुलासा करना उस शपथ का उल्लंघन होगा जो हमें
बार-बार दिलाई गयी थी कि बाहर कभी कुछ न खोलें-जिनको न मानने पर ऐसे कल्पनाशील और
पेंचीदा दण्ड दिये जाते थे कि घर भाग जाने का मन करता।
हर हाॅस्टल का
अपना-अपना हॉस्टल गीत, हॉस्टल प्रार्थना, हॉस्टल भजन होता है जिन्हें जब सीनियर बंधु लय, ताल सुर के साथ कोरस में गाते हैं तो लगता है
कानों में पिघला हुआ शीशा उँड़ेल दिया गया हो। इनमें बहुत से यूनिवर्सिटी टॉपर भी
होते हैं या आई. ए. एस. आई. पी. एस. में सेलेक्ट हो चुके होते हैं।
पर सबसे खतरनाक, रूलाऊ, हड़काऊ और तिरस्कारपूर्ण रैगिंग अगर कोई करता है तो वे हैं
सेकेण्ड ईयर सीनियर्स। रैगिंग के मामले में उनका उत्साह, ऊर्जा और उनकी ढिठाई बेजोड़ होती है। उनके अपने
घाव अभी हरे होते हैं, और वे निरीह
फ्रेशरों से ऐसे पेश आते हैं जैसे बदला ले रहे हों। संक्षेप में कहें तो इनकी
रैगिंग में शुद्ध रूप से टेरर होता है। अगर कभी किसी फ्रेशर ने हॉस्टल की छत से
कूदकर या पंखे से लटककर आत्महत्या की है तो इन्हीं सेकेण्ड ईयर सीनियरों के आतंक
और अश्लीलता से बचने के लिए।
ऐसा नहीं कि सेकेण्ड
ईयर सीनियरों से ऊपर वाले सीनियर कुछ खास नरम हों- असल में सब एक ही थैली के चट्टे
बट्टे होते हैं। पर कुछ सीनियर ऐसे भी होते हैं- और ऐसे सीनियर कमोबेश हर समय में
हर छात्रावास में रहे हैं- जो रैगिंग का खुलकर विरोध करते हैं, रैगिंग को एक अभिशाप मानते है और इसके विरूद्ध
लड़ते हैं। ऐसे सीनियरों की संख्या कम होती है पर ये अपने स्तर से रैगिंग की
विभीषिका और इसकी वलगरिटी को कम करते रहे हैं। फ्रेशरों को ऐसे ही सीनियरों की
तलाश होती है। ये लोग जिन फ्रेशरों को रैगिंग से बचा ले जाते हैं वे इनके भक्त हो
जाते हैं, यों कहें कि कुछ
महीनों के लिए इनके दास बन जाते हैं। वे इनके लिए हीटर पर चाय बनाते हैं, उनकी साइकिल साफ करते हैं, उनको अपना कोलगेट पेस्ट देते हैं, उनका नोट्स लिखते हैं, उनको पैसा उधार देते हैं और भूल जाते हैं।
कुछ ऐसे भी सीनियर
होते हैं जो रैगिंग के खिलाफ लड़ते हैं, जूनियरों को बचाते हैं पर बदले में कोई सेवा नहीं लेते हैं।
ये निःस्वार्थ भाव से अपना धर्म निभाते हैं। ऐसे सीनियर जूनियरों का रिस्पेक्ट
पाते हैं। ऐसे सीनियरों की छवि मस्तिष्क में बस जाती है। उन्हें कभी भूला नहीं जा
सकता। गाहे-बगाहे याद आते रहते हैं। ऐसे सीनियर लाखों में एक होते हैं। बादलों के
बीच सूरज की एक किरन जैसे। हॉस्टल की बात चले तो इनके किस्से, इनकी सह्नदयता लोग अपने बच्चों और पोते-पोतियों
तक को सुनाते हैं। अजय सर ऐसे ही एक सीनियर थे। अजय सर!
मैं और सुरेन्दर
पनिशमेण्ट में थे। रात की रैगिंग ऐसे भी कमरतोड़ होती है। सीनियर्स फ्री माइण्ड
होकर रैग करते हैं। निर्लज्जता करने से जरा भी हिचकिचाये क्या कि भेज दिया लॉन
नापने-माचिस की डिबिया से। कितने माचिस लंबा और कितने माचिस चौड़ा लॉन है, नापिये और फिर दोनों को गुणा करके लॉन का माचिस
क्षेत्रफल निकालिये। समय आधा घण्टे। और लॉन भी कोई छोटा नहीं। उस पर तुर्रा ये कि
एक भी माचिस कम-ज्यादा हुई कि फिर से भिड़िये। पूर्वजों ने माचिस का नापी रिकॉर्ड
रख छोड़ा था और घाघ सीनियरों को एक-दो माचिस की भी ढिलाई पता चल जाती थी। अगर आपने
अधिक चतुराई दिखाई और किसी दरियादिल सीनियर से क्षेत्रफल पता करके बिना खेत काटे
ही फसल लेकर पहुँच गये तो चतुराई दिखाने से बाज आइये। तुरंत दूसरे साइज की नयी
माचिस पानवाले के यहाँ से मँगवाकर आपको थमा दी जायेगी। और एक बंदा कुर्सी निकालकर
तकवाही करने बैठ जायेगा। अब नापिये। कीजिए बँधुआ मजदूरी।
मैं और सुरेन्दर आधी
से अधिक बेगारी कर चुके थे कि अजय सर आते हुए दिखाई पड़े । वह धीरे-धीरे हमारी ही
ओर आ रहे थे, फुर्सत से कश खींचते
हुए।
-फ्रेशर्स?- उन्होंने बड़े मानवीय
लहजे में प्रश्न किया। यद्यपि उन्होंने एक ही शब्द बोला था, उनका अंगे्रजी का उच्चारण अच्छा लगा। स्वर गंभीर
एवं सधा हुआ था।
हम लोग रूक गये, फिर खड़े हो गये। विनम्रता से सिर हिलाकर हामी भर
दिया।
-किसने कहा यह सब
करने के लिए? उन्होंने कुछ कड़ाई
से पूछा। सुरेन्दर ने कुछ कहना चाहा लेकिन अटक गया।
-जोशी! उन्होंने खुद
अनुमान लगाते हुए एक नाम लिया। स्वर और भारी हो गया था।
-यस सर, हमारे मुँह से एक साथ निकला।
-और कौन-कौन था? मेरा मतलब है कि वहाँ दूसरे कौन-कौन से सीनियर्स
हैं? उनकी आवाज में
सीनियरों के लिए तिरस्कार और हम दोनों के लिए हमदर्दी का पुट था।
-सर, जोशी सर के अलावा चार लोग और थे। मैंने डरते हुए
कहा। उम्मीद थी कि अजय सर लॉन नपाई की मुश्किल घड़ी में कुछ और ठण्डक पहुँचाने वाले
शब्द बोलेंगे। अजय सर ने निराश नहीं किया।
-और किसी ने भी उस
सुअर के बच्चे जोशी को यह सब करने से नहीं रोका?
-किसी ने भी नहीं
सर........बल्कि.....।- सुरेन्दर रिरियाया।
-सुनो, मैं इस हॉस्टल का सीनियरमोस्ट इनमेट हूँ। आई एम
लीविंग फॉर न्यु डेलही फॉर माई आई. ए. एस. इण्टरव्यू सून! एनी वे, मैंने जोशी और उन गधों को इस बेहूदा रैगिंग के
लिए मना कर दिया था। इस साल से एकदम नहीं। मुझे क्या मालूम कि......अच्छा फेंको
माचिस तुम लोग.... आओ चलो मेरे साथ...।
अजय सर हम दोनों को
अपने कमरे में ले गये और आराम से बैठ जाने के लिए कहा। पर हम खड़े रहे। हम लोग
सावधानी बरत रहे थे। जोखिम लेना ठीक नहीं था। इन सीनियरों का क्या भरोसा। एक ही
हाँड़ी के नहाये होते हैं सब। गलती करवा के दण्ठ देने में परम सुख मिलता है इन्हें।
आज तक किसी सीनियर के कमरे में कुर्सी या बेड पर बैठे न थे। उन्होंने फिर कहा, पर हिम्मत नहीं पड़ी। वह हँसने लगे-अरे बैठो बैठो
, मैं जोशी नहीं हूँ।
-पर सीनियर तो हैं! सोचते
हुए हम लोग खड़े ही रहे।
फिर वे हमारे कंधे
पर हाथ रखकर खुद ही बैठा दिये।
उनकी सिगरेट खत्म
होने वाली थी। उन्होंने एक लंबा कश खींचा और बची हुई सिगरेट मेरी ओर बढ़ा दिया। मैं
सकपका गया। यह क्या? अब इसका मैं क्या
करुँ? मैं और धुआँ छोड़ती
सिगरेट! अजय सर फिर हँसे। बोले, फेंक दो भाई बाहर। पीने के लिए नहीं कह रहे हैं।
उन्होंने दूसरी
सिगरेट सुलगा ली। माचिस की तीली को हवा में हिलाते हुए बोले-बस यही एक बुरी आदत
है। यह भी सीनियरों की देन है। बस थोड़ा कान्सेन्ट्रेशन के लिए ....... हाँ तुम लोग
बैठो आराम से ..... यहाँ कोई माई का लाल पर नहीं मार सकता है....मैं चाय बनाता
हूँ।
अजय सर का कमरा बहुत
ही व्यवस्थित और अनुशासित था। रैगिंग के लिए आज तक जिन-जिन कमरों में जाने का
सौभाग्य प्राप्त हुआ था उन सबसे एकदम अलग! दीवारें वालपेपरों से सजी हुई थीं।
बीच-बीच में पोस्टर लगे थे, पर एक भी भड़कीले न थे। अधिकतर साहित्यकारों, कम्युनिस्ट विचारकों एवं गजल गायकों के चित्र
थे। जोशी का कमरा तो अर्धनग्न एवं पूर्ण नग्न चित्रों से पटा पड़ा था। इसीलिए सुरेन्दर
का मन वहाँ अधिक लगता था। कमरे के लुक से ही अजय सर के रिफाइण्ड टेस्ट और शराफत का
भान होता था। अपने खादी के कुर्ते, जींस एवं अंग्रेजी और हिंदी पर एक सी अच्छी पकड़ से वे पूरे
इन्टेलेक्चुअल लगते थे। और थे भी।
उन्होंने अपना
वाइसचान्सलर मेडल दिखाया, जो इस बात का प्रमाण था कि वे एक मेधावी छात्र रहे थे। उनके
टेबल पर हिंदी और अंग्रेजी की मोटी-मोटी पुस्तकें करीने से रखी थीं। कई तरह की
पत्रिकाएँ अलग से। उनका पेन स्टैण्ड और टेबललैंप मुझे आज तक याद है। एक दिन पुराना
टाइम्स ऑफ़ इण्डिया बेड पर पड़ा था- जगह-जगह रेड पेन से अण्डरलाइन किया हुआ। पर जिस
चीज ने मुझे चैंका दिया वह थी ‘सरोज-स्मृति‘ की दो पंक्तियाँ जो उनके तकिये के निकट दीवार पर पेंसिल से
उकेरी गयी थीं- दुःख ही जीवन की कथा रही, क्या कहूँ आज जो नहीं कही....। मैंने अजय सर की ओर गौर से
देखा....और फिर उन दो पंक्तियों की ओर ....। कुछ अजीब सा लगा।
चाय तैयार हो चुकी
थी। उन्होंने स्वयं कप धोये और हमें चाय दिया। चाय की चुस्की के साथ वे जगजीत सिंह
का कैसेट बजा रहे थे- धीमें -धीमें। कुछ देर के लिए कहीं खो गये थे अजय सर!....‘दोस्त बन-बन के मिले मुझको मिटाने वाले...‘ लाइन को
बार-बार रिवाइण्ड करके सुन रहे थे। हौले -हौले धुएँ के छल्ले छोड़रहे थे।
मुझे लगा उन्हें कोई दुःख है, कोई पर्सनल ट्रैजेडी है....। वह पंक्ति उनके अंतरंग को छू रही थी। वह
भावविभोर.....आँखें बंद किये टेबुल के कोने पर धीरे-धीरे थपकी लगाते रहे।
फिर जैसे उनकी
तन्द्रा टूटी......उन्होंने जगजीत सिंह और गुलाम अली के कैसेटों का अपना कलेक्शन
दिखाया। बोले, इन दोनों के अलावा
गजल और कोई नहीं गाता। बाकी सब तो गीत गाते हैं। उनके मित्रतापूर्ण व्यवहार से हम
भी खुलने लगे थे। हमने पूछा, सर आप फिल्मी गानों का कैसेट नहीं रखते? उन्होंने कहा-इलाहाबाद में फिल्मों से बचना।
यहाँ फ्री में फिल्म दिखाने वाले गली-गली टहलते हैं। अच्छा टेस्ट डेवलप करो। और यह
फिल्म देखने से नहीं होगा। अच्छा संगीत सुनो। मौका लगे तो नाटक देखने जाओ। थियेटर
में। किताबें पढ़ो। यहाँ आये हो तो कुछ करो.......कुछ सीखो।
फिर उन्होंने अपनी
किताबों का कलेक्शन दिखाया। हिंदी और अंग्रेजी के कई उपन्यास एवं कहानी-संग्रह।
जिन पुस्तकों के बारे में सुना भर था उन्हें आज साक्षात् देख रहे थे। प्रेमचन्द का
गोदान, धर्मवीर भारती का
गुनाहों का देवता, टॉलस्टॉय, गोर्की, चेखव की रचनाएँ, डिकेन्स, हार्डी, नायपॉल, मण्टो, बेदी...गालिब के शे‘र.......सभी थे उनके पास। गॉन विद द विण्ड मेरी
तरफ बढ़ाते हुए बोले-इसे पढ़ो। ऐसी दूसरी किताब नहीं है.....क्या स्टोरी है.....रेट
बटलर और स्कारलेट ओ हारा का क्या कैरेक्टेराइजेशन किया है लेखिका ने! उनकी प्रेमचन्द
और टॉलस्टॉय की स्टाइल पर बेबाक टिप्पणी मुझे आज भी याद है.......उन्होने फिर कहा, पढ़ा करो...पढ़ने से दृष्टिकोण बनता है....जब आप
पढ़ते हैं तो विश्व की महान् आत्माओं से सीधे वार्तालाप करते हैं, उनके संसर्ग में आ जाते हैं। कोर्स की किताबें
ही सब कुछ नहीं हैं।-
मैं स्वीकार करता
हूँ कि किताबों के प्रति मेरी रूचि उसी मीटिंग के बाद हुई। एक की टेबुल पर तीन-तीन
डिक्शनरी मैंने पहली बार देखी थी।
फिर अजय सर ने अपनी
कुछ कविताएँ सुनायीं- प्रेम एवं जीवन के संघर्ष से संबंधित कविताएँ। कविता पढ़ने को
उनका अंदाज इतना मार्मिक था कि लगने लगा उन्होंने बहुत दुःख झेले हैं। फिर कुछ
बहकी-बहकी बातें करने लगे। उन्हें किसी से प्रेम था। पर उसकी शादी हो गयी।
उन्होंने कहा अब जीवन में कभी शादी नहीं करेंगे .....प्रेम बार-बार नहीं होता है।
हमें मना किया कि इन सब चक्करों में न पड़ें। कैरियर बनाने का समय है। बहुत मुश्किल
से उबर पाये थे वह उस पीड़ा से।
मैं बता नहीं सकता
मुझे उनके पास बैठना, उनकी बातें सुनना, उनके दुःख में शरीक होना कितना अच्छा लग रहा था।
मुझे उनसे हमदर्दी होने लगी थी। इतना स्मार्ट, बोल्ड और इण्टेलेक्चुअल दिखने वाला ब्यक्ति भी
अंदर से इतना टूटा हुआ, इतना दुःखी हो सकता है! उन्होंने बताया कि घर से मनीऑर्डर
आना बंद हो गया है। ट्युशन से सारा काम चलता है। दो बार इण्टरव्यू में नहीं हुआ।
इसलिए इस बार क्वालीफाई करने के बाद किसी को बताया ही नहीं। दो सालों से घर नहीं
गये हैं। कुछ बन जायेंगे तभी घर जायेंगे।
अजय सर ने एक सिगरेट
और जला ली थी। सुरेन्दर ने कोने में रखे हीटर पर चाय बनाने की कवायद शुरू कर दी।
आधी सिगरेट रह गयी तो उन्होंने सिगरेट वाला हाथ मेरी ओर किया, कहा-लो......पियो......पियो।-मैं चौंक
गया.....यह क्या ...... फिर से.....। मेरी धड़कन बढ़ गयी। आखिर अजय सर की मंशा क्या
है? थोड़ी ही देर में
दूसरी बार उन्होंने सिगरेट आफर किया था। इस बार तो पीने के लिए साफ-साफ दबाव डाल
रहे थे।
-सर, मैं सिगरेट नहीं
पीता। मैंने मुस्कुराते हुऐ कहा।
-क्यों?
क्यों? ......उनके ‘क्यो‘ पर मैं अचकचा गया। क्या हो गया है अजच सर को उनका सिगरेट
वाला हाथ अभी भी मेरी ओर था।
-मैं समझता हूँ, यह एक खराब आदत है। मेरे खानदान
में कोई सिगरेट नहीं पीता। मैंने सफाई दी।
-बीड़ी मँगाऊ?
- अरे नहीं ....न....मैं कुछ भी नहीं पीता। मुझे
लगा जैसे उन्होंने मुझे गुदगुदी लगा दी हो।
-वाइन?-अजय सर ने पूरी गंभीरता से कहा।
-अरे .....नो सर....नो नो नो सर। मैं अपनी जगह से
एकदम खड़ा हो गया। सुरेन्दर का चेहरा देखने लायक था।
-अच्छा सिगरेट थामो तो....थामो .... पकड़ो
पकड़ो....
उन्होंने सिगरेट मेरी उँगलियों के बीच फँसा दी।
-देखते हैं तुम क्या करते हो इसका। उन्होंने
चुनौती सी दी। सिगरेट एक चैथाई ही बची थी। मैंने एक नजर अजय सर पर डाली...और फिर
एक नजर सिगरेट पर। फिर एक झटके के साथ मैंने उसे कमरे से बाहर फेंक दिया।
अजय सर जैसे उछल
पड़े...उत्तेजित होकर बोले -वेल डन...वेल डन माई ब्वाय, वेल डन! इट वाज ग्रेट! आई लाइक इट! अगर तुम पी
लेते तो मैं तुमसे कभी बात नहीं करता। बल्कि जोशीसे कहकर तुम्हारी रैगिंग करवाता।
असल में मैं तुम्हारा टेस्ट ले रहा था। जानते हो मैंने यही गलती की थी एक सीनियर
के कहने पर, डरकर। और आज तक पछता
रहा हूँ....बस एक फूँक जी का का जंजाल बन गयी ....खैर छोड़ो...कोई भी सीनियर इस तरह
की चीजें आफर करें तो साफ इनकार दो। हाँ ये चाय लो...ठण्डी हो रही है....उधर शेल्फ
में बिस्कुट है निकालो....खाओ....सुरेन्दर को भी दो...सुरेन्दर ने अच्छी चाय बनायी
है....क्यों भाई घर से सीखे हुए हो या जोशी ने सिखा दिया...।
अजय सर हँसने लगे। हम दोनो भी हँस पड़े।
अजय सर ने सॉरी बोलते हुए नयी सिगरेट सुलगा ली।
कहने लगे, मैं हमेशा से रैगिंग
का विरोधी रहा हूँ। पहले की बात और थी। रैगिंग तो अब नये लड़कों को अश्लीलता सिखाने
का साधन मात्र है। फिर अपने आदर्श सीनियरों के कुछ मनोरंजक किस्से उन्होंने
सुनाये। कैसे एक सीनियर रोज रात अपने कमरे से गायब रहते थे और जब विश्वविद्यालय
में टॉप किये तो लोगों ने कहा दाल में कुछ
काला है। बाद में पता चला कि दूसरे हॉस्टल में एक मित्र के साथ तैयारी करते थे।
आजकल जज हैं। एक दूसरे सीनियर जब मेस मैनेजर की निकृष्ट ड्युटी सँभाले तो पिताजी
को टेलीग्राम भेज दिया कि ‘मैनेजर‘ बन गये हैं। अच्छी बचत है। बाद में बैंक में पी.ओ. बन गये।
एक सज्जन पैंतीस पूड़ियाँ खाकर एक फ्री पिक्चर की शर्त जीत गये थे। अजय सर के एक
अन्य सीनियर इकतीस दिसम्बर को कँपकँपाती ठण्ड में रात बारह बजे नंगे होकर लॉन में
स्नान किये थे। और फिर उसी दशा में तालियों के बीच पूरे छात्रावास का तीन चक्कर
लगाये थे। आजकल मुरादाबाद के डी. एम. हैं। एक साहब तो रात में अगर किसी ने दरवाजे
पर दस्तक दिया तो कहते थे आ जाइये, खुला है। और अंदर सब कुछ खोलकर एकदम निर्वस्त्र बैठे रहते
थे। एक दिन उनके पिताजी भी नॉक करके अंदर घुस गये। जनाब आजकल मेरठ के एस.एस.पी.
हैं।
उन्होंने अफसोस जताया कि अब पहले वाली बात नहीं
है। अब पढ़ाई नदारद, खाली नंगई बची है।
लुच्चों-लफंगों का बोलबाला है। अब तो हर सीनियर-जूनियर दिन के उजाले में ही नंगा
नाच करने को उतावला रहता है। जोशी तो कपड़े उतारकर ही पढ़ता है- दिन हो या रात। पढ़ता
क्या है, हर समय अश्लील
चैपाइयाँ लिखता रखता है। और नंबर देखिये तो शर्म आ जाय। थर्टी सेवन परसेंट। ऐसे
लोग आई. ए. एस. आई. पी. एस. कभी नहीं बन सकते।
कुछ देर तक अजय सर सिगरेट का धुआँ छोड़ते बैठे
रहे। फिर अचानक बोले, डिक्शनरी खोलो और
पूछ लो कोई वर्ड। मेरी हिम्मत न हुई। कहीं अजय सर न बता पाये तो नाराज होंगे।
......। सुरेन्दर ने एक कठिन सा शब्द खोजकर उनकी तरफ देखा। उन्होंने हौसला
बढ़ाया-पूछो पूछो। सुरेन्दर ने पूछा और अजय सर ने मीनिंग के साथ सिनोनिम एण्टोनिम
सब बता दिया। फिर वे शांत हो गये। हम लोगों ने अपनी-अपनी पसन्द की एक-एक मैगजीन
उठा ली। उन्होंने कहा ले जाओ, पढ़कर लौटा देना। फिर वे गुनगुनाने लगे। लगा अच्छा गाते
होंगे...तेरी गलियों में न रखेंगे कदम आज के बाद...।
ठीक है तुम लोग जाओ-उन्होंने जैसे जागते हुए
कहा-डरने की कोई बात नहीं है। अगर कोई इण्ट्रोडक्शन के लिए बुलाये तो मेरा नाम ले
लेना। जोशी से कहना मैंने किसी सीनियर के कमरे में जाने से मना किया है। कोई
परेशान करे तो सीधे कमरा नं 131 में आ जाना।
मुझे लगा अजय सर से मिलना कितना अच्छा हुआ। मैं
मन ही मन उस सीनियर को धन्यवाद देने लगा जिसने हमें लॉन नापी के लिए भेजा था, अन्यथा अजय सर हमें कैसे मिलते। मैंने फैसला कर
लिया कि सीनियर होकर मैं भी जितना हो सकेगा भरसक रैगिंग का विरोध करूँगा। फ्रेशर्स
को बचाऊँगा। अजय सर की माफिक। लगभग एक घण्टे की मीटिंग में मुझे बहुत कुछ सीखने को
मिला। किताबों एवं लाइट म्यूजिक के प्रति मेरी रूचि के लिए अगर कोई जिम्मेदार है
तो वह हैं अजय सर।
हम लोग निकलने लगे तो आदत के मुताबिक झुककर शाही
सलाम करना चाहे। उन्होंने मना कर दिया। कहा, बिना वजह न झुका करो। अजय सर खुद बाहर तक छोड़ने
आये। दूर सामने जोशी खड़ा था। घूरते। लगा हमें कच्चा चबा जायेगा। कचर-कचर...।
सुरेन्दर उसकी ओर देखकर मुस्कुराया। जोशी आपे से बाहर हो रहा था लेकिन जैसे ही
उसकी नजर अजय सर पर पड़ी वह तेजी से दूसरी ओर मुड़ गया।
पहली बार लगा कि हम लोग फ्री हैं, आजाद हैं। कहीं किसी का डर नहीं। जोशी का भी
नहीं। हमें अजय सर का वरदहस्त प्राप्त हो गया था। हमारा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता
था।
जब तक मैं अपने कमरे में पहुँचा, अजय सर की एक विशेष छवि मेरे मन में बन चुकी थी।
वे निश्चित ही मेरे रोल मॉडल थे। मैं उन्हीं की तरह बनना चाहता था-मेधावी, रैगिंग-विरोधी और दुःखी।
अपने छोटे से छात्रावासी जीवन में पहली बार मैं
गुनगुना रहा था, बल्कि यों कहें कि
मद्धम-मद्धम स्वर में गा रहा था- मेरे सपनों की रानी कब...। गाता जाता था और सोचता
जाता था कि वह आये और मुझे धोखा देकर किसी और के साथ चली जाय। ताकि मैं अजय सर की
तरह दुःखी हो जाऊँ और अपना दुःख किसी से बाँटे, बिना उसका खुलासा किये, अपने दुःख का आनंद उठाऊँ। पहली बार रैगिंग का
बोझ दिलो-दिमाग से जाता रहा। कम से कम देर रात की बुलाहटों और फजीहतों से निजात तो
मिली। जोशी और उसकी गुण्डा मण्डली मेरे और सुरेन्दर के बारे में सपना देखना भूल
जाय। अजय सर को देखते ही कैसे दुम दबा के भागा था शौचालय की ओर।
......तभी दरवाजे पर दस्तक
हुई।
मुझे पूरा विश्वास था कि बगल वाले के दरवाजे पर नॉक
हो रही है। पर तुरंत ही अपनी भूल का एहसास हो गया। मैंने मजाक में अजय सर के
सीनियर का जुमला दुहरा दिया-खुला है, चले आइये।
सुरेन्दर था। कुछ-कुछ डरा हुआ।
-जोशी बुला रहा है। वह कुण्ठित स्वर में बोला।
-लेकिन क्यों? तुमने अजय सर का नाम नहीं लिया?
-मैंने लिया, दो बार। लेकिन वह सुअर की औलाद कुछ सुनने को
तैयार ही नहीं। कहता है स्मार्टी को बुलाओ। अबे तुमको स्मार्टी कह रहा था ... साला
खखवाया है। सुरेन्दर भय-युक्त हँसी हँसने लगा।
मुझे सुरेन्दर पर क्रोध आ रहा था। उसका मन जोशी
के ही कमरे में लगता है। फोटू देखता रहेगा बस - और कौन-कौन हैं- मैंने खीझते हुए
पूछा।
-अपने बैच के सारे लड़के। सब लाइन में खड़े
हैं...बिना शर्ट के।
हम लोग पहले अजय सर के कमरे की ओर गये। कमरे में
ताला लगा था। सोचा मेस में होंगे। मेस में
जाने की सोच ही रहे थे कि ब्लॉक के दूसरे कोने में खड़ा जोशी भौंका-अबे
स्मार्टी, ओय चिकने, चल इधर, इधर आ। लँगड़ी दौड़ते हुए आना बे...
मैंने उसको घूरा और दोनों पैरों पर चलकर उसके
पास पहुँचा।
-चल अन्दर साले। जोशी गरजा।
-लेकिन सुनिये सर, जोशी सऱ.....एक मिनट ....एक मिनट। अजय सर ने कहा
है पढ़ाई करो। अगर कोई भी ....।
-कौन? उसने दहाड़ मारी, जैसे सुना ही न हो।
-अजय सर। मैंने बिना डरे जवाब दिया।
-अजय सर की माँ की ऐसी की तैसी, तू पहले अंदर आ, चल .....?
लड़ाई हारते हुए मैंने उसके कमरे में प्रवेश
किया। बैच के सारे लड़के शर्टविहीन काया में नतमस्तक थे। मेरा जोश हिरन हो गया।
-शर्ट उतारकर लग जा लाइन में। जोशी ने आदेश दिया।
उस समय कमरे में कई सीनियर थे- हाफ पैंट, टी शर्ट, जींस, कुर्ता, लुंगी पहने हुए.... हँसी के फव्वारे छोड़ते हुए....दया और
तिरस्कार की मिश्रित दृष्टि हम पर डालते हुए। कोई कुर्सी पर था तो कोई उसके हत्थे
पर। कोई टेबुल पर पसरा था तो कुछ लोग बेड पर लेटे बैठे थे- चाय की चुस्की लेते
हुए।
-यह हीरो कहता है कि कोई अजय सर हैं जिन्होंने
इसको किसी सीनियर के कमरे में जाने से मना किया है। जोशी ने मुझ पर फिकरा कसा।
बाकियों ने जोरदार ठहाका लगाया।
-किसने कहा? टेबुल की कोर पर बैठे सीनियर ने खिल्ली उड़ाने के
अंदाज में पूछा।
-हेलो मिस्टर, आप फ्रेशर हैं या कुछ और? किसी और ने व्यंग्यबाण छोड़ा। क्रोध तो बहुत आया
किंतु मैं अजय सर के आश्वासनों को सोचकर चुप रहा। ले लो जी भर के रैगिंग .....बस
आज ही न.....कल से देखेंगे।
पर तभी जैसे मेरे अवचेतन में कुछ सरसराया। कुछ
ठनका। इस सीनियर की आवाज कुछ जानी-पहचानी लगी ....यस....यस...मैंने इस आवाज को
सुनी है...श्योर ....अच्छी तरह सुनी है....बड़ी देर तक....बस आधा घण्टा पहले। अजय
सर? क्या यह अजय सर का
स्वर है। .....क्या उन्होंने व्यंग्यबाण छोड़ा है?
मैं चकरा गया ....कुछ क्षणों के लिए विवेकहीन हो
गया। उस समय की मनःस्थिति का बर्णन करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं.....। जोशी
के कमरे में अजय सर की उपस्थिति की संभावना मात्र से मेरी नसों में खून की रफ्तार
तेज हो गयी, दिल की धड़कनें
हिलोरें लेने लगीं....क्या चक्कर है भाई....पूरा घनचक्कर। अजय सर यहाँ, रैगिंग सेशन में?
मैंने कनखियों से उस ओर देखा जिधर से ‘हेलो मिस्टर‘ की आवाज आई थी। सच मानिये, मेरे होश फाख्ता हो गये। एक झुरझुरी सी दोड़ गयी
मेरे शरीर में। एक विचित्र अनिश्चितता से मैं भर गया...। लबालब...। मेरी आत्मा
शरीर छोड़ते-छोड़ते रूकी। मुझे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ। बिलकुल नहीं। आज
इतने वर्षों बाद भी नहीं होता। अजय सर बड़े आराम से बेड पर पैर फैलाये लेटे हुए थे।
उनका सिर जोशी के सीने पर था और उनके पेट के निचले हिस्से पर तकिया रखा हुआ था।
उन्होंने अपने हाथों की उँगलियों से तकिये पर सूर्यासन की मुद्रा बना रखी थी। अजय
सर यहाँ क्या कर रहे हैं? यह नहीं हो सकता। कदपि नहीं। फिर मैंने सोचा शायद जोशी ने
उन्हे बहला-फुसला कर बस मूड फ्रेश करने के लिए बुला लिया होगा। कोई बात नहीं, अजय सर मुझे तो पहचानते ही हैं, जोशी की हिम्मत है कि आगे और कुछ करे।
मैंने फिर से देखा। अद्भुत दृश्य था। दोनों एक
ही सिगरेट को बारी-बारी से पी रहे थे। अजय सर सबसे वरिष्ठ छात्रावासी और ये जोशी? बस साल भर पुराना पिल्ला....। जहाँ सीनियॉरिटी-जूनियॉरिटी
को इतना महत्व दिया जाता हो, दोनों इस तरह टाँग फसाकर कैसे लेट सकते हैं।
-सर, आप अजय सर हैं न? मेरे मुँह से सहसा निकल पड़ा।
-कौन, मैं? उनकी आवाज में एक अजीब सा बेगानापन था। टोन बिलकुल रूखी थी।
-यस सर, आप। मैंने सावधानी से उन्हें एक बार फिर देखा। वे वाकई अजय
सर ही थे।
-अबे तू मेरे बारे में पूछ रहा है? वे तकिया सँभालते हुए उठ बैठे। चेहरा गुस्से से
तमतमाने लगा था।
-यस्स्स्......सर। उनके चेहरे का बदला हुआ रंग
देखकर मैं लुढ़क गया। फिर सँभला।
-आप आज ही तो कुछ देर पहले अपने कमरे में बुलाकर
हमसे बात किये थे...।
-अबे गधे, गधे की औलाद, मैंने तुमसे बात किया था? कब बे? क्या मैंने कभी किसी पिद्दी जूनियर से बात किया, वह भी अपने कमरे में बुलाकर। अबे चिकने, मेरे कमरे में घुसने का टिकट लगता है। और ध्यान
रख, मेरे कमरे में लौंडे
नहीं जाते हैं। अगर जाते हैं तो मैं छोड़ता नहीं। मैंने तेरे साथ कुछ किया क्या?
अजय सर बड़ी ही कुटिलता से मुझे घूरे जा रहे थे।
गुस्से से उनके होठ थरथरा रहे थे।
उस आदमी के निष्ठुर व्यवहार ने मुझे नर्वस कर
दिया। सब कुछ बड़ा ही उलझाने वाला था। एकदम रहस्यमयी....। समझ में नहीं आ रहा था
क्या करूँ। वह दूसरी सिगरेट सुलगा रहे थे और जोशी उनकी मदद कर रहा था। उससे पहले
कभी ऐसी स्थिति और ऐसे चरित्र से भेंट नहीं हुई थी। आखिर ये आदमी ऐसा कैसे कर सकता
है? सोचा कह दूँ-नाटक मत
करो, सीनियर हो, सीनियर की तरह पेश आओ। लेकिन यह मुमकिन नहीं था।
जूनियरों की मजाल नहीं कि सीनियरों से अशिष्टता करें, उनके मुँह लगें। मेरी हिम्मत जवाब दे गयी।
जोशी ने अपनी सुराहीदार गर्दन ऊपर उठाई और जोर
से हड़काया-स्मार्टी तीसरी बटन देख। ज्यादा चखचख नहीं।
मैंने जोशी की परवाह नहीं की। मैं अजय सर को
टकटकी बाँधे देखे जा रहा था।
-लेकिन सर, आप अजय सर हैं न? मैंने कुछ देर बाद फिर पूछा।
-नो, मैं पूरे जीवन में कभी अजय नहीं रहा। बेटे, तुमने किसी और को देखा होगा।
उनके सीधे-सपाट उत्तर से मैं चुप हो गया। एक बार
मैंने उनकी ओर फिर देखा, आँखों पर जोर डालते हुए। कहीं कोई शक की गुंजाइश नहीं थी।
यह सीनियर झूठ बोल रहा है। यह सब इसकी एक्टिंग है। यह वही है जिसने कुछ देर पहले
मुझे चाय पिलाई थी......। कितनी अच्छी तरह बातें की थीं। झूठा.......बहरूपिया
.....दोगला.....।
-अच्छा एक गाना सुनाओ। अजय सर ने कहा। एक घण्टे
पहले वाली शराफत का नामोनिशान नहीं था।
-सर, सॉरी, मैं गाने नहीं जानता। मुझसे गाना निकलता ही नहीं।
-अच्छा खखारो। अमिताभ की आवाज में या रफी साहब की
आवाज में खखारो तो।
मैंने कोशिश की लेकिन खखार नहीं निकली। सभी
हँसने लगे।
-आई एम श्योर, आप अजय सर ही हैं। मैंने फिर रट लगायी।
-कैसे!
-आपका चेहरा, आपकी आवाज, आपका ड्रेस, सब कुछ तो वही है, सर। मेरा फ्रेण्ड भी आपके कमरे में मेरे साथ था।
वह भी आपको पहचानता है।
-तुम्हारा फ्रेंड कौन है, बेबी?
-सुरेन्दर शर्मा।
-क्या उसने मुझे कुछ ऐसा-वैसा करते हुए देखा?
-नोसर, आई मीन....नो। मुझे उनकी बात पर हँसी आ गयी।
-भो....। उसने देखा या नहीं? हिंदी में बोल-अजय सर ने गाली बकी। उनकी आँखों
में खून तैरने लगा।
-नो सर, नहीं देखा। मैंने धीरे से कहा।
-इसका अर्थ है सुरेन्दर वहाँ नहीं था। अजय सर ने
सिद्ध कर दिया।
-लेकिन आप अजय सर हैं। मैंने दुहराया।
-अरे वह ब्लडी सुरेन्दर कहाँ है? अजय सर चिल्लाये। वे वाकई में खूँखार लग रहे थे।
मैंने सुरेन्दर शर्मा की ओर इशारा किया।
-हे मिस्टर, क्या तुम इस मोलवी के साथ मेरे कमरे में थे?
-सुरेन्दर कुछ बुदबुदाया जो मेरी समझ में नहीं
आया पर अजय सर ने मान लिया कि वह हाँ कह रहा है।
-तो तुम वहाँ थे?
सुरेन्दर की ठोढ़ी में कुछ हरकत हुई।
-अबे पिस्सू, खटमल, तू श्योर है कि तू वहाँ था? अजय सर ने आँखें तरेरते हुए पूछा। सुरेन्दर ने
जल्दी से नकारात्मक में सिर हिला दिया।
-नहीं, नहीं, तुम थे। अजय सर ने जोर डाला। सुरेन्दर चुपचाप खड़ा रहा। अजय
सर ने अपनी सिगरेट उसकी ओर दिखाते हुए कहा-पियोगे? इससे पहले कि सुरेन्दर कुछ बोलता, अजय सर ने जोशी से कहा-इस ब्राह्मण-पुत्र को जरा
ये सिगरेट तो पिलाओ। इसको सब याद आ जायेगा।
जोशी ने जबरदस्ती सिगरेट सुरेन्दर के होठों से
लगा दिया, फिर चिल्लाया, खींचो! अजय सर ने कहा-अगर नहीं पीता है तो पैण्ट
उतार दो साले की।
सुरेन्दर ने घबराकर एक कश अन्दर लिया और बेतहाशा
खाँसने लगा। वह भय से सिकुड़ गया। गर्दन नीची करके अपने अँगूठे को घूरने लगा।
‘आपका नाम क्या है, सर? मैंने विचलित होते हुए पूछा ! मुझे धीरे-धीरे अपने ऊपर
संदेह होने लगा था।
-मेरा?
-हाँ सर, मैं नहीं जानता कि मुझे क्या हो गया है?
-क्या हो गया है?
-मैं कनप्यूज्ड हूँ। इक्सक्यूज मी सर।
-ब्रदर तुम ठीक कहते हो, जूनियर्स हमेशा ही कनफ्यूज्ड रहते हैं।
-लेकिन.....सर......मैं....।
-तुम क्या जानना चाहते हो, जूनियर?
-आपका नाम सर, और कुछ नहीं।
-तो सुनो, मेरा नाम अजय सिंह है। मैं यहाँ के सभी सीनियरों
का बाप हूँ। मुझसे सभी की फटती है। थोड़ी देर पहले तुम और सुरेन्दर मेरे कमरे में
गये थे। शुकर मनाओ कि तुम लोग अभी भी कुँवारे हो....। और सुनो, वह चाय फ्री की नहीं थी। बारह-बारह आने निकाल के
रख दो। और उस मैगजीन का किराया अलग से।
दूसरे फ्रेशर्र मुस्कुराने लगे। अजय सर ने
उन्हें छलनी कर देने वाली नजर से देखा और गुर्राये-सालों एक साथ सबकी चड्ढियाँ लाल
कर दूँगा और दफा हो जाऊँगा। ढूँढ़ते फिरोगे। ....खीस मत निपोरो.....।
सारे लड़के तीसरी बटन देखने लगे। फिर वह मेरी ओर
पलटे-मेरी जान, और कुछ?
बिना किसी लाग-लपेट के अजय सर ने अपना
इन्ट्रोड्रक्शन दे दिया था। वह लगातार दुष्टता के साथ मेरी ओर देखे जा रहे थे कि
अगर मैं और कुछ पूछना चाहता हूँ तो पूछ लूँ। मैंने अपने गाल पर दो चाँटे लगाये-चट, चट, और तीसरी बटन देखने लगा।
सारे सीनियर अट्टहास कर रहे थे। गजब की चमक और
जान थी उनकी राक्षसी हँसी में। अजय सर ने नयी सिगरेट जला ली थी। जोशी रंगदारों की
तरह घूमता हुआ हमारे नजदीक आया और अपनी खुर्राट आवाज में बोला, मच्छरों, तुम लोग कल से यूनिवर्सिटी में कक्षाएँ करने जा
रहे हो। हॉस्टल की परम्परा के अनुसार पढ़ाई शुरू करने से पहले तुम लोगों को
छात्रावास के सबसे वरिष्ठ सीनियर से आशीर्वाद ग्रहण करना है। जैसा कि तुम लोगों को
पता है, हमारे बीच विराजमान
हैं, यहाँ इधर, बेड पर, अपने माँ-बाप की इकलौती निकम्मी संतान श्री अजय
सिंह जी महराज। तुम्हें एक-एक करके आना है और यहाँ इस तकिये पर कम से कम एक रूपये
और अधिक से अधिक दो रूपये का चढ़ावा चढ़ाना है। यदि प्रसन्न हुए तो महराज आशीर्वाद
दे देंगे। समझे।
हम अच्छी तरह समझ गये थे। सुरेन्दर बायीं ओर से
पहला दर्शनार्थी था। जोशी मंत्रोच्चारण जैसा कुछ करते हुए अजय सर के पास खड़ा था।
अजय सर आँखें खोले लेटे हुए थे- मंत्रमुग्ध। जोशी ने हमें सावधान किया- रेडी, तैयार हो जाओ। पहले सुरेन्दर, फि अमरेन्दर.....फिर तेजेन्दर....फिर....। पहले
तुम लोग यहाँ देखो, यहाँ तकिये के पास।
अजय सर आराम से लेटे थे... एकदम निस्तब्ध...शांतचित्त। जोशी ने मंत्र पढ़ते हुए हाथ
बढा़कर तकिये को एक ओर सरका दिया। हमने देखा.....। पहले तो हम कुछ समझ नहीं सके, फिर जैसे हमें करंट लग गया। लगभग एक साथ हमारी
गर्दनें दूसरी दिशा में मुड़ गयीं । हम सभी ही-ही-ही- करने लगे। हँसी रोकने से न
रूकती थी। अजय सर पेट के नीचे पूरी तरह नंगे थे। एकदम नंगे। वे अभी भी उसी तरह
लेटे थे-निर्विकार ......निश्चल....भावशून्य....!
जोशी ने सुरेन्दर की ओर इशारा किया-बढ़ो।
सुुरेन्दर चढ़ावा लेकर शर्माते-सकुचाते गर्दन मोड़े हुए आगे बढ़ा। जोशी ने चेताया कि
ऐसे आशीर्वाद नहीं मिलेगा। दर्शनार्थी भक्तिभाव से आगे बढ़ें। सुरेन्दर ने गर्दन
सीधी की और आदरभाव से एक रूपये की रेजकारी पेट पर रख दिया। जोशी चिल्लाया-और नीचे!
सुरेन्दर ने सिक्के को नीचे सरका दिया।
हम सभी मुँह पर हाथ रखकर अपनी-अपनी हँसी रोकने
का प्रयास कर रहे थे।
अजय सर ने अपना दाहिना हाथ एवमस्तु की मुद्रा
में ऊपर उठाया और उनके मुँह से आशीर्वचन झर-झर बहने लगे-
जाओ पुत्र जाओ, कल से विश्वविद्यालय जाओ। आशिकी में नाम कमाओ।
माँ-बाप की गाढ़ी कमाई पानी में बहाओ। फिर लौट आओ। फिर बाथरूम जाओ, शौचालय जाओ, इधर जाओ, उधर जाओ, फिर आ जाओ। खाओ, पढ़ो, सोओ, फिर उठ जाओ। फिर विश्वविधालय जाओ। रोज-रोज जाओ। फिर आ जाओ।
कटरा जाओ, कर्नलगंज जाओ, हाथी पार्क जाओ, कम्पनी बाग जाओ। आते-जाते रेलिंग से लटके चेहरों
और सूखते कपड़ों को धड़ल्ले से देखते जाओ। फिर मुँह लटकाये लौट आओ। अखबारों और
पत्रिकाओं को गीता और कुरान की तरह पढ़ते जाओ, फिर एक कोने में उन्हें सजाकर रख दो। और खाना
खाने मेस में जाओ। देर रात तक जागो, किताबों को भी जगाओ। उन्हें चाटो। और फिर सो जाओ। फिर उठो, इधर-उधर जाओ। घण्टे दो घण्टे चाय की दुकान पर
बिताओ। फिर आ जाओ। आकर पढ़ने बैठ जाओ। घण्टों किसी को मुँह न दिखाओ। फिर शौचालय
जाओ। फिर आ जाओ। कभी-कभार पुस्तकालय जाओ। वहां पढ़ने वालों को देखो-दाखों, फिर लौट आओ। आते-जाते खोते जाओ। खोते-खोते रोते
जाओ। रोते-रोते नंगे हो जाओ। जाओ पुत्र, जाओ। खोने-रोने और नंगे होेने की तैयारी में लग जाओ। जाओ।
अजय सर चुप हो गये। हमारी हँसी रूक गयी थी। कमरे
में सभी लोग चुप थे। सुरेन्दर वापस लाइन में आ गया। जोशी ने फिर से तकिया अजय सर
के पेट पर रखना चाहा पर उन्होंने मना कर दिया। फिर वे खड़े हो गये। कुर्ता उतारने
की मुद्रा में आते हुए बोले- भाइयों क्षमा करना .....अब मैं पूरा नंगा होना चाहता
हूँ। इसके बाद मैं आप लोगों को नंगानाच दिखाऊँगा।
उन्होंने कुर्ता उतारकर फेंक दिया। एकदम
वस्त्रविहीन हो गये अजय सर। सभी सन्न थे। शायद सोच रहे थे कि अजय सर नाहक ही सीमा
से बाहर जा रहे हैं। वहाँ तक तो ठीक था। पर अब ये नंगानाच! अजय सर नाचने लगे थे। वे
झूम-झूम कर, घूम-घूम कर नाच रहे
थे। मस्ती से नाचे जा रहे थे। नंगई उन पर खूब फब रही थी। हम दीवारों के चिपक गये।
पर वह कमरा छोटा पड़ रहा था। नंगानाच के लिए तो कतई छोटा। वे नाचते-नाचते दरवाजे से
बाहर निकलने लगे। फिर वे कॉरिडोर में नंगानाच करने लगे। वहाँ अधिक जगह थी। वह
झूम-झूम कर नाचे जा रहे थे। थोड़ी ही देर में उनके नंगानाच को देखने के लिए
छात्रावासियों की भीड़ इकट्ठा हो गयी। तालियों की लय पर वे नाचते रहे। इतना नाचे कि
उनका नंगापन जाता रहा। वे एक नचनिया लगने लगे। कोई उनके नंगेपन को नहीं देख रहा
था। सब उनकी नाच में मगन थे। सबको अच्छा लग रहा था उनका नाच। मुझे और सुरेन्दर को
भी।
***
सम्पर्क: मो. आरिफ़, प्रिन्सिपल, सेन्ट्रल पब्लिक स्कूल,
समस्तीपुर, मो. 9931927140
अति उत्तम चरित्र चित्रण| भाव विभोर| अजय सर कहाँ हैं आजकल?
जवाब देंहटाएंअति उत्तम चरित्र चित्रण| भाव विभोर| अजय सर कहाँ हैं आजकल?
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