एक आदमी आजकल मेरा उत्साह तोड़ने में लगे रहते हैं. वे मेरी शल्य-चिकित्सा करते रहते हैं .शल्य-चिकित्सा मतलब जो महाभारत में शल्य कर्ण के साथ करता था .युद्ध में कर्ण का उत्साह-भंजन.मैं हर चीज़ के होने में यक़ीन करता हूँ .वे हर होने वाली चीज़ के न होने में.मैं दीवार को तोड़ देना चाहता हूँ ,उन्हें दीवार के टूट कर अपने सर पर गिर जाने का डर समाया रहता है.मैं अपनी सवा तीन साल की बेटी की मासूम शरारतों से खुश होकर तक़रीबन उछलने लगता हूँ ,वे अपनी बीस साल की बेटी को देख कर डर जाते हैं के कहीं उसने अंतरजातीय विवाह कर लिया तो या तो वे आत्महत्या कर लेंगे या समाज में मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे.जीवन की भौतिक सुरक्षाओं के लिए मेरी उपेक्षाओं से उन्हें डर लगता है .वे अपने लिए तो डरते ही हैं मेरे लिए भी डरे रहते हैं .मुझे बड़ी शर्मिंदगी होती है के अपनी उदारता में अपने विशाल डर में वे मेरे लिए अतिरिक्त डर कोई जोड़ रहे हैं .
अपने दृष्टिकोण से वे सही हैं .उनका साथ मेरी रोज़गार की मजबूरी.लेकिन जो बात मैं बताना चाहता हूँ वह यह है के आज मैंने एक गोरैय्या को अपने कमरे में देखा.उत्फुल्ल ,चहकती हुई.हमेशा की तरह बिजली नदारद थी .वह इधर-उधर फुदक रही थी.कभी-कभी थोड़ा उड़कर आलमारी पर चली जाती.अचानक मुझे एक अबूझ ,अनजाना सा डर लगा ,कहीं यह बेवफ़ा बिजली बावफ़ा हो गयी और पंखा चल गया तो उसकी मासूम मुख़्तसर सी गर्दन कट न जाए और कमरे में चारों ओर खून के क़तरे न बिखर जाएँ .
बहुत स्वाभाविक और भावपूर्ण पोस्ट..
जवाब देंहटाएंdhanywaad
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