कुछ आवाज़ों की ख़ामोशी
कुछ ख़ामोशी की आवाजें
सुनकर मैं हैरान हुआ हूँ
वक़्त के आँगन में कैसे ये
कच्ची पक्की आवाजों की
धूप के साए
जिस्म से छनकर
दिल में उतरते
सर्द से लम्हों को कुछ
गर्मी देकर खो जाते हैं
लड़ती-झगड़ती ये आवाजें
बचपन की कुछ आवाजों का
दौड़ते रहना
मुड-मुड़कर कुछ मुँह का चिढ़ाना
और बालों की थकी-थकी-सी
सर्द सफ़ेदी
मन-ही-मन में सोचती रहतीं
आवाजों का
गुथ्म्गुथ्था होते जाना
कितना कुछ है हमने बोला
कितना कुछ ख़ामोश रहे हैं
साबुन के पानी को लेकर
नन्हा-सा,छोटा-सा बच्चा
पानी से रंगीन बुलबुले
बना रहा है
ख़ुश होता है
और बुलबुले आवाज़ों के
फूटते और बनते रहते हैं
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आवाजों की खामोशी और खामोशी की आवाज-दोनों मुझतक पहुंची और दिल बाग-बाग हो गया|नज्म से भिगोने के लिये शुक्रिया,जनाब-ए-आली|
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