कौन किसी की बात को रक्खे कौन किसी का ध्यान रखे
कौन आगे इन बोझल पांवों के रस्ता आसान रखे
अपने लहू में किसकी आहट हर लम्हा हम सुनते हैं
कौन है जो सूखे होठों पे हर लम्हा मुस्कान रखे
हुस्न का मतलब रेशमी ज़ुल्फें हुस्न के माने नाज़ुक लब
ऐसी नाबीना तश्बीहें हमको बस हैरान रखे
हमको मसीहाई लगता है फ़न ये ग़ज़ल कह लेने का
शेर वही ख़ालिस है शायद मुर्दों में जो जान रखे
तुम भी कहीं हो बेकल-बेकल,रात भी है भारी-भारी
नींद भी हमसे आज ख़फ़ा है कौन हमारा ध्यान रखे
दिल की बात क़लम तक आकर अक्सर-ही रुक जाती है
कौन भला पत्थर में आकर नन्हीं-सी इक जान रखे
काँपते हाथों में नाज़ुक-सा ख्वाब संभाले रह जाए
और इससे ज़्यादा भी 'कुंदन' क्या कोई अरमान रखे
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