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ग़ज़ल

दिले  - सादा   से   भला   चाल   चल   रहा  है  कौन
हरेक    लम्हा   ये   सूरत   बदल    रहा    है   कौन
 
कोई    तो    है   जिसे    लगता   है  मैं  बाहर लाऊं 
पता   नहीं,   मेरे   अन्दर   ये    पल  रहा है कौन
 
मैं   पिछली  शब्   तो  बरा   फूट- फूट  कर रोया 
एक   बच्चे   की   तरह   ये  मचल रहा है कौन
 
मैं देर   रात   का   सोया   सहर  भी   क्या  देखूं
ये  आफ़ताब- सा दिल में निकल रहा है कौन
 
वो ख़ासो- आम का मतलब बहुत समझता था
उसे   ज़मी   की  तरफ   लेके   चल   रहा है कौन
 
जुनू   था   जो   मेरे अन्दर वो सो गया है क्या
मेरी  सोहबत  में   भला  ये संभल रहा है कौन
 
गरचे 'कुंदन' की हक़ीकत से सब हुए  वाकिफ़
अभी   भी   उससे   भला ये बहल रहा है कौन
 
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