ग़ज़ल
तुम ठहरते ही नहीं सिर्फ़ आते-जाते हो
दोस्ती का भी भरम खूब तुम निभाते हो
तुम्हारा दम तो मेरी हस्ती से ही घुटता है
ख़ामख्वाह सिगरेट पे इलज़ाम क्यों लगाते हो
जब थमी-सी हो हवा बर्ग-सा लरज़ते हो
जब हो आंधी तो कोई संग नज़र आते हो
तुम्हारा एक ही चेहरा ,हमारे रंग कई
फिर भी तुम कितने ही चेहरों में झिलमिलाते हो
इन दिनों एक ग़ज़ल भी नहीं हूँ कह पाया
बताओ ,खंज़रे-तिश्ना कहाँ छुपाते हो
हम अपने साथ ही लाये थे याद कुछ ,ऐ शह्र
सुकूँ से जाने दो ,दुनिया को क्यों दिखाते हो
गुलमोहर है जवाँ हर शाख पे देखा ,'कुंदन'
यही है राज़ खुशी का तो क्यों छुपाते हो
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