ग़ज़ल
आया ज़रा सुकून में चौंका दिया मुझे
मुझसे न पूछ ज़िंदगी ने क्या दिया मुझे
इक दिलफ़रेब साया था इक लम्हे की ख़ातिर
गरचे इक उम्र के लिए भरमा दिया मुझे
बेशर्मियों के बीच भी जीना है एक फ़न
हर बार ख़ता उसने की ,शरमा दिया मुझे
कितने सबूत ले के गया था मैं उसके पास
फिर से अमीरे-शह्र ने समझा दिया मुझे
करवाया गया नारसाइयों का मुझे मश्क़
ऐसा भी हो किनारे पे पहुंचा दिया मुझे
इक रोशनी हुई थी जो टूटा तिलिस्मे-ज़ात
गुमनामियों ने फिर कोई रूतबा दिया मुझे
जो था शजर ख़ुद आंच में अपनी था जल रहा
'कुंदन' कहा ये सबने के साया दिया मुझे
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यादों में उसकी मय की अजब एक थी तल्ख़ी
जवाब देंहटाएंहमवार रास्तों पे भी बहका दिया मुझे