ग़ज़ल
मीठे पल थे ,तल्ख़ थे लम्हे,कितना क्या कुछ याद रहे
अपना उजड़ना ही अच्छा है ,अच्छा तुम आबाद रहे
अपना उजड़ना ही अच्छा है ,अच्छा तुम आबाद रहे
हर लम्हे की शिरयानों में बहती थी बस बेचैनी
इसका ही तो रद्दे-अमल था , हर लम्हा हम शाद रहे
इसका ही तो रद्दे-अमल था , हर लम्हा हम शाद रहे
कोयल कूकी ,तितली लहकी ,गुलमोहर के बहके फूल
बात है क्या फ़ितरत के लब पर एक-न-इक फ़रियाद रहे
बात है क्या फ़ितरत के लब पर एक-न-इक फ़रियाद रहे
हमने बदन के चारों जानिब दाम-सा इक महसूस किया
गरचे नज़र तो आए न हमको ,वो पक्के सय्याद रहे
गरचे नज़र तो आए न हमको ,वो पक्के सय्याद रहे
तुमको समझ में आये न आये हमको बस कह देना है
शेर कहें, तशरीह की 'कुंदन' हमपे क्यूं बेदाद रहे
शेर कहें, तशरीह की 'कुंदन' हमपे क्यूं बेदाद रहे
***********************
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें