ग़ज़ल
इसी दुनिया में,सुना है के रहा करते थे
कैसे थे लोग , बिलाशर्त वफ़ा करते थे
मिट गया तेरा यक़ीं,अपनी ज़ुबां बंद हुई
वरना हम ही थे हर इक बात कहा करते थे
इस बड़ी बात पे मतलब है क्या ख़मोशी का
ज़रा-सी बात पे क्या झगड़े हुआ करते थे
बस एक लम्हे के पत्थर ने है रोका वरना
दरियाए-वक़्त के हमराह बहा करते थे
आज तो दिल के निशाने पे था उनका हर तीर
वार तो करते थे,कुछ तीर ख़ता करते थे
क्या वहाँ अब भी हैं उन क़दमों की आहट के निशाँ
क़िस्से जिस मोड़ की ख़ुशबू के सुना करते थे
नाउमीदी का वही दौर है क्या फिर "कुंदन"
जब न करते थे दवा और न दुआ करते थे
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