सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं
गगन बेलि 
 
तुम कैसे जानोगे कि जो शख्श 
अतिशय संजीदगी के साथ तुम्हारे समक्ष 
फ़ाइल के पन्ने पलट रहा होता है 
ठीक उसी समय उसका मन 
बहुत दूर अपने गाँव के सिवाने पर अवस्थित 
विशाल पीपल वृक्ष के नीचे कबड्डी खेल में 
मगन हो रहा होता है 
 
कि जब वह दफ्तर की गुत्थियों को सुलझाता हुआ
परिवेश की नीरवता के साथ स्वयं को
तदाकार कर रहा होता है
तब बरसों पूर्व छूट गया उसका शोख बालपन 
इसके साथ छेड़खानी कर रहा होता है 
 
कि जब उद्विग्न  भाव मगर चुपचाप 
कोई बॉस की झिड़कियां सुन रहा होता है 
उस समय अपने बालपन की वीथियों में 
मटर की फलियाँ या झड़बेरी के 
कच्चे पके बेर तोड़ रहा होता है
 
 कि जब पसीनों की गंध से सने
ठसाठस भरे बस में वह धक्के खा रहा होता है
उसके प्राण सावन के महीने में
अमराई की झुकी डाल पर लगे झूले पर
हिचकोले खा रहे होते हैं
 
कि जब वातावरण की तल्खी उसके वजूद को
झुलस रही होती है
तब धू-धू करते जेठ की दुपहरी में डाल-डाल झबर आए
गुलमोहर की भांति उसकी आत्मा बरसों पूर्व देखे गए 
सपनों की याद कर लहालोट होती रहती है 
 
कि ललाट पर सिलवटों वाली रुक्षता और 
माथे पर गंगा जमुनी मिश्रण धारे उम्र के तीसरे पड़ाव पर 
खड़े प्रौढ़ का भावुक अंत:करण प्रतिपल 
कल्पना के डगमगाते मगर आतुर क़दमों से 
मनोरम दरिया के किनारे पर पहुँच 
लोट-पोट होने के लिए कसमस कर रहा होता है 
 
मरीचिका में भटक रहे मनुष्य का अन्तस्थल 
इतना तरोताजा कैसे है 
और बिरस भूमि में भी उसकी जिजीविषा 
हरी-भरी कैसे है -
इस रहस्य को भी तुम कैसे जान सकोगे 
 
***************************         ----ब्रजकिशोर पाठक    

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

दिवाकर कुमार दिवाकर की कविताएँ

  दिवाकर कुमार दिवाकर सभी ज्वालामुखी फूटते नहीं हैं अपनी बड़ी वाली अंगुली से इशारा करते हुए एक बच्चे ने कहा- ( जो शायद अब गाइड बन गया था)   बाबूजी , वो पहाड़ देख रहे हैं न पहाड़ , वो पहाड़ नही है बस पहाड़ सा लगता है वो ज्वालामुखी है , ज्वालामुखी ज्वालामुखी तो समझते हैं न आप ? ज्वालामुखी , कि जिसके अंदर   बहुत गर्मी होती है एकदम मम्मी के चूल्हे की तरह   और इसके अंदर कुछ होता है लाल-लाल पिघलता हुआ कुछ पता है , ज्वालामुखी फूटता है तो क्या होता है ? राख! सब कुछ खत्म बच्चे ने फिर अंगुली से   इशारा करते हुए कहा- ' लेकिन वो वाला ज्वालामुखी नहीं फूटा उसमे अभी भी गर्माहट है और उसकी पिघलती हुई चीज़ ठंडी हो रही है , धीरे-धीरे '   अब बच्चे ने पैसे के लिए   अपना हाथ बढ़ाते हुए कहा- ' सभी नहीं फूटते हैं न कोई-कोई ज्वालामुखी ठंडा हो जाता है अंदर ही अंदर , धीरे-धीरे '   मैंने पैसे निकालने के लिए   अपनी अंगुलियाँ शर्ट की पॉकेट में डाला ' पॉकेट ' जो दिल के एकदम करीब थी मुझे एहसास हुआ कि- ...

आलम ख़ुर्शीद की ग़ज़लें

आलम ख़ुर्शीद               ग़ज़लें                 1 याद करते हो मुझे सूरज निकल जाने के बाद चाँद ने ये मुझ से पूछा रात ढल जाने के बाद मैं ज़मीं पर हूँ तो फिर क्यूँ देखता हूँ आसमाँ ये ख़्याल आया मुझे अक्सर फिसल जाने के बाद दोस्तों के साथ चलने में भी ख़तरे हैं हज़ार भूल जाता हूं हमेशा मैं संभल जाने के बाद अब ज़रा सा फ़ासला रख कर जलाता हूँ चराग़ तज्रबा   हाथ आया हाथ जल जाने के बाद एक ही मंज़िल पे जाते हैं यहाँ रस्ते तमाम भेद यह मुझ पर खुला रस्ता बदल जाने के बाद वहशते दिल को बियाबाँ से तअल्लुक   है अजीब कोई घर लौटा नहीं , घर से निकल जाने के बाद              ***               2 हम पंछी हैं जी बहलाने आया करते हैं अक्सर मेरे ख़्वाब मुझे समझाया करते हैं तुम क्यूँ उनकी याद में बैठे रोते रहते हो आने-जाने वाले , आते-जाते रहते है...

कमलेश की कहानी-- प्रेम अगिन में

  कमलेश            प्रेम अगिन में   टन-टन-टन। घंटी की आवाज से तंद्रा टूटी छोटन तिवारी की। बाप रे। शाम में मंदिर में आरती शुरू हो गई और उन्हें पता भी नहीं चला। तीन घंटे कैसे कट गये। अब तो दोनों जगह मार पड़ने की पूरी आशंका। गुरुजी पहले तो घर पर बतायेंगे कि छोटन तिवारी दोपहर के बाद मंदिर आये ही नहीं। मतलब घर पहुंचते ही बाबूजी का पहला सवाल- दोपहर के बाद मंदिर से कहां गायब हो गया ? इसके बाद जो भी हाथ में मिलेगा उससे जमकर थुराई। फिर कल जब वह मंदिर पहुंचेंगे तो गुरुजी कुटम्मस करेंगे। कोई बात नहीं। मार खायेंगे तो खायेंगे लेकिन आज का आनन्द हाथ से कैसे जाने देते। एक बजे वह यहां आये थे और शाम के चार बज गये। लेकिन लग यही रहा था कि वह थोड़ी ही देर पहले तो आये थे। वह तो मानो दूसरे ही लोक में थे। पंचायत भवन की खिड़की के उस पार का दृश्य देखने के लिए तो उन्होंने कितने दिन इंतजार किया। पूरे खरमास एक-एक दिन गिना। लगन आया तो लगा जैसे उनकी ही शादी होने वाली हो। इसे ऐसे ही कैसे छोड़ देते। पंचायत भवन में ही ठहरती है गांव आने वाली कोई भी बारात और इसी...