जून 1998 के आख़िरी हफ़्ते मेरे दोस्त उदयकान्त पाठक की मौत एक बस हादसे में दिल्ली में हो गयी थी.वह पटना से दिल्ली शायद अपनी नागहाँ मौत से मिलने गया था .जब उसने पटना छोड़ा था ,मैंने उसके लिए एक नज़्म "तुम्हारे बाद" 11.01.1995 में लिखी थी .आज उसकी यादों को नज्र यह नज़्म:--
बाद जाने के तुम्हारे मुझे यही है लगा
जैसे इस शह्र में तुम हो ,कहीं गए ही नहीं
रात के पिछले पह्र तक थे साथ-साथ क़दम
वो चल रहे हैं किसी मोड़ पर मुड़े ही नहीं
नहीं,ज़रा भी मुझे ये नहीं लगा है अभी
के ग़ैर शह्रों की जानिब तुम्हारा तन है रवां
के मेरे दिल के शह्र की कोई हसीं धड़कन
कहीं पे खो गयी वीरान करके मेरा जहां
मगर मुझे ये लग रहा है के कुछ मेरा वजूद
ख़ुद अपनी ज़ात के आईने में धुंधला -सा है
वो अक्स जिसको मैं पहचानता था मुद्दत से
वो मेरा चेहरा ही अब मुझसे नाशानासा है
तुम्हारे बाद किसी शख्श से बातें जो कीं
लगा,तुम्हारी ही आवाज़ मुँह से निकली थी
तुम्हारे तजरबे बातों पे मेरे थे क़ाबिज़
तुम्हारी शख्शियत कुछ मुझसे हो के गुज़री थी
कहीं ऐसा तो नहीं वक़्त ने की इक साज़िश
ज़रा आहिस्ता ही मुझमें तुम्हें ही डाल दिया
तिलिस्मे-वक़्त ने ठहरा दिया तुम्हें ही यहाँ
तुम्हारे शह्र से आखिर मुझे निकाल दिया
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