22.05.1986 की एक ग़ज़ल
दिल में और होठों पे रंजिश कितनी नई पुरानी लाये
कितनी बार सुना था जिसको ये सब वही कहानी लाये
दिल के आँगन में ये अपनी सौग़ातें सब छोड़ गए
कुछ होठों की ख़ुशबू लाये,कुछ आँखों का पानी लाये
एक अजब आलम है अब हम हँसते-हँसते रो देते हैं
तेरे उस आबाद नगर से हम खानावीरानी लाये
आशाइश की फ़िक्र में हम निकले थे कब इक उम्र हुई
लौट के लम्हों को खोला है,एक अजब हैरानी लाये
ख़्वाबों में एक धुंधला चेहरा ,हर्फ़ों में पोशीदा फूल
सुलझी स्याही से लिखने हम इक मौहूम कहानी लाये
बंद हुई इक धड़कन दिल की ,ख़्वाब,तख़य्युल ख़ाक हुए
'कुंदन' के कमज़ोर-से शाने क्या-क्या बोझ गिरानी लाये
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