ग़ज़ल
हुआ कुछ यूं के अपने रंग से निकला अभी था
मुसव्विर को इसी इक बात का सदमा अभी था
मुसव्विर को इसी इक बात का सदमा अभी था
लगा ये धूप अपनी है तो ये साया भी है अपना
नज़र भरकर तुझे ऐ गुलमोहर देखा अभी था
नज़र भरकर तुझे ऐ गुलमोहर देखा अभी था
बड़ों की सारी फ़ितरत अपने अन्दर जज़्ब कर डाली
वो बच्चा शह्र की गलियों में तो निकला अभी था
वो बच्चा शह्र की गलियों में तो निकला अभी था
ज़रा-सा आँख का खुलना,ज़रा-सा ख्वाब का आलम
अभी वो ज़हन से उतरा जिसे सोचा अभी था
अभी वो ज़हन से उतरा जिसे सोचा अभी था
निशाने तक उसे आते ज़माना लग गया लेकिन
ये लगता है कमाँ से तीर तो निकला अभी था
ये लगता है कमाँ से तीर तो निकला अभी था
वो कितनी बेख़ुदी में है ,अगरचे होश में भी है
वही है साहिबे-महफ़िल जो दीवाना अभी था
वही है साहिबे-महफ़िल जो दीवाना अभी था
झपकते ही पलक नज़रों का कैसा ये तगय्युर है
अभी सहरा हुआ'कुंदन' जो इक दरिया अभी था
अभी सहरा हुआ'कुंदन' जो इक दरिया अभी था
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