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रतजगा कोई नयी बात नहीं
 
रतजगा कोई नयी बात नहीं
मुझसे पहले भी तो 
ये सानेहा गुज़रा ही है

नींद के कितने सिपाही यहाँ हलाक हुए 
शब् के इस हौलनाक मैदाँ में   
कितनी ही आँखों में कांटे उभरे 
कितने ख़्वाबों का आसरा टूटा 
और सन्नाटों में गुज़रे लम्हे 
और पलकों ने मुहज्ज़ब दूरी  
नींद से क़ायम रक्खी 

हादसे होते हैं 
पर हादसा ये आम नहीं 
फ़तह तो नींद की होती है 
शब् के मैदाँ में 
रात के सीने पे होता है 
नींद का परचम 

पर कभी ऐसा भी होता ही है 
नींद आँखों से लिए कोई
 चला जाता है 
और फिर ख़्वाब के पनाहगुजीं
रात के बेअमाँ ठिकानों में 
कू-ब-कू ,बेसबब भटकते हैं 

और फिर ये भी एक सच ही है 
रतजगा कोई नयी बात नहीं
 
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