ग़ज़ल
सांस लेना है क्या बस अपने को भरमाना है
आमदो-रफ्त रहे यूं ही जिए जाना है
छोड़िए,अब उसे किस बात का समझाना है
हम समझ लेते हैं,सबका अलग पैमाना है
हम भी बाज़ार के आदाब से अनजान नहीं
जिन्स हम हैं तो यक़ीनन हमें बिक जाना है
अब तो कम दुखता है दिल टीस कहाँ होती है
शोख यादें भी नहीं जो है शरीफ़ाना है
वो तो साहब हैं उतरते हैं सिपाही लेकर
हम मुलाजिम हैं तो हमसे उन्हें कतराना है
ज़िंदगी जीना बहरहाल सहल सा है अमल
अलमिया ये है के मुश्किल से पेश आना है
एक सूरत है के ख़ुशबू में बदल जा 'कुंदन'
तू न जाएगा मगर तुझको वहाँ जाना है
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