ग़ज़ल
ख़्वाब फिर ख़्वाब है अच्छा है बुरा है क्या है
और वो दर्द जो सीने में उठा है क्या है
अश्क तो है नहीं फिर आँख से टपका क्या है
तेरे क़दमों पे जो यकलख्त गिरा है क्या है
मुतमईन मुझसे नहीं है मेरे ख़्वाबों का सफ़ीर
आँख पे नींद का नश्शा जो चढ़ा है क्या है
चलते चलते हुए क्यूं पाँव ठिठक जाते है
जो तेरी याद का इक क़र्ज़ चुका है क्या है
वो भला क्या है जो चलने से न बाज़ आता है
और तहे-सांस जो सदियों से रुका है क्या है
बात करते हुए ख़ामोश नज़र आते हो
और ख़ामोशी में मैंने जो सुना है क्या है
वैसे कहने को तो 'कुंदन' ने बहुत कुछ है कहा
चाहकर भी जो क़लम कह न सका है क्या है
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ye halle dil kya hai?
जवाब देंहटाएंbohot khoob kya farmaya hai
chah ke bhi jo qalam keh na saka
wo sach kya hai?
Shayree haale-dil hai ,haale-zamana bhee.Aur qalam ?Qualam kee tishnagee to rahegee hee.
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