ग़ज़ल
मैं दुखों में मुब्तिला था हुई शायरी नुमायाँ
किसे फ़िक्र थी अदम है के है ज़िन्दगी नुमायाँ
कभी हंस के आंसुओं में ,कभी रो के क़ह्क़हों में
ये वही है दर्दे-पिन्हाँ जो है हर घड़ी नुमायाँ
मैं मुहब्बतों का शैदा मेरा दिल उदास क्यूं है
मुझे खौफ़ है ये शायद न हो आशिक़ी नुमायाँ
वो ये कह रहा है मुझसे के सफ़र में साथ है तू
मगर उसकी तेज़कदमी से है बेरुख़ी नुमायाँ
मेरी ज़ब्त ज़ब्त शिद्दत से लगा के हो रही है
मेरी चाहतों से ज़्यादा मेरी बेबसी नुमायाँ
मैं जुनूँ के दर पे जाकर कई बार लौट आया
ये तो ऐसी थी परस्तिश न हो बंदगी नुमायाँ
जो टपक रहा दिल में वो लहू है ,क्या है 'कुंदन'
इसी शम्म से ग़ज़ल की हुई रोशनी नुमायाँ
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