ग़ज़ल
अयादत को वो आया है,नहीं ऐसा नहीं है
वो मेरे पास बैठा है,नहीं ऐसा नहीं है
उसे इक बेसबब की बेयक़ीनी है मेरे ऊपर
के उसने मुझको परखा है,नहीं ऐसा नहीं है
ज़हन उसका हमेशा वसवसों में महव रहता है
मुझे भी कोई धड़काहै,नहीं ऐसा नहीं है
चला मैं छोड़कर अब आपकी महफ़िल के हंगामे
कोई हमराह चलता है ,नहीं ऐसा नहीं है
मैं जिसमें रात-दिन मसरूफ़ हूँ पूरी सदाक़त से
यही क्या मेरी दुनिया है,नहीं ऐसा नहीं है
उसे कुछ कहना है जिसके लिए बेचैन है हरदम
हमेशा चुप वो रहता है,नहीं ऐसा नहीं है
सुना है खा के ठोकर लोग दुनिया में संभलते हैं
इसे 'कुंदन' ने समझा है,नहीं ऐसा नहीं है
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