ग़ज़ल
रूख़ मुहब्बत का मोड़नेवाले
फिर मिले दिल को तोड़नेवाले
तेरी रंजिश है या है बेचैनी
ऐ ख़तों को मरोड्नेवाले
कब तलक साथ निबाहेंगे भला
ये तकल्लुफ़ को ओढनेवाले
दे के जाते कोई भी गर्म लिबास
सर्द मौसम में छोड़नेवाले
फिर किसी ने दिखाया ख्वाबे-वफ़ा
हम थे दामन निचोड्नेवाले
हाथ नन्ही-सी याद ने पकड़ा
हम थे उस घर को छोड़नेवाले
इसलिए मुन्तशिर रहे 'कुंदन'
हम थे दुनिया को जोड़नेवाले
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