ग़ज़ल
ये कैसा दौर आ गया जगानेवाले सो गए
जो शायरे-कमाल थे वो सामईन हो गए
ये बात तयशुदा ही थी के मंजिलें रहेंगी गुम
अजीब इत्तफ़ाक़ है के रास्ते भी खो गए
ये दास्ताने-शौक़ है इसे तो लिख सके वही
के ख़ुद ही अपने ख़ून में जो ऊँगलियाँ डुबो गए
जो अपने-अपने शानों पे उठा के ख़्वाब चल पड़े
कहानियों के लोग थे ,कहानियों में खो गए
भला किसे मैं दोष दूँ के सोहबतों से दूर हूँ
वो कारोबारी लोग थे जो मुझसे दूर हो गए
जो नन्हें-नन्हें पाँवों के निशान दिल पे नक़्श थे
के चूर आईना हुआ वो सब नुक़ूश खो गए
गली-गली भटक लिए ,सदायें भी लगा ही लीं
के बेनियाज़ हो गए तो 'कुंदन' आज सो गए
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