ग़ज़ल
माल-असबाब पे खड़ा है क्या
आदमी वो कोई बड़ा है क्या
ज़िंदा रहने की इक हवस भर है
वरना जीने में कुछ बचा है क्या
पेश्तर इसके कुछ सवाल हैं और
तुमने पूछा जो ढूंढ़ता है क्या
आज भी रात भर है ख़्वाब की गश्त
आज भी कोई रतजगा है क्या
ज़हन की लाख नाकाबंदी हो
दिल कभी हाथ में रहा है क्या
जिसकी ताबीर न हो ख़्वाब वही
कहनेवाला ये सरफिरा है क्या
ये है शिद्दत की बात ऐ 'कुंदन'
वरना क़ुर्बत है,फ़ासला है क्या
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