तनहा चले ,उदास चले ,बेनिशाँ चले
बेहतर है ज़िन्दगी वही जो रायगाँ चले
हमने तो महफ़िलों का बहुत ज़ायक़ा लिया
अब ये न पूछ हमसे के उठकर कहाँ चले
हाथों पे अपने हमने संभाले कई तूफाँ
टूटी हुई कश्ती पे कहाँ बादबाँ चले
कल ख़ामुशी से एक जनाज़ा उठा यहाँ
सब शोरोग़ुल में जश्न के लेने अमाँ चले
ये कारोबारे-शौक़ है इसका अजब हिसाब
इसमें ब-तौरे-सूद तो ख़ालिस ज़ियाँ चले
इस बस्ती -ए -शोहरत की रवायत है आजतक
हँसते हुए जो आये थे गिरियाकुनां चले
'कुंदन' फ़क़ीरे -शह्र ने कैसी थी दी सदा
हम बे-सरो-सामान ही पहुँचे जहाँ चले
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