(1981 की एक नज़्म )
तनाबें* तोड़ दो ...
मैं मुतरिब (1)नहीं हूँ फ़क़त मुफ़लिसों का
मैं शायर हूँ इन फ़लसफ़ों में न बाँधो
मैं फ़ितरत के हर रंग का हूँ मुसव्विर(2)
न मुझको फ़क़त जंग की सुर्ख़ियाँ दो
क़लम है मेरा मुन्तज़िर (3) वुसअतओं (4)का
धनक (5 ) के हसीं सात रंगों के आगे
हो बेशक हक़ायक़ के इसमें मनाज़िर (6)
दरीचे तख़य्युल (7) के भी ये उठा दे
अगर बेकसों का अलमदार बनकर
मेरे नग़में ज़ुल्मो-सितम को मिटा दें
तो महलों में सादिक़(8)कोई जज़्बा पनपे
उसे भी ज़माने को बढ़कर बता दें
सुख़न(9)पे नहीं सिर्फ़ इन्साँ का हक़ है
शजर(10)और पत्तों की भी गुफ़्तगू है
हवा बात करती है,गाते हैं बादल
लरज़ते-थिरकते ये जामो-सुबू हैं
बिलकते हुए तिफ़्ल(11) हैं मुफ़लिसों के
तो गुल(12)हैं लताफ़त(13)के पाले हुए भी
है लफ़्ज़ों की ज़द में अगर बाग़े-जन्नत
तो इन्साँ हैं वाँ(14) से निकाले हुए भी
है तिश्ना ज़मीं पे करम बादलों का
तो सैलाब के भी क़ह्र हम कहेंगे
हमआहंग(15) दम तोड़ती हसरतों के
नई आस के बोल पैहम(16) कहेंगे
सुख़नवर के फ़न की मुआफ़ी हो यारब
तेरे राज़े-फ़ितरत को तकती निगाहें
कभी दीदे-मूसा ,कभी अज़्मे-सरमद
मेरे जोशे-तख़लीक़(17) की हैं खताएँ
मगर जब हदों पे हदें देखता हूँ
उफ़ुक़(18)के भी आगे उफ़ुक़ के नज़ारे
तबो-ताब(19) इक शम्स(20)की कह रहा हूँ
बचे हैं सितारे अभी कितने सारे
तो उन नादाँ लोगों पे हँसता है ये दिल
जो शायर के फ़न की हदें बाँधते हैं
सफ़ेद और सियह,सुर्ख़ और ज़र्द परचम(21)
से परवाज़े-शायर(22)को पहचानते हैं
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* तम्बू की रस्सी 1.गायक 2.चित्रकार 3.प्रतीक्षारत 4.विस्तीर्णता 5.इन्द्रधनुष 6.दृश्य 7.कल्पना 8.सच्चा 9.काव्य 10.पेड़ 11.बच्चे 12.फूल 13.मृदुलता 14.वहाँ 15.साथ-साथ 16.लगातार 17.रचना का जोश 18.horizon19.चमक और गर्मी 20.सूरज 21.झंडा 22.कवि की उड़ान .
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