ग़ज़ल
क्या जाने किन ख़लाओं की मैं चाहतों में हूँ
महदूद इलाक़ा है मगर वुसअतों में हूँ
महदूद इलाक़ा है मगर वुसअतों में हूँ
जब तक था उसके पहरे में आज़ाद बहुत था
जब से उठाए पहरे बहुत बंधनों में हूँ
जब से उठाए पहरे बहुत बंधनों में हूँ
सरगर्मियाँ हयात की हर लम्हा गामज़न
हर लम्हा अपनी ज़ात की तनहाइयों में हूँ
हर लम्हा अपनी ज़ात की तनहाइयों में हूँ
आओगे जब क़रीब तो घबड़ा के होगे दूर
इक जज़्बा-ए-बेनाम की मैं शिद्दतों में हूँ
इक जज़्बा-ए-बेनाम की मैं शिद्दतों में हूँ
दुहरा रहा हूँ ख़ुद को हरइक लम्हा ख़ामख़्वाह
अक्स और आईने की ग़ज़ब ग़फ़लतों में हूँ
अक्स और आईने की ग़ज़ब ग़फ़लतों में हूँ
कोई हटाए सर से मेरे बोझ तो समझूं
चेहरा नहीं हूँ , भीड़ के इन पैकरों में हूँ
चेहरा नहीं हूँ , भीड़ के इन पैकरों में हूँ
'कुंदन' हज़ार नींद की तकमील बस इक नींद
किस क़िस्सा-ए-बेदार के ज़ुल्मतकदे में हूँ
किस क़िस्सा-ए-बेदार के ज़ुल्मतकदे में हूँ
किस क़िस्सा-ए-बेदार के ज़ुल्मतकदे में हूँ......
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ुब
शुक्रिया ,निखिल जी .
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