ग़ज़ल
ज़िन्दगी अस्ल में ज़रुरत हो
माफ़ करना कहा मुसीबत हो
कल हो याके हो आज का ये दिन
तुम हमेशा से इक क़यामत हो
पर कहाँ जाऊं छोड़कर तुमको
दश्त में घर की इक शबाहत हो
गुलमोहर तुमसे है तरग़ीबे- सुख़न
मेरे अशआर की हरारत हो
तुम तो दिल तोड़ने में माहिर हो
इक ज़रा मुझसे भी शरारत हो
मैंने माना सफ़र है सख्त बहुत
रास्तों में तो कुछ नज़ाक़त हो
सच से लगता है खौफ़ ऐ 'कुंदन'
और मुजस्सम ही तुम सदाक़त हो
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