आज भी ज़िन्दगी
आज भी धूप में इस क़दर तल्ख़ियाँ
जैसे फुटपाथ की ज़िन्दगी का हो सच
और बादे-सबा भी गुरेज़ाँ रही
जैसे मुफ़लिस से बच-बच के मिलते हैं सब
आज भी ज़िन्दगी ने कहीं हार कर
आख़िरी साँस ली
आज भी फ़ातेहाना तबस्सुम लिए
मौत ने कुछ फ़सुर्दा-सी इक रूह पर
याँ पे क़ब्ज़ा किया
आज भी ज़िन्दगी अपने मामूल पर
यूँ ही चलती रही
अपने बेबस पलों पे
थकी-सी हुई
झुँझलाई हुई
आज भी छोटे-छोटे बशर की अना
जैसा पहले हुआ
मजरूह होती रही
आज भी शह्र की
सख्त सड़कों पे रिक्शे चले
कुछ बसें भी चलीं
और कारें चलीं
लोग पैदल चले
आज के दिन तो ऐसा
न कुछ ख़ास था
फिर भी
लम्हों की तह में ज़रा देर तक
चंद बेचैन हलचल हुईं
इतनी ख़ामोश-सी
इतनी रूपोश-सी
ज़िन्दगी के शजर की
कोई एक नाज़ुक-सी टहनी
ज़रा देर तक
बेसबब हिल गई
***************
आज भी धूप में इस क़दर तल्ख़ियाँ
जैसे फुटपाथ की ज़िन्दगी का हो सच
और बादे-सबा भी गुरेज़ाँ रही
जैसे मुफ़लिस से बच-बच के मिलते हैं सब
आज भी ज़िन्दगी ने कहीं हार कर
आख़िरी साँस ली
आज भी फ़ातेहाना तबस्सुम लिए
मौत ने कुछ फ़सुर्दा-सी इक रूह पर
याँ पे क़ब्ज़ा किया
आज भी ज़िन्दगी अपने मामूल पर
यूँ ही चलती रही
अपने बेबस पलों पे
थकी-सी हुई
झुँझलाई हुई
आज भी छोटे-छोटे बशर की अना
जैसा पहले हुआ
मजरूह होती रही
आज भी शह्र की
सख्त सड़कों पे रिक्शे चले
कुछ बसें भी चलीं
और कारें चलीं
लोग पैदल चले
आज के दिन तो ऐसा
न कुछ ख़ास था
फिर भी
लम्हों की तह में ज़रा देर तक
चंद बेचैन हलचल हुईं
इतनी ख़ामोश-सी
इतनी रूपोश-सी
ज़िन्दगी के शजर की
कोई एक नाज़ुक-सी टहनी
ज़रा देर तक
बेसबब हिल गई
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