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उदास कब तलक बैठेंगे अब उठें जानाँ
इन उलझनों से कहीं दूर अब चलें जानाँ 

ख़ुशी का ग़म में बदलना भी सानेहा है अजब
बदलती रुत  के  फ़रेबों को  हम सहें  जानाँ

नए लिबास की चाहत में बरहना हैं शजर
इस इंतज़ार में क्या अब्द तक रुकें जानाँ

कहो तो अपने सुख़न को समेट लें हम भी
सुनो तो अपनी कहानी भी हम कहें जानाँ

वो फ़ासले थे मगर दूरियाँ  ज़रा भी न थीं
ये  कैसी  क़ुर्बतें  सदियाँ  हैं बीच में जानाँ

ये जलती-बुझती हुई आरज़ू का क़िस्सा है
ज़रा  पड़ाव  पे  ठहरें  ,  ज़रा  चलें जानाँ

जो जा रहे हैं तो लौटेंगे नहीं 'कुन्दन जी'
बग़ैर उनके भी रहना तो सीख लें जानाँ 

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