ग़ज़ल
तुम झूठ जो बोलो तो चलो झूठ ही बोलो
सच से कहो के हाथ मलो , झूठ ही बोलो
घर से तो मियाँ काम से निकलोगे ही बाहर
अब क्या करोगे , सबसे मिलो, झूठ ही बोलो
अब और कितने फ़ाक़े भला सच के लिए हों
बस मक़्र के टुकड़ों पे पलो , झूठ ही बोलो
वो क्या सुफ़ैद गाडी पे ज़न्नाटे से निकला
है दोस्त तुम्हारा वो ? लो, झूठ ही बोलो
कुछ रस्मो-राह भी तो निभाना ज़रा सीखो
रक्खो न फोन, कह दो हलो, झूठ ही बोलो
महफ़िल में हो तो साहिबे-महफ़िल भी तुम्हीं हो
सबकी न सुनो, ख़ुद को छलो , झूठ ही बोलो
कह दो ये सबसे घर पे अहम काम हैं 'कुंदन'
जी भर गया तो उठ के चलो , झूठ ही बोलो
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सच से कहो के हाथ मलो , झूठ ही बोलो
घर से तो मियाँ काम से निकलोगे ही बाहर
अब क्या करोगे , सबसे मिलो, झूठ ही बोलो
अब और कितने फ़ाक़े भला सच के लिए हों
बस मक़्र के टुकड़ों पे पलो , झूठ ही बोलो
वो क्या सुफ़ैद गाडी पे ज़न्नाटे से निकला
है दोस्त तुम्हारा वो ? लो, झूठ ही बोलो
कुछ रस्मो-राह भी तो निभाना ज़रा सीखो
रक्खो न फोन, कह दो हलो, झूठ ही बोलो
महफ़िल में हो तो साहिबे-महफ़िल भी तुम्हीं हो
सबकी न सुनो, ख़ुद को छलो , झूठ ही बोलो
कह दो ये सबसे घर पे अहम काम हैं 'कुंदन'
जी भर गया तो उठ के चलो , झूठ ही बोलो
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