यूँ ही बेसबब....
ज़रा शह्र की आज
सड़कों पे घूमा
न दफ़्तर का चक्कर,
न घर के मसाइल
न सोचा के हैं मुल्क के कैसे रहबर
न देखा उसे रास्ते के किनारे
जिसे कोई भी देखता ही नहीं है
न चाहा के
बाँटूँ मैं ग़म दूसरों का
न कोशिश ये की
शब की नादानियों में
जो ख़्वाबों को देखा है
ताबीर कर लूँ
न तरसा के
जो शायरी अब तलक की
उसे बैठकर चाय की इक दुकाँ पे
सुनाकर करूँ
ख़ुदसताइश का सामाँ
यूँ ही बेसबब और यूँ ही बेइरादा
ज़रा शह्र की आज सड़कों पे घूमा
मगर आज जब थक के बिस्तर पे लेटा
वो ख़्वाबों का चेहरा बड़ा अजनबी था
कुछ ऐसे सवालात थे सब्त जिसपे
जवाबात जिनके थे सड़कों पे बिखरे
###########
न घर के मसाइल
न सोचा के हैं मुल्क के कैसे रहबर
न देखा उसे रास्ते के किनारे
जिसे कोई भी देखता ही नहीं है
न चाहा के
बाँटूँ मैं ग़म दूसरों का
न कोशिश ये की
शब की नादानियों में
जो ख़्वाबों को देखा है
ताबीर कर लूँ
न तरसा के
जो शायरी अब तलक की
उसे बैठकर चाय की इक दुकाँ पे
सुनाकर करूँ
ख़ुदसताइश का सामाँ
यूँ ही बेसबब और यूँ ही बेइरादा
ज़रा शह्र की आज सड़कों पे घूमा
मगर आज जब थक के बिस्तर पे लेटा
वो ख़्वाबों का चेहरा बड़ा अजनबी था
कुछ ऐसे सवालात थे सब्त जिसपे
जवाबात जिनके थे सड़कों पे बिखरे
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