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ग़ज़ल


ग़ौर से पढ़िए तो बस एक ही अफ़साना है  
अपने मफ़हूम से जो लफ़्ज़ है बेगाना है


वैसे जाना तो है एक दिन बहुत ही दूर हमें
पर  ये  मालूम नहीं है   के  कहाँ जाना है


अपनी कोशिश रही कोशिश से नहीं बाज़ आएँ
जो  नहीं  समझेंगे   उनको हमें समझाना है


हम उदासी के भँवर में तो गिरफ़्तार नहीं
हो  किनारा  के  तहे-बह्र   उतर जाना है


कुछ तबीयत न हुई जाएँ दरे-शाह पे  हम
चलिए मंज़ूर है बस सर ही तो कटवाना है


उसने बेचैनी की जागीर जो लिख दी हमको
अब  जहाँ  आएँ  ब-अंदाज़े-जुनूँ  आना  है


एक ख़्वाहिश है के उस गाम पे पहुँचे 'कुन्दन'
कह  सके   लौट के वापस  न  उसे  जाना  है

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