सारे भरम ज़िन्दा उसमें
तुम और हम ज़िन्दा उसमें
वो साया हमदोनों का
सारे क़सम ज़िन्दा उसमें
ख़ुशियाँ फ़ना हुईं हमसे
रंजो-अलम ज़िन्दा उसमें
याद के पिंजरे में लम्हे
बिछड़ा ग़म ज़िन्दा उसमें
मौसम सारे कुम्हलाए
इक मौसम ज़िन्दा उसमें
ख़ुश न हुए हम इक लम्हा
कौन सा ग़म ज़िन्दा उसमें
काबा-ए-दिल कैसा 'कुन्दन'
सारे सनम ज़िन्दा उसमें
###########
तुम और हम ज़िन्दा उसमें
वो साया हमदोनों का
सारे क़सम ज़िन्दा उसमें
ख़ुशियाँ फ़ना हुईं हमसे
रंजो-अलम ज़िन्दा उसमें
याद के पिंजरे में लम्हे
बिछड़ा ग़म ज़िन्दा उसमें
मौसम सारे कुम्हलाए
इक मौसम ज़िन्दा उसमें
ख़ुश न हुए हम इक लम्हा
कौन सा ग़म ज़िन्दा उसमें
काबा-ए-दिल कैसा 'कुन्दन'
सारे सनम ज़िन्दा उसमें
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