मस्तनम्मा एक मज़दूर महिला जो दुनिया की विलक्षण शेफ़ थी और उसके जीवन के 105 वें वर्ष में दुनिया को यह पता चला. नीचे के लिंक पर कल्चर बुकलेट के अंग्रेज़ी वाले सेक्शन में मेरा लिखा लेख पढ़ सकते हैं
आलम ख़ुर्शीद ग़ज़लें 1 याद करते हो मुझे सूरज निकल जाने के बाद चाँद ने ये मुझ से पूछा रात ढल जाने के बाद मैं ज़मीं पर हूँ तो फिर क्यूँ देखता हूँ आसमाँ ये ख़्याल आया मुझे अक्सर फिसल जाने के बाद दोस्तों के साथ चलने में भी ख़तरे हैं हज़ार भूल जाता हूं हमेशा मैं संभल जाने के बाद अब ज़रा सा फ़ासला रख कर जलाता हूँ चराग़ तज्रबा हाथ आया हाथ जल जाने के बाद एक ही मंज़िल पे जाते हैं यहाँ रस्ते तमाम भेद यह मुझ पर खुला रस्ता बदल जाने के बाद वहशते दिल को बियाबाँ से तअल्लुक है अजीब कोई घर लौटा नहीं , घर से निकल जाने के बाद *** 2 हम पंछी हैं जी बहलाने आया करते हैं अक्सर मेरे ख़्वाब मुझे समझाया करते हैं तुम क्यूँ उनकी याद में बैठे रोते रहते हो आने-जाने वाले , आते-जाते रहते है...
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