विनय कुमार की तीन
ग़ज़लें
ग़ज़ल- 1
ले गए सब दरो- दीवार के रंग
कैसे कैसे हैं इंतज़ार के रंग
सात गमले हैं और गुल दो चार
इस दफ़ा बस यही बहार के रंग
सादे कुर्ते में एक तन्हाई
थक गए हैं उसे पुकार के रंग
एक मिसरे में समंदर सहरा
ख़ाक देखे है ख़ाकसार के रंग
भूल जाओगे हुस्न परबत का
तुम जो देखोगे मेरे ग़ार के रंग
दिल की अंटी में यक छदाम नहीं
और भाते नहीं उधार के रंग
फिर वही दर्द फिर वही दारू
चंदरोज़ा हैं ये वक़ार के रंग
अपने फ़न को सलाम कर ऐ दिल
शाह के सर पे शाहकार के रंग
तेरा मक़तल है तेरे दस्त ओ रसन
देख लेने दे मुझे दार के रंग
वो भी देखेगा सादगी ए कफ़न
हम भी देखेंगे शहरयार के रंग
कौन देखे हवा में क़ौस ए क़ुजह
सात से ज़्यादा मेरे प्यार के रंग
बाज़ मिसरे के मायने में अफ़ीम
हुस्न देखो तो लालाज़ार के रंग
तेरे अल्बम के मोजज़ा लिल्लाह
बेक़रारी में हैं क़रार के रंग
उसका होना है सरापा क़ुदरत
गिन न पाओगे मेरे यार के रंग
***
गुल – फूल, सहरा-रेगिस्तान, ग़ार –गुफा, शाहकार – महान कलाकृति, मक़तल – वधस्थल, दस्त ओ रसन –हाथ और रस्सी, दार –सूली, क़ौस ए क़ुजह – इन्द्रधनुष, मोजज़ा- चमत्कार, सरापा- सर से
पाँव तक.
ग़ज़ल-2
ज़हन से दिल का ज़ाविया न गया
ऐसे ताज़िर कि औलिया
न गया
यूँ तो दुनिया थी शोर-ए-दुनिया था
वाह रे हम कि तख़लिया न गया
आज़माया तो आबले आए
पर ख़यालों से
कीमिया न गया
दोस्त छूटे रदीफ़ छूट गए
फिर भी बातों से क़ाफ़िया न गया
अपने दुश्मन भी अपने
जैसे थे
उनसे बदला कभी लिया न गया
कितने औराक़ किताबें
भी कुछ
पर तबीयत से हाशिया न गया
क्या अहद मर्सिया
नहीं छूटा
और काँधे से ताज़िया
न गया
लोग ऐसे भी हमसफ़र
अपने
मौत आयी नहीं जिया न गया
जो किया टूटकर किया
दिल ने
शौक़िया शौक़ भी
किया न गया
***
ज़ाविया- कोण, ताज़िर-
व्यापारी, तख़लिया-एकांत, आबला- फफोला, कीमिया- रसायन, औराक़- पन्ने.
ग़ज़ल- 3
ऐसी आमद से तेरा जस
क्या है
तेरे गुलशन में एक
खस क्या है
फ़स्ले-गुल ने
ज़ुबान दी सबको
खस है ख़ामोश उसका
बस क्या है
सब ने दुनिया बदल तो
ली लेकिन
सब के सीने में जस
का तस क्या है
पंख टकरा रहे हैं
लोहे से
गर यही आस्माँ क़फ़स
क्या है
क्या है तौबाशिकन
निगाहों से
और आँखों से
मुक़द्दस क्या है
इश्क़ तो इश्क़ है
ज़माने से
आज ये इश्क़ की हवस
क्या है
क्या है देने को
देखता ही नहीं
देखता है कि
दस्तरस क्या है
पूछो दौलत से क्या
हुआ तामीर
दिल से पूछो तहस-नहस
क्या है
एक ही बात कह रहे
दोनों
फिर भी जारी है जो
बहस ..क्या है
जब मुहब्बत के सफ़र पर निकले
क्या अहद क्या सदी
बरस क्या है
जिसकी आँखों से रवां
है गंगा
उससे पूछो कि बनारस
क्या है
***
फ़स्ले-गुल– बहार, क़फ़स-
पिंजरा, मुक़द्दस- पवित्र, दस्तरस- पहुँच, तामीर –निर्माण, अहद- सदी.
सम्पर्क: एन.सी.116,
स्टेट बैंक ऑफिसर्स कॉलोनी, कंकड़बाग़, पटना-20. मो.9431011775.
पेंटिंग: सन्दली वर्मा
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