विनय सौरभ की एक लम्बी कविता

बुज़ुर्ग डाकिये से भेंट
ऐसी तेज़ होती बारिश में तक़रीबन पच्चीस सालों के बाद वे मिलेंगे
यह हैरत होती है सोच कर!
वे मिले मुझे एक दवाई की दुकान पर
बारिश की बौछारों से बचते हुए
बरसों देखे गये उस चेहरे को
भूलना असंभव था!
आप यहां कैसे?
रोमांच से और थोड़े संकोच से
भरते हुए मैंने पूछा
बहुत मोटे चश्मे के शीशे के भीतर से झांकते हुए
उन्होंने मुझे ताका
और एकाएक आ गयी मुस्कान के बीच
कहा कि पहचान में अब दिक्क़त होती है
आप विनय हैं न नोनीहाट वाले?
पहचान लेने की ख़ुशी
उनके चेहरे पर पसर गयी थी
अपने कपड़े का झोला संभालकर
कंधे पर चढ़ाते हुए
उन्होंने मेरे दोनों हाथ थाम लिये
यहां डॉक्टर को दिखाने आये थे
सांस बहुत फूलती है अब
क्या आप यहीं रहते हैं गोड्डा में?
अपनी रौ में बोले जा रहे थे
अपनी जात का डॉक्टर है
पर रहम नहीं है ज़रा भी
ग़रीबों से भी पूरी फ़ीस लेते हैं
हां अब ऐसा ही है , मैंने कहा -
अधिकांश डॉक्टर अब किसी को नहीं पहचानते!
फ़िर मन में कहा
वे सिर्फ़ अब पूंजी को ठीक से पहचानते हैं
मनुष्य को नहीं पहचानते!
और अब तो दवा कंपनियां ही उनकी रिश्तेदार हैं!
फिर उन्होंने इस शहर तक पहुंचने की तकलीफ़ों का ज़िक्र किया
वह कुछ-कुछ बोले जा रहे थे
जैसे कुछ बुज़ुर्ग अनवरत बोलते जाते हैं
इस बीच पास खड़े उनके बेटे ने कहा कि दोपहर की दवाइयां खा लीजिए
समय हो गया है
मैं अपने इलाक़े के उस
डाकिये को याद कर रहा था
जो उस समय तक़रीबन चालीस-पैंतालीस का रहा होगा
प्रायः रोज ही आते थे मेरी डाक लेकर
सुस्ताते थे हमारी बैठक में
मां उन्हें चाय पानी के लिए पूछती थी
अचानक उन्होंने मेरे परिवार के बारे में पूछा और कहा कि कितने बच्चे हैं आपके
वे कहां पढ़ते हैं
मां कैसी है
मैंने जब कहा कि मां अब नहीं रहीं
उनको गये आठ साल हो गये!
आह! बोलते हुए दुख की कौंध
उनके चेहरे पर फैल गयी
उन्होंने आकाश की ओर हाथ जोड़ते हुए
मृत आत्मा को याद किया
फ़िर कहा कि नोनीहाट की पोस्टिंग अच्छी थी
अच्छे लोग मिले वहां
आपका घर हमें कभी दूसरे का घर नहीं लगा
एक बार अपने गांव की
आख़िरी बस छूट जाने के बाद
मेरे घर उन्होंने रात गुजारी थी
इस प्रसंग को थोड़े भरे स्वर में उन्होंने दो बार दुहराया
हमें इस बात का पता नहीं था
अपने रिटायरमेंट के बाद
अपने गांव की पैतृक ज़मीन पर
आम के डेढ़ सौ पौधों का एक बगीचा
उन्होंने लगाया था
यह बताते हुए बेहद खुश दिखे वे
मेहनत करनी पड़ती है विनय बाबू
लेकिन ढाई-तीन लाख सालाना
आ जाते हैं आम से
कितनी तरलता आश्वस्ति और संतोष दिखा
अपने उस आम के बगीचे के लिए
उनकी आंखें कह रही थीं कि
उन्होंने बड़ा काम कर दिया है
अगली कई पीढ़ियों के लिए!
फिर एक बेटे का ज़िक्र किया
जो बीएसएफ में सिपाही है
बस उसी की चिंता लगी रहती है
गहरी सांस भरते हुए कह रहे थे
समय अब पहले की तरह नहीं रहा
अब वह बहुत ख़राब होता जा रहा है
और यह छोटा वाला
यहीं गांव में दुकानदारी करता है
सब अच्छा चल रहा है विनय बाबू
कोई दिक्क़त नहीं है
वे सजल हो रहे थे
हल्के कांपते हुए दोनों हाथ उन्होंने
मेरे कंधे पर रखे और
भावुक होते हुए कहा कि कभी आइए
हमारे घर आम के दिनों में
एकाएक दवाई दुकानदार से
मुख़ातिब होकर कहने लगे -
ये नोनीहाट के हैं
हम पहले नोनीहाट में ही नौकरी करते थे
ये कवि लेखक हैं!
यह सब सुनकर मैं झेंप रहा था
और दुकानदार का चेहरा अच्छा-अच्छा कहते हुए हल्की मुस्कुराहट से भरा था
इस समय मैं किसी और मनोदशा में था
उनकी बातें सुनते हुए
एक कोलाज़ का बनना शुरू हो गया था
जैसे मेरे भीतर!
जैसे आधे-पौन घंटे की फ़िल्म चल रही थी
और मैं उसके भीतर था
उनके झुर्रियों से भर रहे
इन्हीं हाथों ने
हजारों चिट्ठियां पत्रिकाएं किताबें मनीआर्डर मेरे घर पहुंचाये थे कभी!
अब तो कोई चिट्ठी नहीं आती!
इलाक़े का डाकिया कौन है
बरसों से नहीं जान पाया!
हमने बारिश के बीच
एक छोटी सी झोपड़ी में साथ चाय पी
उन्होंने अपनी नौकरी के दिनों
और नोनीहाट के बहुत से लोगों को याद किया और भर आयी आंखों को
बार-बार पोंछते रहे
चाय पीते हुए उन्होंने फ़िर कहा कि
आम के मौसम में आपका इंतज़ार रहेगा!
मुझे लगा कि आम का बगीचा
उनका स्वप्न था
जिसे वे सबके साथ बांटना चाहते थे
बारिश थम रही थी
उन्होंने मेरे हाथों पर अपना हाथ रखा और जाने की इजाज़त चाही
स्टार्ट होती मोटरसाइकिल के
पीछे संभल कर बैठते हुए
आदतन उन्होंने नमस्कार किया
बारिश की हल्की होती बूंदों के बीच
मैंने नज़रों से ओझल होते देखा
अपने प्यारे डाकिया शंकर साह को!
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ऐसी तेज़ होती बारिश में तक़रीबन पच्चीस सालों के बाद वे मिलेंगे
यह हैरत होती है सोच कर!
वे मिले मुझे एक दवाई की दुकान पर
बारिश की बौछारों से बचते हुए
बरसों देखे गये उस चेहरे को
भूलना असंभव था!
आप यहां कैसे?
रोमांच से और थोड़े संकोच से
भरते हुए मैंने पूछा
बहुत मोटे चश्मे के शीशे के भीतर से झांकते हुए
उन्होंने मुझे ताका
और एकाएक आ गयी मुस्कान के बीच
कहा कि पहचान में अब दिक्क़त होती है
आप विनय हैं न नोनीहाट वाले?
पहचान लेने की ख़ुशी
उनके चेहरे पर पसर गयी थी
अपने कपड़े का झोला संभालकर
कंधे पर चढ़ाते हुए
उन्होंने मेरे दोनों हाथ थाम लिये
यहां डॉक्टर को दिखाने आये थे
सांस बहुत फूलती है अब
क्या आप यहीं रहते हैं गोड्डा में?
अपनी रौ में बोले जा रहे थे
अपनी जात का डॉक्टर है
पर रहम नहीं है ज़रा भी
ग़रीबों से भी पूरी फ़ीस लेते हैं
हां अब ऐसा ही है , मैंने कहा -
अधिकांश डॉक्टर अब किसी को नहीं पहचानते!
फ़िर मन में कहा
वे सिर्फ़ अब पूंजी को ठीक से पहचानते हैं
मनुष्य को नहीं पहचानते!
और अब तो दवा कंपनियां ही उनकी रिश्तेदार हैं!
फिर उन्होंने इस शहर तक पहुंचने की तकलीफ़ों का ज़िक्र किया
वह कुछ-कुछ बोले जा रहे थे
जैसे कुछ बुज़ुर्ग अनवरत बोलते जाते हैं
इस बीच पास खड़े उनके बेटे ने कहा कि दोपहर की दवाइयां खा लीजिए
समय हो गया है
मैं अपने इलाक़े के उस
डाकिये को याद कर रहा था
जो उस समय तक़रीबन चालीस-पैंतालीस का रहा होगा
प्रायः रोज ही आते थे मेरी डाक लेकर
सुस्ताते थे हमारी बैठक में
मां उन्हें चाय पानी के लिए पूछती थी
अचानक उन्होंने मेरे परिवार के बारे में पूछा और कहा कि कितने बच्चे हैं आपके
वे कहां पढ़ते हैं
मां कैसी है
मैंने जब कहा कि मां अब नहीं रहीं
उनको गये आठ साल हो गये!
आह! बोलते हुए दुख की कौंध
उनके चेहरे पर फैल गयी
उन्होंने आकाश की ओर हाथ जोड़ते हुए
मृत आत्मा को याद किया
फ़िर कहा कि नोनीहाट की पोस्टिंग अच्छी थी
अच्छे लोग मिले वहां
आपका घर हमें कभी दूसरे का घर नहीं लगा
एक बार अपने गांव की
आख़िरी बस छूट जाने के बाद
मेरे घर उन्होंने रात गुजारी थी
इस प्रसंग को थोड़े भरे स्वर में उन्होंने दो बार दुहराया
हमें इस बात का पता नहीं था
अपने रिटायरमेंट के बाद
अपने गांव की पैतृक ज़मीन पर
आम के डेढ़ सौ पौधों का एक बगीचा
उन्होंने लगाया था
यह बताते हुए बेहद खुश दिखे वे
मेहनत करनी पड़ती है विनय बाबू
लेकिन ढाई-तीन लाख सालाना
आ जाते हैं आम से
कितनी तरलता आश्वस्ति और संतोष दिखा
अपने उस आम के बगीचे के लिए
उनकी आंखें कह रही थीं कि
उन्होंने बड़ा काम कर दिया है
अगली कई पीढ़ियों के लिए!
फिर एक बेटे का ज़िक्र किया
जो बीएसएफ में सिपाही है
बस उसी की चिंता लगी रहती है
गहरी सांस भरते हुए कह रहे थे
समय अब पहले की तरह नहीं रहा
अब वह बहुत ख़राब होता जा रहा है
और यह छोटा वाला
यहीं गांव में दुकानदारी करता है
सब अच्छा चल रहा है विनय बाबू
कोई दिक्क़त नहीं है
वे सजल हो रहे थे
हल्के कांपते हुए दोनों हाथ उन्होंने
मेरे कंधे पर रखे और
भावुक होते हुए कहा कि कभी आइए
हमारे घर आम के दिनों में
एकाएक दवाई दुकानदार से
मुख़ातिब होकर कहने लगे -
ये नोनीहाट के हैं
हम पहले नोनीहाट में ही नौकरी करते थे
ये कवि लेखक हैं!
यह सब सुनकर मैं झेंप रहा था
और दुकानदार का चेहरा अच्छा-अच्छा कहते हुए हल्की मुस्कुराहट से भरा था
इस समय मैं किसी और मनोदशा में था
उनकी बातें सुनते हुए
एक कोलाज़ का बनना शुरू हो गया था
जैसे मेरे भीतर!
जैसे आधे-पौन घंटे की फ़िल्म चल रही थी
और मैं उसके भीतर था
उनके झुर्रियों से भर रहे
इन्हीं हाथों ने
हजारों चिट्ठियां पत्रिकाएं किताबें मनीआर्डर मेरे घर पहुंचाये थे कभी!
अब तो कोई चिट्ठी नहीं आती!
इलाक़े का डाकिया कौन है
बरसों से नहीं जान पाया!
हमने बारिश के बीच
एक छोटी सी झोपड़ी में साथ चाय पी
उन्होंने अपनी नौकरी के दिनों
और नोनीहाट के बहुत से लोगों को याद किया और भर आयी आंखों को
बार-बार पोंछते रहे
चाय पीते हुए उन्होंने फ़िर कहा कि
आम के मौसम में आपका इंतज़ार रहेगा!
मुझे लगा कि आम का बगीचा
उनका स्वप्न था
जिसे वे सबके साथ बांटना चाहते थे
बारिश थम रही थी
उन्होंने मेरे हाथों पर अपना हाथ रखा और जाने की इजाज़त चाही
स्टार्ट होती मोटरसाइकिल के
पीछे संभल कर बैठते हुए
आदतन उन्होंने नमस्कार किया
बारिश की हल्की होती बूंदों के बीच
मैंने नज़रों से ओझल होते देखा
अपने प्यारे डाकिया शंकर साह को!
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सम्पर्क: विनय सौरभ, नोनीहाट, दुमका. मो. 7004433479, 9431944937.
पेन्टिंग: सन्दली वर्मा.
वाह ! बहुत ही प्यारी और मार्मिक कविता! कल गुजर के व्यतीत हो जाता है हमारी स्मृतियों का अतीत हो जाता है।ये कविता उस दौर की याद दिलाती है जब हम जैसे मासुका की तरह डाकिये की बाट जोहते थे।वो खतोकिताबत का गजब दौर था।
जवाब देंहटाएंस्मृतियों के उस गली में तफरी कराने के लिये कवि को साधुवाद!