निशान्त की तीन कविताएँ
पानी, मछलियों के रोने से बनता है
यह कुआँ बना है
एक छोटी मछली के आंख के पानी से
देखों वो अंदर टहल रही है
गांव का तालाब
झील नदी समुन्द्र उनके ही आंखों के पानी से बने हैं
चाची बतलाती और मेरा मुँह देखती
पानी से बाहर निकालते ही
वे मरने लगती है
वे हमलोगों के लिए रोती हैं
मेरे तुम्हारे और
तुम्हारी माँ के हिस्से का भी वहीं रोती हैं
रोना ही उनका काम है
है ईश्वर
है प्यार
बबुआ ई चिट्ठी
रामप्रसाद मास्टर जी को देना
कहना मछली ने लिखा है
सचमुच चिट्ठी के अंत में
एक सुंदर सी मछली टांक देती थी विधवा चाची
एकदिन चाची
घर के कुएं में मछली बन उतराई
आज जब मेरी बेटी
-मछली जल की रानी है
जीवन उसका पानी है...तुतलाती है
चाची की बात याद आती है
-पानी
मछलियों के रोने से बनता हैं।
***
जिधर एक किसान थूक कर चला गया है
हाथी गड्ढे में बैठ भी जाएगा
तो गदहे से ऊंचा दिखेगा
उस किसान ने कहा
फिच्च से थूका
और अपनी राह पकड़ ली
मैं समझ नहीं पाया
यह मुहावरा किसके लिए है
उस ने खुद के लिए कहा है या
मुझ मास्टर के लिए
पेट्रोल पंप के मालिक को या
लानत मलामत करते हुए ईश्वर को
आज के आज
और अभी के अभी रिटायर करते हुए
मुख्यमंत्री
प्रधानमंत्री या
गांव के सरपंच के लिए या
उस पार्टी के लिए जिसकी सरकार
कल उसने उतार दी है
अपने एक वोट से
किसके लिए था
किसके लिए है
यह मुहावरा
जिसकी जिससे भी तुलना हो
मुहावरे में अर्थ तो है
काफी खतरनाक अर्थ है
आखिर एक किसान ने कहा है
और उसकी वह फिच्च की थूक
काफी आग लगानेवाली थी
पेट्रोल के बनिस्बत
घाटे की खेतों में
रोजगरविहीन समय के जीवन में
जवान भारत में
जवान विश्व में
मैं तो एक डेग भी नहीं उठा पा रहा हूँ
उधर ही देख रहा हूँ
जिधर एक किसान थूक कर चला गया है।
***
बाजार के पक्ष में
( | )
कमरे से
दस रुपये की दूरी पर है एस एन मार्किट
बीस रुपये की दूरी पर सी पी
और एक बस बदल कर चांदनी चौक
महंगे मालों की महंगी दुकानों ने नहीं
साधारण बसों के साधारण किरायों ने
हमें असाधारण मनुष्य बनाया
एस एन पहुँचाकर
सचिन,रितिक,सानिया
विराट,धोनी और दीपिका पादुकोण
जैसा ही दिखने लगे हम
सौ रुपये में टैग ह्यूजर की घड़ी
साठ रुपये में रे-बैन का चश्मा
ढाई सौ में री-बाक का जूता और
पांच सौ रुपए में रेमंड्स का कोट पहनकर
नरेंद्र मोदी और कोविद जैसा कुछ महसूसने लगी हमारी त्वचा
ये बाजार न होता तो हम मनुष्य है
इस पर हमें विश्वास न होता
हमारी आत्मा शर्म में डूबकर मर जाती
कर्ज की दुकान में जिस्म ऐंठ कर दम तोड़ देता
अपने ही हाथों से हमारे बच्चे अपना गला घोंट लेते
दस रुपए के साधारण किराए ने उन्हें एस एन पहुँचाकर
आत्महत्या करने से बचा लिया
हमें शर्म में डूबकर मरने से भी
( || )
कमाने को हम तो इतना कमा ही लेते थे कि
पेट भर जाए तन ढक जाए
पर मामला पेट भरने और तन ढकने का नहीं था
वह तो रिक्शावाला रेहड़ीवाला और
गली का पियक्कड़ रामलाल तक भर ढक लेता है
हम तो सरकारी बड़ी नौकरियों
जिसमें पैसे बरसने की इफ़रात जगहें निकलती है
एम एन सी कम्पनियों
जिसमें एक पैर हमेशा हवाई जहाज में होता है
बड़े उद्योगपतियों मसलन टाटा,बिरला,अम्बानी
जो खरीद ले धोनी,सचिन,विराट को या फिर
कैटरीना, ऐश्वर्या, दीपिका जैसा कुछ दिखना
चाहते है
सुंदर और समृद्ध बनने की सारी कोशिशों के बाद
जब भाग्य से हारने लगता है जीवन
तब यही बाजार ऑक्सीजन बन आता है सामने
मरने की चाहत जिंदा हो जाती है
सुंदर और समृद्ध दिखते हैं हम यहाँ आकर
उनके जैसा न बन पाने का दुख
उनके जैसा दिखने से कम करना चाहते है हम
हम गरीबी रेखा से ऊपर के हैं
पर कैटल क्लास जैसा दिखते हैं उन्हें
हमें बचाए रखना पड़ता हैं अपना आत्म सम्मान
हवा से भी ज्यादा जरूरी आत्म सम्मान
एस एन मार्केट ने
समय समय पर पहुचाया है जरूरी ईंधन
आत्म सम्मान को बचाए रखने के लिए
दस रुपये की दूरी पर है एस एन मार्किट
बीस रुपये की दूरी पर सी पी
और एक बस बदल कर चांदनी चौक दिल्ली में
और दिल्ली के बाहर पटना
कोलकाता, हैदराबाद, लखनऊ, औरंगाबाद में भी
बस नाम बदल जाता है
माल वही रह जाता है
ये बाजार न होता तो हम मनुष्य है
इस पर हमें विश्वास ही न होता।
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सम्पर्क: डॉ. बिजय कुमार साव, हिन्दी विभाग, विद्या
चर्चा भवन, क़ाज़ी नज़रुलइस्लाम विश्वविद्यालय, कल्ला बायपास मोड़,पो. कल्ला सी
एच,ज़िला- पश्चिम वर्दमान, पिन- 713340, प.बंगाल, मो. 9239612662/ 8250412914.
पेन्टिंग: सन्दली वर्मा.
सम्पर्क: डॉ. बिजय कुमार साव, हिन्दी विभाग, विद्या चर्चा भवन, क़ाज़ी नज़रुलइस्लाम विश्वविद्यालय, कल् मोड़,पो. कल्ला सी एच,ज़ि
पेन्टिंग: सन
😊🌸🌼😊🙏 बहुत सुंदर 💚 सर
जवाब देंहटाएंअच्छी कविताएं।
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