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प्रभात की कविताएँ

प्रभात की कविताएँ



नींद का समुद्र

ओस भीगी घासों की गंध से भरी

पाटोर के अंधियार में

कैसे लहँगा सरसराते हुए

खड़ी हुई तुम बिस्तर से

 

फिर लूगड़ी का पल्ला लिया तुमने

फिर लोभी चाँद ने ताका तुम्हें

 

हिल गया मेरी नींद का समुद्र

जाग गया मैं

तुम्हारे जागने के अमर दृष्य को

देखते हुए

देखता रहा तुम्हें

अँधियार की नदी में पाँव धरते हुए

जाते हुए

 ***

  

 

 

फीके रंग की शर्ट

 

जितनी ही फीके रंग की शर्ट है

उतनी ही मीठी यादों से भरी है

 

पुरानी से पुरानी छुअन को

लिए लिए फिरे है हर कहीं

 

झड़ने लगे रूखे रोंये

गलने लगी साँवरी त्वचा

 

अंतिम क्षण तक साथ देना चाहती है काया

अंतिम क्षण तक साथ देना चाहते हैं धागे

       ***

 

तुम्हारी कविताएँ

 

जैसे प्रेमी प्रेमिका मिलते हैं पुआल के ढेर में

मैं तुम्हारी कविताओं से मिलता हूँ

 

जैसे कोई प्रेमी देखता है

क्या पहनकर आई है वह

कैसे कदम धरते हुए आई है धरती पर

आते ही क्या फुसफुसाया उसने

अब कैसी दिख रही है

उसका चेहरा, दाँत और कान

आँखें क्या कह रही हैं

 

सिर के बालों में

गौरैया के पंख का रोम

बबूल के फूल का रेशा

बता रहे हैं

किन रास्तों से होकर आई है

 

बिना बोले भी कितना कुछ पता चलता है

एक बार मिल लेने से

 

कुछ भी लिया नहीं दिया नहीं

तब भी कितना कुछ साथ चला आता है

अँधेरे में गिरती ओस में भीगते हुए लौटते समय

 

ऐसे ही कट जाए बचे कुछे दिन

तुम्हारी कविताओं के चाँद के नीचे चलते हुए

            ***

 

 

अनोखा दुख

 

तब हम साथ रोये थे

एक दूसरे के लिए रो रहे थे

जाना भी था, जल्दी भी थी

जल्दी-जल्दी में जितना रो सकते थे

उतना रोये थे

वह दुख था

 

आह! वह अनोखा दुख

संसार के सारे सुख फीके जिसके आगे

फिर न मिला जीवन में

फिर नहीं मिले हम जीवन में

 

कौन जानता है अब हम

एक दूसरे की मृत्यु के बारे में भी जानेंगे या नहीं

        *** 


सम्पर्क: प्रभात, 205, जनकपुरी, नीमली रोड, आलनपुर, सवाईमाधोपुर, राजस्थान- 322001, मो. 9460113007, ई मेल- prabhaaat@gmail.com

पेन्टिंग: सन्दली वर्मा.     


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