अनीश अंकुर का लेख- मोनालिसा की मुस्कान- यूनिटी ऑफ अपोजिट्स
‘मोनालिसा’ चित्रकला में एक प्रतिमान बन चुका है। इस पेंटिंग,
‘‘ला गियोकोंडा’’ जिसका लोकप्रिय नाम ‘‘मोनालिसा’’ है, ने कलाप्रमियों
की कई पीढ़ियों को अपनी रहस्यपूर्ण गुणों से अभिभूत कर रखा है। कहा जाता है कि अब
जो चित्र दिखाई पड़ता है मौलिक चित्र से भिन्न है। पुराना चमकीला, चटख रंग अब धुंधले भूरे में तब्दील हो गया है। जो मौलिक तस्वीर थी उसमें
आकाश, झील और नदी गहरे नीले रंग से बनाया गया था। लियोनार्दो
ने ये आसमानी रंग काफी खर्च कर उस समय अफगानिस्तान से मंगवाया था। लियोनार्दो ने
मोनालिसा की पेंटिंग बनाने में चार वर्ष लगाये।
कहा जाता है पैगम्बर का कोई अपना मुल्क नहीं होता।
इटली के लियोनार्दो ने अपने जीवन के अन्तिम 10 साल फ्रांस में व्यतीत किए।
लियोनार्दो को फ्रांस में नायक की तरह सम्मान दिया जाता। इसी दौरान लियोनार्दो ने
अपना मशहूर ‘सेल्फ पोट्रेट’ बनाया।
लियोनार्दो ने अपनी ‘मोनालिसा’ पेंटिंग को उसके बनने के बाद भी 16 वर्षों तक अपने साथ ही रखा। क्योंकि जिसके लिए वो बनाया, उसे दिया नहीं गया या; उसने ये ऐतराज जताकर स्वीकार नहीं किया कि तस्वीर में मोनालिसा के बाल थोड़े खुले से हैं। उस वक्त इटली में स्त्री के बालों का खुला होना अच्छा नहीं समझा जाता था। इससे उसके चरित्र में खुलेपन के रूप में देखा जाता था।
लियोनार्दो ने एक ऐसी तकनीक विकसित की जिसे ‘स्फूमातो’
(धुंआ सा) के नाम से जाना जाता है, जो चित्रों
पर धुंधला प्रभाव डालता है। लियोनार्दो को ये समझ आ गया कि असली जीवन में कोई ठहरी
हुई रेखा नहीं होती। दार्शनिक रूप से ये विचार हेराक्लिटस का था जो कहा करता था ‘सब कुछ है भी और नहीं भी है’। ‘है भी और नहीं भी है’ की यह द्वंद्वात्मक अवधारणा ‘मोनालिसा’ की पूरी तस्वीर और विशेषकर उसकी
विश्वप्रसिद्ध मुस्कान में परिलक्षित होती है।
महिला की गूढ़ व रहस्मय मुस्कान क्या कहना चाहती है? यहाँ
फिर से ‘स्फूमातो’ प्रभाव इस प्रकार
सृजित किया गया है कि होठों और चेहरे पर कोई स्पष्ट रेखा नहीं है। ‘स्फूमातो’ प्रभाव रूपरेखा को धुंधला बना देता है
लेकिन इससे चेहरा स्पष्ट और यथार्थवादी तो होता है पर साथ ही एक रहस्य का भी आवरण
बन जाता है। मुस्कान को ठहरी हुई नहीं बल्कि एक गति में चित्रित किया गया है।
मुस्कुराहट या तो आती हुई या फिर जाती हुई नजर आती है। दो अवस्थाओं (सुख से दुःख
तथा दुःख से सुख की ओर) में संक्रमण को दर्शाने का प्रयास किया गया है। यह
अन्तर्विरोध मानवीय भावनाओं अन्तर्विरोधों की जटिलता को सामने लाता है जिसमें दो
एक-दूसरे की विरोधी भावनाएँ एक साथ रहती हैं। एक हिस्से में मुस्कान होठों पर
फैलती नजर आती है तो दूसरी में मुस्कान गायब भी होने लगती है।
दो विपरीत तत्वों की एकता (यूनिटी ऑफ अपोजिट्स) का एक दार्शनिक आधार भी है मोनालिसा.
मोनालिसा’ में मानवीय भावनाएँ हमसे बाहर की दुनिया की तनावों व अन्तर्विरोधों से गहरे रूप से बावस्ता है। हमारे अन्दर प्रकाश, अंधकार, हँसी और आँसू, ख़ुशी और उदासी है। ये सभी विभिन्न अन्तर्विरोधी प्रवृत्तियाँ हमारे भीतर ठीक वैसी ही रहती है जैसे कि प्रकृति में अंधकार और प्रकाश का अठखेलियाँ करती रहती हैं। प्रकाश व अंधेरा का ‘डायलेक्टिल इफेक्ट ’लियोनार्दो ने आप्टिक्स का गहरा अध्ययन कर हासिल किया था।
आँखें दिल की खिड़की होती है
लियोनार्दो इस बात में यकीन किया करते थे कि ‘‘आँखें दिल की खिड़की होती है।’’ मोनालिसा का देखना और उसकी अदा इस तस्वीर की सबसे विस्मयकारी लक्षण है। देखने वाले को ऐसा प्रतीत होता है क्या वो मेरी ओर देख रही है? या मुझसे कुछ परे? क्या वो, वह देख रही है जिसे मैं समझ नहीं पा रहा? कहीं ऐसा तो नहीं कि उसकी दृष्टि ये कह रही हो कि मैं उन चीजों को जानती हूँ जिसे तुम न ही जानते हो और कभी जान भी नहीं पाओगे। क्या ये दुनिया के रहस्यों से वाकिफ ज्ञानी की दृष्टि है?
मानव व प्रकृति इन दोनों के बीच का अन्तर्सम्बन्ध मोनालिसा के केश से अभिव्यक्त होता है। उसका हल्का घुघराला होना चक्करदार नदी के माध्यम से अभिव्यक्त होता है। उसके वस्त्र का विन्यास रेनेंसा नहीं बल्कि कालजयी क्लासिकल शैली के हैं। मोनालिसा के बैठने का अंदाज बदलाव व गति का सूचक है। मोनालिसा एक कुर्सी पर बैठी हुई है जबकि उसका चेहरा दूसरी ओर है। यह गति, मूवमेंट को प्रकट करता है। इस ट्रिक को आज भी फोटोग्राफरों द्वारा, गति का प्रभाव पैदा करने के लिए, इस्तेमाल किया जाता है।
मोनालिसा का चेहरा उपर से शांत दिखता है पर चेहरे की शांति के परे एक अदृष्य किस्म की अशांत, गूढ़ और भूमिगत शक्तियाँ हैं। मानो सतह के तल की स्थिर भावनाएँ अन्दर की अनियंत्रित भावनाओं को प्रकट कर रही हो। प्रकृति की अब तक उपयोग में न लायी जा सकी संभावनाएँ हैं। मोनालिसा की हँसी में एक जो असमानता है वो पृष्ठभूमि में प्रकृति की असमानता को भी सामने लाती प्रतीत होती है। कई विशेषज्ञों ने इस तस्वीर के पीछे प्रकृति के सतत विकास की प्रक्रिया के रूप में देखा है जो बाइबिल के बताये ईश्वरप्रदत्त सृष्टि की अवधारणा को नकारता प्रतीत होता है।
विद्वानों ने माना है कि मोनालिसा का जो हाथ अपने पेट पर है वो दरअसल उनके गर्भवती होने का सूचक है। उनके हाथ बेहद कोमलता से अपने हल्के उभरे पेट पर रखे दिखते हैं। लियोनार्दो दा विंची ने तस्वीर पर काम करना शुरू किया। उस समय मृत महिलाओं के शव के साथ चीर-फाड़ कर उसके गर्भ की भी जाँच की थी। हालाँकि ये गतिविधियाँ उस समय वहाँ पूरी तरह अवैध तो मानी ही जाती थी और स्थापित ईसाई मान्यता के भी विपरीत बैठा करती थी। लियोनार्दो ने ऐसा स्त्री शरीर की बेहतर समझदारी और जन्म के रहस्य को समझने के लिहाज से किया था। संभवतः इन्हीं वजहों से उनकी रेखाए ‘ड्राइंग’ इतनी सटीक नजर आती है। मृत शरीर की जाँच-परख के कारण लियोनार्दो के रेखाचित्र इतने सही बैठा करते थे कि कि उनका शरीर-रचना (अनाटोमी) के छात्रों द्वारा उसका इस्तेमाल में भी लाया जाता था।
कला विशेषज्ञों के अनुसार मोनालिसा तस्वीर एक अन्य अन्तर्विरोध की ओर भी इशारा करती है; वो है सार्वभौम और विशेष की एकता का। तस्वीर की पृष्ठभूमि में प्रकृति की सार्वभैमिकता है, उसकी शाश्वतता है परन्तु अग्रभाग में बेहद निजी व समकालीन उपस्थिति है। हमारे समक्ष, समय क्षणभंगुर सा है। पृष्ठभूमि में प्रकृति के दृष्यों में प्रधान चीज, जल नजर आती है। तस्वीर का अग्रभाग, पष्चभाग से उभरता प्रतीत होता है और दोनों एक दूसरे अभिन्न रूप से जुड़े हुए हैं। पृष्ठभूमि की सबसे मुख्य बात जल है जो दर्शाये गए झीलों व नदियों में दिखती है। बहता जल परिवर्तनशील जगत को अभिव्यक्त करता प्रतीत होता है।
छुपी-दबी भावनाएँ
इस चित्र में हमें छुपी-दबी हुई भावनाओं का अहसास मिलता है। ये भावनाएँ खतरनाक मानी जाती हैं क्योंकि ये स्थापित आर्डर के खिलाफ विद्रोह के रूप में देखा जाता है। यह हमें इस बात का अहसास कराता है कि शांत सतह पर चलने वाली चीजों के नीचे भयंकर ताकतें इकट्ठा हो कर हमें नष्ट कर सकती हैं। यह प्रकृति के साथ यथा बाढ़, भूकंप, आँधी, ज्वालामुखी जैसी आपदा को सामने लाती है वैसे ही हमारे अन्दर गुस्सा, भय, ईष्या या यौन उत्कंठा की भावनाएँ हैं।
सिग्मंड फ्रायड
विश्वप्रसिद्ध मनोविश्लेषक सिग्मंड फ्रायड का मानना था कि दृष्टि में एक अन्तर्निहित यौन संकेत है। फ्रायड ने लियोनार्दो द्वारा बचपन में, मात्र तीन वर्ष की अवस्था में अपनी माँ को खो देने के अनुभव से जोड़ा है। फा्रयड के अनुसार ‘मोनालिसा’ लियोनार्दो के बचपन के अनुभव से सम्बन्धित अचेत यौन आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति है। ऐसा हो, पर संभव है कि एक भिन्न अर्थ ये भी हो सकता है। वो अर्थ बाहरी दुनिया की हलचलों से अधिक जुड़ा हुआ है।
यह चित्र ‘‘अराकता के युग’’ को प्रकट करता दिखता है और यह उसे असाधारण शक्ति प्रदान करता है। सबसे पहला अन्तर्विरोध तो मुस्कान में ही प्रकट होता है। जैसे रहस्यमय हँसी के दो भागों में अन्तर्विरोध स्वतः स्पष्ट हो जाता है- पहला हिस्सा मुस्कुराता नजर आता है तो दूसरा बेहद गंभीर। यह अन्तर्विरोध मानवीय भावनाओं की जटिलता को सामने लाता है, जिसमें दो एक-दूसरे की विरोधी भावनाएँ एक साथ रहती हैं। समय में भी ऐसा ही कुछ घट रहा था। निकोलस मैकियावेली (1469-1527), जो कि लियोनार्दो दा विंची के समकालीन व गहरे मित्र थे, उसने अपने समय की विपदा को अपनी एक कविता में, जो उस समय की त्रासदी को प्रतिबिम्बित करता है।
मैं हँसता हूँ,
लेकिन मेरी हँसी, मेरे अन्दर
नहीं है।
मै जलता हूँ,
मेरा जलना बाहर दिखाई नहीं देता।
लियोनार्दो ने खुद ही लिखा था ‘‘कला
का कार्य कभी समाप्त नहीं होता उसे उन्मुक्त कर छोड़ दिया जाता है।’’ 67 वर्ष की अवस्था में उनकी मौत पर फ्रांस के राजा ने कहा था ‘‘वो एक महान दार्शनिक थे’’। राजा न उन्हें कलाकार
नहीं बल्कि दार्शनिक कहा था। लियोनार्दो के दर्शन को अपने समय के तत्कालीन
वैज्ञानिक खोजों के आधार पर एक भौतिकवादी दर्शन था। इन्हीं वजहों से लियोनार्दो ने
सोलहवीं शताब्दी में समय को उसकी गति में देखा, दो विपरीत
तत्वों की एकता (यूनिटी ऑफ अपोजिट्स) की द्वंद्वात्मक पद्धति का उपयोग किया।
उनका यह दर्शन चित्रकला सम्बन्धी इस समझ में व्यक्त हुआ है कि ‘‘ वो चित्रकार जो बिना विवेक के सिर्फ अपने अभ्यास और अपनी आँखों से काम करता है वो उस ऐनक के समान होता है जो, अपने सामने की सभी चीजों का बगैर उनकी उपस्थिति से अवगत हुए, नकल उतारता चलता है।’’
लियोनार्दो दा विंची के चिन्तन के इन्हीं प्रारम्भिक भौतिकतावादी संकेतों से आगे चलकर द्वंद्वात्मक भौतिकवाद का दर्शन विकसित हुआ।
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पेन्टिंग: सन्दली वर्मा
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