सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

विष्णु नागर की कविताएँ

विष्णु नागर की कविताएँ 

किनमें हो तुम?

अब बोलने वाले कम हैं

चुप रहने वाले ज्यादा

समर्थन करने वाले सबसे ज्यादा

बोलकर चुप हो जाने वाले भी कम नहीं

वह वक्त भी आ सकता है

जब चुप रहने वाले समर्थन में आ जाएँ

समर्थन करने वाले

हत्यारे हो जाएँ

जब हत्यारे

खुश होकर लाशों के ऊपर नाचें

और जो यह देख कर रोने लगे

चीख पड़े, बेहोश हो जाए

भय से काँप- काँप जाए

उसे निपटाकर बैंड बाजों के साथ आगे

आगे ही आगे निकल जाएँ

अनंत तक छा जाएँ

इसलिए बोलनेवाले कम न हों

चुप रहने वाले ज्यादा न हों

 

देखना तुम किनमें हो।

      ***

       

जो होता हैसो होता है 

जैसे जीएमजीएम होता है 
जैसे डीएमडीएम होता है 
जैसे सीएमसीएम होता है 
वैसे पीएम भी पीएम होता है

जो भी होजैसा भी हो 
पीएम तो भई पीएम ही होता है 
केसरिया होतिरंगा हो 
हरा होपीला होनीला हो 
यहाँ तक कि पूरा का पूरा सफ़ेद होभूरा हो 
होता हैतो फिर होता है 
टटपुँजिया होघटिया होनकचढ़ा हो 
आलतू होफालतू होसेल्फ़ी हो 
दिमाग़ से पैदल हो 
उसे साइकिल के करियर पर 
पीछे रखकर चलता हो
शरीर से स्वस्थ होबाक़ी पूरा अस्वस्थ हो 
धुन्ना होमुन्ना हो 
पोला होमिट्टी का ढेला हो 
सफाचट होदाढ़ी-मूँछवाला हो
यहाँ तक कि पूँछवाला हो तो भी 
पीएम भई पीएम ही होता है 
जैसे सीएम भी सीएम ही होता है 
जीएम तो खैर जीएम होता ही है 
और जहाँ तक डीएम का सवाल है 
वह भी होता है तो होता है 
सिर से पैर तक डीएम होता है 
पर तेरा कोई क्या लेता है 
तू कूनमुन-कुनमुन काहे करता रहता है 
अरे बेवकूफ़ ये तो समझ 
तू भी तो इसी भारत माता का बेटा है 
तुझको भी तो यहीं जीनायहीं मरना है ।

               ***

 


कितना हिंदू हूँ?

 

सवाल पूछा है किसी ने आप कितने हिंदू हो 

मैंने कहा मंदिर में रखी

मूर्ति जितनी हिंदू होती है, उतना हिंदू हूँ

मंदिर में चढ़ने वाला नारियल

जितना हिंदू होता है, उतना हिंदू हूँ

भोग में चढ़ने वाली खीर, बर्फी, पेड़ा

बल्कि चने और गुड़ जितना भी हिंदू हूँ

और हाँ गाय जितना हिंदू तो हूँ ही 

पीपल और वटवृक्ष जितना हिंदू भी हूँ

 

और भी बताऊँ लक्ष्मी के वाहन, जितना हिंदू हूँ

और चार खाने के कपड़े से बनी कमीज जितना भी

 

मैं सवाल पूछने वाला ऐसा हिंदू हूँ

जो मुसलमान भी है

मैं उतना हिंदू हूँ,जितना हर मुसलमान, हिंदू होता है

 

मैं चींटी जितना हिंदू तो हूँ ही

मच्छर जितना हिंदू भी हूँ

मैं ऐसा हिंदू हूँ जो किसी की जात -धर्म चुपके से

भी जानने की कोशिश नहीं करता

मैं इतना ज्यादा हिंदू हूँ 

कि भूल ही जाता हूँ कि क्या हूँ

 

भैंस पानी में जाकर जितनी हिंदू हो जाती है

उतना हिंदू हूँ

बाकी जो हूँ, सो तो हूँ ही।

          ***

 

सम्पर्क: विष्णु नागर, ई-मेल- vishnunagar1950@gmail.com

पेन्टिंग: सन्दली वर्मा.  


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

ग़ज़ल   जो अहले-ख़्वाब थे वो एक पल न सो पाए  भटकते ही  रहे शब् भर  ये  नींद  के साए  एक मासूम-सा चेहरा था, खो गया शायद हमें भी ज़ीस्त ने कितने नक़ाब  पहनाये  वो सुन न पाया अगरचे सदायें हमने दीं   न पाया  देख हमें  गरचे सामने आये  गुज़रना था उसे सो एक पल ठहर न सका  वो वक़्त था के मुसाफ़िर न हम समझ पाए    हमें न पूछिए मतलब है ज़िंदगी का क्या  सुलझ चुकी है जो गुत्थी तो कौन उलझाए  हमारी ज़ात पे आवारगी थी यूं क़ाबिज़  कहीं पे एक भी लम्हा न हम ठहर पाए बस एक  बात का 'कुंदन'बड़ा मलाल रहा  के पास बैठे रहे और न हम क़रीब  आये   ****************************

मो० आरिफ की कहानी-- नंगानाच

  नंगानाच                      रैगिंग के बारे में बस उड़ते-पुड़ते सुना था। ये कि सीनियर बहुत खिंचाई करते हैं, कपड़े उतरवाकर दौड़ाते हैं, जूते पॉलिश करवाते है, दुकानों से बीड़ी-सिगरेट मँगवाते हैं और अगर जूनियर होने की औकात से बाहर गये तो मुर्गा बना देते हैं, फर्शी सलाम लगवाते हैं, नही तो दो-चार लगा भी देते हैं। बस। पहली पहली बार जब डी.जे. हॉस्टल पहुँचे तो ये सब तो था ही, अलबत्ता कुछ और भी चैंकाने वाले तजुर्बे हुए-मसलन, सीनियर अगर पीड़ा पहुँचाते हैं तो प्रेम भी करते हैं। किसी संजीदा सीनियर की छाया मिल जाय तो रैगिंग क्या, हॉस्टल की हर बुराई से बच सकते हैं। वगैरह-वगैरह......।      एक पुराने खिलाड़ी ने समझाया था कि रैगिंग से बोल्डनेस आती है , और बोल्डनेस से सब कुछ। रैग होकर आदमी स्मार्ट हो जाता है। डर और हिचक की सच्ची मार है रैगिंग। रैगिंग से रैगिंग करने वाले और कराने वाले दोनों का फायदा होता है। धीरे-धीरे ही सही , रैगिंग के साथ बोल्डनेस बढ़ती रहती है। असल में सीनियरों को यही चिंता खाये रहती है कि सामने वाला बोल्ड क्यों नहीं है। पुराने खिलाड़ी ने आगे समझाया था कि अगर गाली-गलौज , डाँट-डपट से बचना

विक्रांत की कविताएँ

  विक्रांत की कविताएँ  विक्रांत 1 गहरा घुप्प गहरा कुआं जिसके ठीक नीचे बहती है एक धंसती - उखड़ती नदी जिसपे जमी हुई है त्रिभुजाकार नीली जलकुंभियाँ उसके पठारनुमा सफ़ेद गोलपत्तों के ठीक नीचे पड़ी हैं , सैंकड़ों पुरातनपंथी मानव - अस्थियाँ मृत्तक कबीलों का इतिहास जिसमें कोई लगाना नहीं चाहता डुबकी छू आता हूँ , उसका पृष्ठ जहाँ तैरती रहती है निषिद्धपरछाइयाँ प्रतिबिम्ब चित्र चरित्र आवाज़ें मानवीय अभिशाप ईश्वरीय दंड जिसके स्पर्शमात्र से स्वप्नदोषग्रस्त आहत विक्षिप्त खंडित घृणित अपने आपसे ही कहा नहीं जा सकता सुना नहीं जा सकता भूलाता हूँ , सब बिनस्वीकारे सोचता हूँ रैदास सा कि गंगा साथ देगी चुटकी बजा बदलता हूँ , दृष्टांत।     *** 2 मेरे दोनों हाथ अब घोंघा - कछुआ हैं पर मेरा मन अब भी सांप हृदय अब भी ऑक्टोपस आँखें अब भी गिद्ध। मेरुदंड में तरलता लिए मुँह सील करवा किसी मौनी जैन की तरह मैं लेटा हुआ हूँ लंबी - लंबी नुकीली , रेतीली घास के बीच एक चबूतरे पे पांव के पास रख भावों से तितर - बितर