हीरामन की चौथी कसम
रफ़ी हैदर अंजुम
हीरामन ने तीसरी बार कसम खाई
थी कि अब वह अपनी बैलगाड़ी पर किसी नर्तकी को नहीं बिठाएगा।
इस अहद को गुज़रे हुए कई बरस हो चुके हैं। इस अर्से में हीरामन अपने गांव के आसपास के
इलाके में ही मंडराता रहा, लेकिन हीरामन के मन की टीस उसे किसी पल चैन लेने नहीं
देती थी। गांव का चौपाल हो या खेत- खलिहान, आम का बाग़ीचा हो या बांस की झाड़ या
फिर चटियल मैदान से गुज़रती धूल से अटी हुई पगडंडी, वह जहां जहां से गुजरता एक
बेनाम सी उदासी उसके पीछे लगी रहती। वह समझ नहीं पा रहा था कि आखिर इस उदासी का
सबब क्या है? कभी अचानक उसे महसूस होता कि वह किसी गंभीर रोग में मुब्तला हो गया
है, लेकिन मर्ज़ की कोई वाज़ेह अलामत (स्पष्ट संकेत) उसे नज़र नहीं आती थी। किसी
हकीम या वैद्य के पास जाकर वह क्या कहता? बज़ाहिर तो वह आज भी वैसा ही है जैसा कुछ
बरस पहले था। कुछ बरस का मतलब यही कोई दस बीस या शायद पचीस बरस पहले ------- लेकिन इतना लम्बा अर्सा भी कहाँ गुजरा
है ? ------- वह हिसाब लगाने बैठता है तो
उसे लगता है, एक युग बीत गया या फिर जैसे यह कल की ही बात है --------
कल ही तो वह फारबिसगंज के मेले से वापस आया है, अपने बैलों के साथ बक
झक करता और रास्ते में बहती हुई कजरी नदी में डुबकी लगाता हुआ शाम ढले घर पहुँचा
तो बड़े भैया की झिड़कियां सुन कर रात कच्ची मिट्टी के सेहन पर गमछा बिछा बेखबर सो
गया था। उसे सोता हुआ देख कर जरा भी महसूस नहीं हुआ कि उसे किसी बात का मलाल है।
हीरामन शायद शुरू से ही हिसाब का कच्चा था इसीलिए तो उसने अपनी कमाई कभी अपने पास
नहीं रखी। पहले भाभी के सुपुर्द कर दिया करता था और बाद में हीराबाई के हवाले करने
लगा था। हीराबाई ने उसे अपना मीत जो बना लिया था। दरअसल सारे फसाद की जड़ यही
हीराबाई है ------ हीराबाई यानी मेले की नौटंकी कम्पनी वाली वह नर्तकी जिसे उसने
चम्पानगर के मेले से अपनी बैलगाड़ी पर बिठा कर फारबिसगंज मेले तक पहुँचाया था। वही
हीराबाई जिसके बारे में उल्टी सीधी बातें सुनकर वह नौटंकी के दर्शकों से उलझ गया
था। यह वही हीराबाई थी जिसे हासिल करने के लिए वहां के अय्याश जमीन्दार ने ओछे
हथकंडे अपनाए थे। लेकिन हीरामन न तो हीराबाई को दिल और न ही उसके लिए अपनी जान दे
सका। दरमियाना क़द का भोलाभाला हीरामन बस दरम्यान में ही लटक कर रह गया। उसके सब संगी साथी शादी- ब्याह कर के चार
पांच बच्चों के बाप बन गए। आराम से वो सब सुबह सवेरे उठ कर अपने अपने खेतों में हल
बैल चलाते हैं। धान, पाट और साग- सब्जियां उगाते हैं। होली और दिवाली में ऊधम
मचाते हैं और आज भी साल में एक बार बीवी- बच्चों के साथ मेले की सैर को जाते हैं।
ऐसा नहीं है कि उन्हें कभी दुख झेलना नहीं पड़ता, लेकिन हीरामन का ग़म कुछ और ही
तरह का है। वह एक लाइलाज मर्ज़ में मुबतला है। बेमक़सद ज़िन्दगी के दिन गुज़ार रहा
है। इतना तो उसे मालूम है कि बेसबब ज़िन्दगी गुजारने का कोई फायदा नहीं है। वह कोई
पागल दीवाना थोड़ा ही हुआ है। भले ही भैया को उसकी सूरत से भी नफ़रत हो, लेकिन
भाभी के दिल में आज भी उसके लिए हमदर्दी का जज़्बा मौजूद है। उसने तो हीरामन से कई
बार कहा---- "तू सिर्फ़ हां कह दे ,
तेरे सामने एक से बढ़कर एक हीराबाई की क़तार लगा दूंगी। नर्तकी भी कोई परिवार में
बसाने की चीज होती है! गांव की लड़कियां
किसी नर्तकी से कम हैं क्या? ----- दरअसल हीरामन का हीराबाई से दिल्लगी वाला
किस्सा फारबिसगंज मेले से निकल कर गांव की चौपाल तक आ पहुंचा था और गांव के
बुजुर्गों की एकमत राय थी कि हीरामन का एकमात्र इलाज इसकी शादी है।
इस बार गांव में वर्षा समय पर हुई थी और खेतों में अच्छी फसल होने की
उम्मीद में किसान बेहद खुश नज़र आ रहे थे। खास तौर से गांव का नौजवान तबका उमंगों
और आरज़ूओं से सरशार था। गांव की तमाम खुशियों का दारोमदार अनाज का वह ज़ख़ीरा
होता है जो कीचड़ से सने और लंगोटी में लिपटे हुए आदमी को भी नाचने गाने पर मजबूर
कर देता है। ये गांव भी अजीब जगह है, कोई जरा सा उदास हुआ तो पूरा गांव सोग के
समुन्दर में डूब गया और जरा सी खुशी मिली तो आसमान सर पर उठा लिया। यहां खामोशी से
कुछ भी नहीं हो सकताI
हीरामन भी ज्यादा दिनों तक अपनी मर्जी का कुछ नहीं कर सकता था। यह शहर नहीं है कि किसी से धोखा खाया तो अपने
कमरे में बन्द हो गये, औरों से नाता तोड़ लिया और महीनों बाद पता चला कि उस कमरे
में कई दिनों से किसी की लाश पड़ी हुई है
। यह प्राचीन पूर्णिया जिला का एक दूरदराज गांव है जहां अगर कोई रोया तो उसे बताना
होगा कि रोने का सबब क्या है और अगर हंसा तो सब जवाब तलब करेंगे कि क्यों हंसा?
------- पंचलैट जलाने वाले उस लड़के की कहानी याद है ना, जो शहर से नया नया आया था
और जिसने गांव की एक लड़की को देख कर एक फिल्मी गाना गा दिया था तो गांव वालों ने
किस तरह उसका बायकाट कर दिया था। लेकिन हीरामन की कैफ़ियत कुछ और थी। वह न तो खुल
कर रोता था और न ही खिलखिला कर हंसता था। शायद इसीलिए इतने दिनों तक वह गांव वालों
की आंखों में धूल झोंकने में कामयाब रहा था। लेकिन इस बार गांव के सिरफिरे
नौजवानों ने अंदर ही अंदर एक फैसला कर लिया था ----- इस साल फारबिसगंज के मेले में हीरामन भैया को
जरूर ले जाएंगे। वह मेले का पुराना खिलाड़ी है। थिएटर कम्पनी की नर्तकी तक उसकी
पहुँच है। क्या पता इस बार नौटंकी में वही हीराबाई आने वाली हो। और अगर हीराबाई
नहीं आई तो पन्नाबाई ही सही ------- इस ख्याल पर सब मुंह खोल कर हंसे। हीरामन
पुराना खिलाड़ी है, कोई न कोई सोर्स तो लगा ही देंगे। हो सकता है, नौटंकी मुफ़्त
में देखने को मिल जाए। हीरामन को नौटंकी का फ्री पास मिल जाया करता था ------ यह सब सोच कर नौजवानों में एक अजीब सी उमंग
दौड़ गई। कुछ ने तो अपने जिस्म में झुरझुरी सी महसूस की।
सर्दी के मौसम की आमद हो चुकी थी। ये वह मौसम होता है जब फसलें खेतों
से उठ कर खलिहानों और कोठियों में आ जाती है और किसानों के मुरझाए चेहरों पर रौनक
लौट आती है। भले ही यह चमक दमक चन्द महीनों के लिए ही हो, गांव के लोग ज्यादा सोच
बिचार करने में यकीन नहीं रखते। आज जी भर कर मौज उड़ा लें, कल का कल देखा जाएगा।
जिन्दगी जीने का बस आसान सा दर्शन है। दिन भर रेशमी धूप का मजा ले लें। रात होगी
तो सर्द हवाओं से बचने के लिए धान के पुआल में घुस कर सो जाएंगे।
गाँव में खबरें आने लगीं कि फारबिसगंज का मेला सजने लगा है। मेला सजना
अपने आप में एक मस्ती की कैफ़ियत रखता है। गोया इधर मेला सज रहा है और उधर मेले के
लिए गांव वाले सजधज रहे हैं। मेले के तअल्लुक़ से रोज़ नई नई ख़बरें गांव पहुँच
रही हैं------ इस बार मेले में सफेद रंग का बाघ आया है। सर्कस में एक नहीं, दो
नहीं, कुल पांच जोकर है। हंसा हंसा के जान मार देता है। हीरामन के जमाने में गांव
का पलट दास तो जोकरों से दोस्ती कर के बाकायदा सर्कस में भर्ती हो गया था। बहुत
बड़ा झूला लगा है, ऊपर से देखोगे तो कलेजा पेट में उतर आएगा। सिनेमा घर भी है।
बिमला देवी की बड़ी सी थिएटर कम्पनी है। नर्तकी सब अंग्रेजी नाच दिखाती है। मौत का
कुआँ, बोतल में बन्द बच्चा, जादूघर और एक
से एक पकवान की दुकान ------- जानवरों का मेला अलग ----- गांव के नौजवान सुन-सुन
कर बेहाल हुए जा रहे थे। बिलआखिर उन्होंने मेला जाने का एक खास दिन मुकर्रर कर
लिया। लेकिन मस्अला यह था कि हीरामन को मनाने कौन जाए? ज्यादा आदमी का जाना ठीक
नहीं होगा, मुआमला बिगड़ सकता है। खुफिया मीटिंग में फैसला हुआ कि हीरामन के दो
पुराने कम्पनी बाज दोस्त पलटदास और लाल मोहर इस काम के लिए मुनासिब रहेंगे।
दूसरे ही रोज़ पलट दास और मोहर लाल हीरामन के सामने हाजिर हुए। हीरामन
उस वक्त बरामदे में लेटा हुआ घटवारिन की कहानी पढ़ रहा था। महुआ कजरी नदी की
घटवारिन थी। घटवारिन यानी घाट की हिफाजत करने वाली औरत। खूबसूरत और जवान महुआ
घटवारिन को उसकी सौतेली माँ ने दौलत के लालच में आकर अधेड़ उम्र के एक सौदागर के
हाथों बेच दिया था। सौदागर उसे नाव में सवार करके कजरी नदी के उस पार अपने देस ले
जा रहा था। नदी बरसात में जोश पर आई हुई थी। महुआ का तो बचपन ही नदी की तूफानी
मौजों से खेलते हुए गुज़रा था, नाव हिचकोले खाती हुई नदी के ऐन दरमियान में पहुँची
तो महुआ मौका देख कर नदी में कूद गई। नाव पर सौदागर का कड़ियल बांका जवान नौकर भी
सवार था। उसका दिल महुआ घटवारिन पर आ गया था, वह भी महुआ के पीछे नदी में उतर गया।
महुआ को लगा कि सौदागर का नौकर उसका पीछा कर रहा है, वह तेजी से नदी का सीना चीरती
हुई आगे बढ़ती चली गई। उन दोनों का क्या हुआ, यह किसी को नहीं मालूम। लेकिन इस इलाके
के लोगों का अक़ीदा है कि कजरी नदी में कुआंरी लडक़ी को नहीं नहाना चाहिए। अगर ऐसा
किसी ने किया तो उसकी शादी नहीं होगी।
महुआ घटवारिन की यह किताब हीरामन ने मेले में खरीदी थी और अब तक उसे
पचासों बार पढ़ चुका था। अचानक पुराने दोस्तों को देख कर हीरामन खुश हो गया और
बड़ी मुहब्बत से उन्हें बैठने का इशारा किया।
"हीरामन भाई! एक फरियाद है।" पलट दास ने बात शुरू की।
"क्या?" हीरामन चौंक गया। बहुत दिनों बाद कोई उस से आजिज़ी
से बात कर रहा था।
"तुम्हें इस बार हम लोगों के साथ मेले चलना होगा।" लाल मोहर
ने मुद्दआ ज़ाहिर किया।
"मेला ----- ?" हीरामन को लगा जैसे उसके जिस्म पर से कोई
जहरीला सांप सरसराता हुआ गुज़र गया है।
"हाँ मेला ----- फारबिसगंज का मेला -----!
बैलगाड़ी हम लोगों की और मेले का सारा खर्चा भी हम देंगे ----"
दोनों ने एक साथ उसके पांवों पर अपना सर रख दिया।
"क्या बकते हो ? मैं कसम
खा चुका हूँ कि मेला ------"
हीरामन झट से खड़ा होता हुआ
बोला। उसका चेहरा तमतमाया हुआ था लेकिन आवाज़ कहीं से कमजोर लग रही थी।
"कसम ? --- किस की
कसम ? कैसी कसम ?? ----- मुझे सब मालूम है।
लोहा गर्म देख कर दोनों तैश में आ गये।
"तुम ने कसम खाई थी कि किसी नर्तकी को अपनी बैलगाड़ी पर नहीं
बिठाओगे। यह थोड़ा ही कहा था कि मेले नहीं जाओगे। बोलो, सच है कि झूठ?" पलट
दास ने पलट कर वार किया। हीरामन सोच में पड़ गया। झूठ तो उसने कभी कहा ही नहीं, और जो पलट दास कह रहा है----- वह
बिल्कुल सच है।
"और यह भी याद करो हीरामन----- कसम तुमने नहीं खाई, बल्कि तुम ने
बैलों की तरफ देख कर कहा था ----- टुकुर-
टुकुर क्या देखते हो, कसम खाओ आज से किसी बाई की सवारी नहीं लोगे। ---- अब बताओ, सच है कि झूठ?"
पलट दास ने एक और पांसा फेंका। हीरामन अब तक चारों खाने चित्त हो चुका
था।
“अरे सच! ये तो मैं ने कभी सोचा ही नहीं था। बैल भी कहीं कसम खाते हैं?
मैं खुद बैल ---------- " हीरामन बड़बड़ाने लगा। पलट दास और मोहर लाल मन
ही मन यह सोच कर खुश हुए कि उनका सिक्का चल गया और फिर दूसरे ही लम्हे एक जोरदार
क़हक़हा बुलन्द हुआ। उधर हीरामन की भाभी बाहर के शोर शराबे से घबरा कर दौड़ी हुई
कमरे से बाहर आयीं।
"अरे क्या हुआ ? क्या
--------"
भाभी को देखते ही तीनों अहमक़ों की तरह एक दूसरे का मुंह देखने लगे।
"कुछ नहीं भाभी! यह बीड़ी नहीं सुलग रही थी।" हीरामन ने
मजाक किया। भाभी शर्माती हुई वापस लौट गईं। लेकिन जाते-जाते उसने महसूस किया कि
पहले वाला हीरामन लौट आया है। लेकिन यह सब हुआ कैसे? ----
पता नहीं ----- ज्यादा सोच बिचार करने का क्या फायदा। हीरामन
रास्ते पर आ जाए, उसे और क्या चाहिए?
मंसूबे के मुताबिक गांव के आठ-दस नौजवान मय पलट दास, लाल मोहर और हीरामन दो अदद बैलगाड़ियों पर सवार
होकर फारबिसगंज मेले की तरफ निकल पड़े। इस बार किसी ने बीवी बच्चों को साथ नहीं
लिया था। दो चार दिनों तक खूब मौज मस्ती का प्रोग्राम था, इसलिए बिल्कुल फ्री होकर
निकले थे। गांव के दस पन्द्रह लोग किसी काफिले में हों तो क्या मजाल कि सफ़र
खामोशी से कट जाए । लेकिन इस बार गपशप का
विषय नए अंदाज का था। लाल मोहर को राजनीति का चसका लग गया था, सो उसने इस बार के
पंचायत इलेक्शन पर अपनी अहमियत का जी खोल कर बखान किया ------- " अगर मैंने
मुसलमानों का वोट इकतरफा नहीं गिरवाया होता तो बीजू बाबू हरगिज़ मुखिया नहीं बन
पाते।“
पलट दास ज्यादातर महंगाई का रोना रोता रहा ----- "कभी हमारे बाप-
दादा ने बीस रूपये किलो बैगन और पन्द्रह रूपये किलो शकरकंद खरीदा था क्या? सिंघी
मछली तो सपने में डंक मारती है।"
सर्कस में नौकरी के दौरान पलट दास को मांस- मछली की बुरी लत लग गई थी,
लेकिन उसने यह नहीं बताया कि वह रात के अंधेरे में वन विभाग की लकड़ियाँ भी टपाने
का धंधा करता है। आखिर महंगाई की मार से बचने के लिए कोई रास्ता तो निकालना ही
होगा।
नौजवानों को इन रूखी-फीकी बातों में दिलचस्पी नहीं थी। गांव के पंचायत
सेवक का लड़का मनोहर कुमार ने शहर में रह कर बी ए पास किया है। थोड़ी बहुत कविता
भी कर लेता है। खुद को मनोहर आज़ाद लिखता है। एक बार आकाशवाणी जाकर युववाणी प्रोग्राम से अपनी पसंद का गीत भी बजवा कर आया
है। इस से पहले कि पलट दास महंगाई का किस्सा आगे बढ़ाता, मनोहर ने हीरामन से एक
अजीब सा सवाल पूछा, " अच्छा अंकल, यह बताइये थिएटर और फिल्म में क्या फर्क है?"
हीरामन सोच में पड़ गया। थिएटर को तो वह अच्छी तरह जानता था, लेकिन
फिल्म उसने आज तक नहीं देखा था। अब जिस चीज को अपनी नजर से नहीं देखा उसके बारे
में क्या कहे? हीरामन की चुप्पी पर सब
लडक़े हंस पड़े।
"आप को मालूम है फिल्म में काम करने वाला लड़का हीरो और लडक़ी
हीरोईन कहलाती है। " ---- मनोहर को फिल्मी गप्प करने का बड़ा शौक था।
"एक बात बताऊँ, फिल्म का एक हीरो देवानन्द एक दिन अपने घर से
काले लिबास में निकला, तो उसे देख कर एक लड़की बेहोश हो गई।" लड़के ने एक और
भेद खोला।
"इस्स --------- !"
हीरामन को यकीन नहीं आया।
लेकिन उसे याद आया, हीराबाई को जब पहली बार देखा था तो उसके भी होश
जाते रहे थे।
"हाँ! सच्ची घटना है, और सुनिए एक मजेदार बात ----- एक हीरोईन थी सुरैया, उस पर एक लड़का आशिक हो गया और जब तक जिन्दा
रहा, सुरैया की चौखट पर पड़ा रहा।"
“घोर आश्चर्य!” ----- हीरामन
ने सोचा। लेकिन पलट दास और लाल मोहर ने उसे महज बकवास समझा। "ई मनोहरवा सब
मनघड़ंत बात बोलता हैI"
ऐसी ही सच्ची और झूठी बातों के सहारे बीस कोस का रास्ता आसानी से कट
गया और फारबिसगंज के मेले की रौशनी दूर से नज़र आने लगी।
मेले के करीब पहुंच कर बैलगाड़ी रोक दी गई। सब से पहले हीरामन उतरा।
उसने चारों तरफ एक उचटती हुई निगाह दौड़ाई। वह एक खास जगह की तलाश में था। लेकिन
बरसों बाद यहाँ का नक्शा बहुत हद तक बदल चुका था। उसे इमली का वह बड़ा सा घना पेड़
दिखाई नहीं दिया जिसकी छांव तले वह बैलों को बांधा करता था। उसी पेड़ के
इर्द-गिर्द सब मेला प्रेमी इकट्ठा हुआ करते थे और रात गए ढोल - मंजीरा और तबला-
हारमोनियम पर भजन- कीर्तन और लोकगीत गाते थे। उसे अपने जमाने का एक गीत याद आया ‘----
चलत मुसाफिर मोह लिया रे पिंजरे वाली मुनिया
----' लेकिन यहां मुसाफिर को मोहने वाली पिंजरे की कोई मुनिया नज़र नहीं आ
रही थी। अभी वह अपना कोई ठिकाना बनाने के बारे में सोच ही रहा था कि पुलिस की
वर्दी में मलबूस दो आदमी डंडा घुमाते हुए आ धमके ----- " क्यों रे ----- कहाँ से आया है?" बैलगाड़ी के टप्पर पर अलता से लिखे गांव के नाम
को पढ़ने की कोशिश करते हुए एक ने कहा, "चल, दो गाड़ी के दो सौ निकालI"
"दो सौ? किस बात के भाई
----- ," हीरामन हैरान हुआ। इतने में लाल मोहर ने सौ-सौ के दो नोट
पुलिस की तरफ बढ़ा दिए। पुलिस का आदमी हीरामन को घूरता हुआ आगे बढ़ गया।
"बहुत दिनों के बाद आए हो ना हीरामन भाई, इसलिए तुम्हें नहीं
मालूम------ यह मेले का दस्तूर है। रूपये नहीं देंगे तो बैलगाड़ी मेले के अहाते से
एक कोस दूर रखना होगा। बैल साफ सुथरी जगह को गंदा कर देते हैं ना, इसीलिए ----- पर्यावरण का खयाल रखना पड़ता है।"
लाल मोहर ने हीरामन को समझाने की कोशिश की।
"परयावरण" ----- हीरामन की समझ में कुछ भी नहीं आया।
"अच्छा ठीक है, पहले कुछ जलपान हो जाए।"
जलपान पर सब राजी हो गए। हीरामन की रहबरी में काफिला मेले के अन्दर
दाखिल हुआ। सजे- सजाए होटलों में मुख्तलिफ नाम के बैनर टंगे हुए नजर आए ---- आदर्श जलपान गृह, कोसी मिष्ठान्न भंडार,
लॉली स्वीट कॉर्नर, बजरंगी वैष्णव होटल
------ हीरामन आगे बढ़ता गया। कहीं
भी उसे अपनी पसंद की चीज नज़र नहीं आ रही थी। इडली, डोसा, पावभाजी और चाउमीन के
बहुत से स्टॉल लगे हुए थे, लेकिन उसकी निगाहें कुछ और तलाश कर रही थीं। पलट दास
हीरामन की मंशा समझ गया। उसने हीरामन के कान में फुसफुसा कर कहा ---- "पूड़ी- जलेबी और दही- चूड़ा तो गांव
के हाट- बाजार में रोज़ खाते हो, आज
पावभाजी और पनीर- पकौड़ा चख कर देखो, बड़ा मजा आयेगा।"
हीरामन ने उसकी बात मान ली। वैसे भी मेले का रंग-ढंग उसे अच्छा नहीं
लग रहा था। लोफर- लुच्चे किस्म के लड़के हर तरफ हुड़दंग मचा रहे हैं और लड़कियां
सर्कस की करतब बाज की तरह इधर-उधर फुदक रही हैं। ज्यादातर लडक़े और लड़कियां
बोतलों में बन्द ठंडे शर्बतों पर टूट पड़े हैं। यह सब उंची आवाज में बोलती हैं और
बात- बात पर जोर से हंसती हैं। हीरामन ने सोचा, पता नहीं, अजीब व गरीब लिबास में
इतनी ढेर सारी लड़कियां मेले में कहाँ से आ गई हैं?
पेट को शांति मिली तो सब का मन अशांत होने लगा। मेले में लड़कों के
दिल बहलाने के लिए बहुत सी चीजें थीं, मसलन सर्कस, झूला, मौत का कुआँ, जादूघर----- धीरे-धीरे सारे नौजवान इधर-उधर
खिसक गए। लाल मोहर, पलट दास और हीरामन तीनों पुराने कम्पनी बाज दोस्त एक जगह रह गए।
हीरामन ने पहले सर्कस कम्पनी का सामान मेले पहुंचाया था, इसके बाद नौटंकी कम्पनी
की बाई को मेले तक लेकर आया था। इसीलिए गांव में यह लोग कम्पनी बाज मशहूर हो गये
थे। अचानक फ़िजा में एक तेज़ ज़नाना आवाज़ गूंजी ---- कांटा लगा ---- ऽ ऽ ----- आ ----। यह सुनते ही हीरामन दो कदम
पीछे हट गया। "क्या हुआ ----- किस को
कांटा चुभा ? ------ "
पलट दास और लाल मोहर खिलखिला कर हँस पड़े।
"अरे भाई! यह गाने की आवाज है, बिमला थिएटर कम्पनी के लाउडस्पीकर
से आ रही है। लगता है, शो शुरू होने वाला है।
हीरामन ने सोचा, यह कैसा गाना हुआ? कांटा लगा ----
गाना तो हीराबाई ने गाया था, आज भी उसे याद है ---- हाय गजब कहीं तारा टूटा -----
कहाँ तारा और कहाँ कांटा! एक आसमान पर तो दूसरा जमीन पर। आसमान के फैलाव से
जमीन का क्या मुकाबला? लेकिन उसने इस ख्याल को जेहन से झटक दिया। उसे ज्यादा सोच
विचार नहीं करना चाहिए।
तीनों दोस्त टहलते हुए विमला थियेटर के अहाते में दाखिल हो गये। टिकट
खिड़की पर पहले से लम्बी कतार लगी हुई थी। वे भी कतार में शामिल हो गए। हीरामन ने
कतार में खड़े- खड़े थिएटर के मुख्य दरवाजे पर लगे लम्बे चौड़े पोस्टर का जायज़ा
लिया। वहां नंगी, नाभी से ऊपर तंग चोली और कमर से नीचे रंगीन लहरियादार घाघरे में
बलखाती हुई एक दुबली पतली सी लड़की की तस्वीर पेंट की हुई थी। बालों का स्टाइल
पिंजरे वाली मुनिया के घोंसले जैसा था। नीचे लिखा था ---- 'आज के शो में देखिये नौटंकी की मशहूर
नर्तकी छमिया हेलन का आईटम डांस --- कांटा
लगा'
हीरामन को जोर की हंसी आई, ये क्या नाम हुआ? छमिया हेलन
----- ये किस देस की रहने वाली है? कानपुर की तो नहीं हो सकती। उसके सामने
हीराबाई का सरापा नाचने लगा। वह भी तो नौटंकी कम्पनी की नर्तकी थी, लेकिन पलट दास
कहता था ---- “बिल्कुल सती मैया की छवि है”
--- उसने अपना ज़ेहन टिकट खिड़की की तरफ मोड़ लिया “अन्दर जा कर देखेंगे, यह छमिया हेलन क्या बला
है!”
पन्द्रह- बीस मिनट गुज़रे होंगे कि अचानक कतार आगे से टूटने लगी।
हीरामन ने सोचा, शायद टिकट के लिए मारामरी होने लगी है। फिर देखते- देखते भगदड़ सी
मच गई। लोग अफरा तफरी में इधर उधर भागने लगे। थिएटर का मैनेजर लोगों से कतार खाली
करने के लिए कह रहा था ----- " चलो
हटो, भागो यहां से---- अब कोई टिकट नहीं कटेगा। बलदेव ठाकुर जी आए हैं दल- बल के
साथ, ---- साथ में एस पी और डी एम भी हैं।
पब्लिक लोग सब जाईये, कल आईएगा।"
थोड़ी ही देर में टिकट काउंटर खाली हो गया।
पलट दास, लाल मोहर और हीरामन तीनों थिएटर के अहाते से सरकते हुए निकले।
"ये बलदेव ठाकुर कौन है? "
हीरामन ने दरयाफ्त किया। "यहाँ के विधायक हैं, बाहुबली विधायक ----- समझ लो गांव के जमीन्दार का दूसरा रूप"
----- लाल मोहर ने उसे आगाह किया। अचानक हीरामन को वह जमीन्दार याद आ गया जिस ने
हीराबाई पर डोरे डालने की कोशिश की थी। उसके लिए थिएटर के मैनेजर ने उसकी मदद
भी की थी। लेकिन उसने कभी पब्लिक को
हड़काने की कोशिश नहीं की थी। यह विधायक तो जमीन्दार से भी गिरा हुआ आदमी है।
अचानक माहौल में एक उदासी सी छा गई।
"तो अब क्या करें? सर्कस के जोकर से दिल लगाएं, मौत के कुएं में
झांकें या जादूघर के अंदर जाकर भूत - प्रेत से बातें करें!” पलट दास ने शिगूफा छोड़ा। उसने सोचा, हीरामन
उसकी बात सुनकर खूब हंसेगा और माहौल की उदासी दूर हो जाएगी। लेकिन हीरामन के चेहरे
पर कोई भाव नहीं उभरा। वह अचानक बहुत संजीदा हो गया था। दफ़्अतन उसने पलट दास और
लाल मोहर से मुखातिब हो कर कहा ----- “सुनो, पलट दास और लाल मोहर ! ----- तुम दोनों गवाह रहना, मैं चौथी कसम
खाता हूँ, आईन्दा किसी मेले की तरफ रूख भी नहीं करूंगा --------------।“ ऐसा लग रहा था जैसे हीरामन किसी मेले में नहीं,
बल्कि गांव के चौपाल में हजारों लोगों के सामने खड़ा होकर अपना फैसला सुना रहा है।
पलट दास और लाल मोहर बैलों की तरह टुकुर- टुकुर
हीरामन को देखते रहे।
***
सम्पर्क: रफ़ी हैदर अंजुम, गाछी टोला, अररिया, ज़िला- अररिया, बिहार.
मो. 8002058079.
पेन्टिंग: सन्दली वर्मा.
Meri kahani ko shamil karney key liye intehaii shukrguzaar hun.
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