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संजय कुमार सिंह की कहानी-- विडम्बना

संजय कुमार सिंह
विडम्बना

कवि जी उर्फ राम बरन सिंह को जैसे ही यह शक हुआ कि उसे कोरोना हो गया है।डर से उसकी हालत पस्त हो गयी। घबराहट में उसकी साँस और फूलने लगी। सिर में दर्द,खाँसी, बलगम, छींक, बुखार..वह  भागा-भाग गया सदर अस्पताल। वहाँ पहले से बीच-पच्चीस लोग लाइन में थे। उसने भी पर्ची कटाई और खड़ा हो गया।

तेज कड़ी धूप में खड़े लोग बेसब्र हो रहे थे । डॉक्टर का कहीं पता नहीं था।हार कर हताशा में लोग चिल्लाने लगे।एक आदमी अन्दर रूम से मास्क लगाए निकल कर आया और डपटने लगा," काहे हल्ला कर रहे हैं जी?डॉक्टर साहब आएँगे तब न टेस्ट होगा..."

" कहाँ गए हैं डॉक्टर साहब?" रामबरन ने जवाब में कहा," कब आएँगे?हम लोग मर जाएँगे तब आएँगे क्या?"

" साढ़े बारह बजे आएँगे।!" आदमी ने बिगड़ कर कहा," तब तक शांति बनाए रखिए!"

...

साढ़े बारह बजे डॉक्टर आया, तो उसी कम्पाउण्डर ने कहा," सिर्फ पाँच लोगों का ही टेस्ट हो सकेगा।"

" और लोग?"

" और लोग कल आएँगे।"

काफी हो -हल्ला हुआ। आरजू-मिन्नत के बाद जाँच शुरु हुई। राम बरन किसी तरह जाँच कराने में सफल रहा। सभी मरीजों के सैम्पल लेने के बाद कहा गया," आप लोग तीसरे दिन आवें। कोरोना पोजीटिव होने पर इलाज होगा।"

" मतलब तब तक कोरोना  घर-परिवार में दूसरे-तीसरे आदमी को बाँटते रहें?" राम बरन ने गुस्सा होकर कहा," यही व्यवस्था है यहाँ?मजाक कर रहे हैं सवेरे से आप लोग। घर में लोग अलग चेहरा छुपा रहे हैं और अस्पताल में आप लोग टाल-मटोल कर रहे हैं... जानवर समझ रहे हैं?"

" आप भर्त्ती हो जाइए!"

 "कहाँ ?"

" कोविड वार्ड में!" डॉक्टर ने कहा,"ऐ सुचीन ले जाओ इस आदमी को!"

रामबरन को पक्का यकीन हो गया था कि उसकी रिपोर्ट पॉजिटिव आएगी।घर जाकर पत्नी बच्चे को मौत के मुँह में धकेलने से बढ़िया क्वारंटीन सेंटर में रहे। लेकिन बाकी मरीज  रिरिया कर लौट  गए!

...

छ:बेड वाले उस कमरे में ले जाकर उसे सचिन नामधारी व्यक्ति ने एडमिट कर दिया गया। वह लेट गया । उसका माथा चकरा रहा था। प्यास लग रही थी। उसने थैला से पानी निकाल कर पीया।कमरे के एकांत का मुआयना किया फिर सो गया।

करीब आठ बजे उसकी नींद खुली, तो उसकी धक धक तेज थी।

गर्म हवा साँसों को छील रही थी। वह दरवाजा पीटने लगा, पर दरवाजा बाहर से लाॅक था, वह सन्न रह गया। पाँचो बेड पर उसे कोरोना से ग्रस्त मरीज दम तोड़ते दिखे, ये कब आए?इन्हें क्यों किट में पैक किया जा रहा?उसने माथा को झटका दिया, तो फिर सब पहले जैसा हो गया! डर से वह और लबे-जान हो गया।

हे भगवान!सब बन्द कर के चले गए। उसने मन ही मन सोचा और मोबाइल से फोन करना शुरु किया,' देखिए मुझे बन्द कर दिया है, आप लोग कुछ कीजिए... प्लीज हेल्प मी... मुझे बचाइए मुझे अकेले डर लग रहा है इस कमरे में..."सोशल मीडिया पर  मेरी इस  संकटपूर्ण स्थिति को शेयर करें।"

बार-बार पत्नी का फोन आ रहा था। वह कह रही थी," हिम्मत से काम लीजिए। कुछ नहीं होगा।"

रामबरन बेचैनी में बदहवास मोबाइल घुमाते हुए कमरे में चक्कर मारने लगा, खिड़की के बाहर शहर की बत्तियाँ जल रही थीं। शहर उसके दुख से निर्विकार सोने की तैयारी कर रहा था। वह फिर गेट पीटने लगा, " सुचिन जी ! सुचिन जी!"

तभी फोन की घंटी बजी। खोज पत्रिका के संपादक  विजय प्रकाश का फोन था," कवि जी अस्पताल की हालत बताइए। कल की लीड खबर रहेगी यह?आपके मैसेज को पढकर कण्टेक्ट नम्बर पर फोन लगाय है मैंने...."

" संपादक जी !मैं यहाँ कोविड वार्ड में अकेले बंद हूँ। बाहर से दरवाजा बन्द है। कोई व्यवस्था नहीं है यहाँ... मेरी धड़कन तेज हो गयी है, बुखार से तप रहा हूँ। मुझे लगता है इससे बढ़िया आदमी न होकर मैं किसी गली का कुत्ता रहता । कम से कम कोरोना तो नहीं होता। कोई इन्तजाम नहीं है... सरकार नाहक गला बजा रही है..."

" ठहरिये!" संपादक विजय प्रकाश ने कहा," सी.एस. को फोन लगाता हूँ। आप हौसला बनाए रखिए।"

रात राम बरन के सीने पर बैठी हुई थी , उसकी हर साँस को दबोचती हुई, हौसला अगर किसी चिड़िया का नाम था, तो वह दम तोड़ रही थी।। करीब आधा घंटा बाद आहट हुई।

" खट!"

उसने दरवाजा खोला,"डॉक्टर साहब!"

" नहीं, मैं स्वीपर किशन लाल!"

" दरवाजा कौन बन्द किया?"

" भूल से खाली समझ कर लगा दिया होगा कोई।" उसने सकपका कर कहा,

" क्या?" राम बरन चौंका," अगर मोबाइल नहीं रहता तब...यहाँ इलाज होता है कि मारने का काम?"

" लीजिए खाना खाइए।" किशन लाल ने कहा," टेबलेट भी है बुखार का..."

" तुम डाक्टर हो?"

" नहीं।"

" फिर दवा?"

" आपका सैंपल टेस्ट में गया होगा।" किशन लाल ने गेट के बाहर से कहा," रिपोर्ट आने पर ही न इलाज होगा...बुखार की दवा है।"

" तो रात भर मैं यहीं रहूँगा?" उसने चिढ़ कर कहा, "मुझे साँस में तकलीफ हो रही है..."

" आप जल्दी से खाइए!" किशन लाल ने कहा," मैं स्वीपर हूँ, डाॅक्टर नहीं। ऊपर से सिविल सर्जन साहब को फोन आया है आई. सी.यू. में चलना है आपको। आगे क्या होगा, डाॅक्टर ही बतलाएँगे..."

" चलो।"

"नहीं खाइए सर!" किशन लाल ने कहा, " कोरोना में भूखा रहना खतरनाक है... इतना खतरनाक रोग कि घर और बाहर दुनिया वीरान है... पर मैं नहीं डरता। अभी एक मियाँ मरा इदरीस! बूढ़ा था । पैक करने के समय गार्डेन से फूल नोंच कर डाल दिया मैंने... जहाँ ले जाएँ नगरपालिका वाले..."

राम बरन सिहर गया।

"मुझे भी दे देना।"

" अरे आप क्यों मरने लगे।" वह झेंप गया।

...

खाना खाकर रामबरन किशन लाल के साथ आई.सी.यू. पहुँचा । उसे देख कर एक डॉक्टर भड़क उठा," क्या -क्या लिख रहे हैं आप सोशल मीडिया पर?क्या बात है?क्यों परेशान कर रहे हैं?" डाक्टर ने रूखे स्वर में सवाल करना शुरु किया।

" सर साँस में तकलीफ है!" राम बरन ने टूट कर कहा," मुझे यहीं भर्त्ती कर लीजिए... ऑक्सीजन लगा दीजिए!"

" आप डॉक्टर हैं?"

" मतलब?"

" ऑक्सीजन की अर्जेंसी होगी तब न!" डॉक्टर ने बेलौस हो कर कहा," पहले रिर्पोर्ट तो देख लें।पॉजिटिव नहीं निकला तब?"

" निकला तब?"

" तब इलाज होगा।"

" तब तक?"

" घर में रहिए या फिर आइसोलेशन रूम में।"

" अकेले?"

" तो दूसरे को कहाँ से लाया जाएगा?"

" अजीब बात है।"  उसने उखड़ कर कहा," रूम क्यों बाहर से बन्द किया गया? "

"आप होम क्वारंटीन में रहिए रिपोर्ट आने तक।"

राम बरन वापस लौट आया। किशन लाल ने कहा," आप रहिए सर! कल कुछ इन्तजाम हो जाएगा। इमर्जेंसी के लिए मैं हूँ।"

" गेट नहीं लगाओगे।"  उसने कड़क कर कहा।

" ठीक है।" किशन लाल ने कहा," मैं राउण्ड पर रहूँगा।"

रात आँखों  में कटी । सुबह हुई, तो उसे लगा वह जिन्दा है।मुर्गे की बाँग की आवाज साफ आ रही थी। उठकर उसने मुँह-हाथ धोया और योग किया।गिलोय का रस पीया। किशन लाल ब्रेड और चाय दे गया। फिर वही खेल।मरीज आने लगे। सरकार कोरोना को रोकने में विफल थी। उसे याद आया एक बार बाढ़ की विभीषिका में वह गाँव में इसी तरह फँस गया था। पन्द्रह दिनों तक। भूखे-प्यासे। पानी-महामारी। आज फिर वैसी ही विडम्बना!

फोन की घंटी बजी," कौन?"

" राहुल!"

" बोलो!"

" आप किससे पूछ के क्वारंटीन हुए?"

" मतलब?"

" आइए घर में रहिए!"

" घर में कौन इलाज होगा?"

"वहाँ कौन इलाज हो रहा है...?"

" वहाँ जाने पर  मुहल्ले वाले तुम लोगों से भी..."

" वह सब हो रहा है" राहुल ने कहा,"अखबार और दूध बन्द!"

"हिम्मत रखो!" रामबरन भावुक हुआ, बहिश्त में मुल्ला नसरुद्दीन!उधर भी आफत। कोई बुलाकर तो नहीं बीमार होता कि आओ कोरोना गले पड़ जाओ!

"हमलोग चिंतित हैं पापा, माँ रो रही है... अंशु भी!" राहुल की आवाज भर्रा रही थी।

"रिपोर्ट आने दो!"  उसने सख्त आवाज में कहा।

....

राम बरन सिंह  की रिपोर्ट कोरोना पॉजिटिव आयी! डॉक्टर ने उसे आई.सी.यू. में भर्त्ती किया और कहा," कोरोना के मरीज को अपनी जीवनी -शक्ति पर भरोसा रखना चाहिए। इस रोग का माकूल इलाज नहीं है, मगर मृत्यु दर बहुत कम है!'

" जी सर!"

" ईश्वर पर भरोसा रखें।"

रामबरन को अपने फैसले से संतोष हुआ ,क्या होगा वह मर जाए, परिवार तो बचेगा। अभी वह अगर परिवार में लौटता, तो अजीब तमाशा हो जाता।लेकिन उसकी सूझ-बूझ से ऐसा हुआ नहीं। परिवार के लोगों का बाद में जो सैंपल लिया गया, वह निगेटिव आया। चलो मालिक ने इतनी रहम तो की!

" हैलो..." मन घबराया, तो उसने इमर्जेंसी में फोन लगाया।

" अब क्या है?"

" मुझे फिर साँस लेने में तकलीफ हो रही है..."

" ऑक्सीजन लगा लीजिए।"

" अपने से..?"

" नहीं लगा सकते..?" नर्स बिगडी," सब को बता दिया है.."

" दवा...?"

" आधा घंटा पर।"

" क्या आधा घंटा पर?" वह चीखा," लेप्रोसी वार्ड है क्या?"

कट! उसने हार कर ऑक्सीजन मास्क लगाया और बोतल में बुलबुले पर ध्यान केंद्रित किया। ऑक्सीजन चल रहा था। वह या कोई और कर क्या सकता था!रात दहशत की तरह दहक रही थी आँखों में... लाचारी और बेबसी  के साये मे जाने कब किसकी जिन्दगी गुम हो जाए...

 

सुबह भी रामबरन को महसूस हुआ कि उसकी तकलीफ कम नहीं हुई है, लेकिन करीब बारह बजे दिन में कुछ पुलिसकर्मी,आई. ए. एस. अधिकारी और सात-आठ डाक्टर ने उसे बुलाया और दूरी रखते हुए कहा ,"घर जाइए।अब होम कोरोनटाइन में रहिए।"

रामबरन ने इनकार करते हुए जवाब दिया,"फिर मेरा कोरोनावायरस टेस्ट और छाती का एक्स रे हुआ है रिपोर्ट नहीं बतलाया गया है। इस परिस्थिति में मैं कैसे जा सकता हूँ?"

"नहीं आप बॉन्ड भर कर दें कि मैं अपनी इच्छा से होम कोरेनटाइन में जाना चाहता हूँ।"

"मतलब? उसने फार्म पर दस्तखत करने से मना करते हुए कहा," यह कैसे हो सकता है? अभी भर्त्ती हुआ, अभी ..."

"नहीं जाना होगा।"

"मैं नहीं जाऊँगा।"

सुप्रीटेंडेंट से बात करने पर उन्हौंने कहा,"पेशेंट को शूगर,बी पी है और उम्र भी पचास प्लस है, तो वह डेंजर जोन में है।"

अधिकारीगण अपना सा मुँह लेकर खीझते हुए लौट गए।

उसे कुछ समझ में नहीं आया,यह क्या नया झमेला है, यहाँ अस्पताल में डाक्टर है,आक्सीजन है।घर पर उसका इलाज कौन करेगा? डेंजर जोन के कोरोना पेंशेंट के साथ यह क्या हो रहा है?क्या सोशल मीडिया पर सच रखने के कारण सिस्टम जान लेने पर तुल गया है?उपेक्षा और अनावश्यक दबाव से वह और घबरा उठा! उसकी तबीयत और बिगड़ गयी,उन लोगों के जाने के बाद किशन लाल के कहने पर वह जाकर बिस्तर पर लेट गया। उनके चेहरे लगातार बनैले बिल्ले की तरह दिमाग में घूम रहे थे... फाड़ कर खाने के लिए बेचैन!

         ...

एक रोज, दो रोज, तीन रोज। रोज-रोज!

राम बरन की हालत में विशेष सुधार नही था। अस्पताल की लापरवाही और कोरोना मरीज की बढ़ती संख्या से उसकी चिंता और बढ़ती जा रहा थी। डॉक्टर अलग संक्रमित हो रहे थे। किसी-किसी मरीज की हालत देख कर वह मन ही मन रो पड़ता। जकड़ती साँसों और मौत की चीखों के बीच  उसे लगा कि उसे अपना आखिरी संदेश लिखना चाहिए।

उसने मोबाइल ऑन किया, "एक वोट की कमी या कुछ वोटों की कमी से लोक-तंत्र का कुछ नहीं बिगड़ेगा। लेकिन जब भी तुम जीत का झंडा फहराओगे, हमारीआत्मा चीख कर कहेगी कि हम कीड़ा-मकोड़ा नहीं थे, जिन्हें तुमने मरने के लिए छोड़ दिया। मीडिया पर तुम्हारे प्रलाप झूठ का साम्राज्य नहीं तो क्या है?... रामेश्वरी, अंशु और राहुल  तक यह बात पहुँचे कि आजदी और नागरिक अधिकारों का मतलब .....खुद से उम्मीद है, सरकार से नहीं!" राम बरन ने करवट बदली," यह तय है कि अब मैं बचूँगा नहीं। उन तमाम लोगों की तरह मेरे सपने भी बिखर जाएँगे... जिनका मलाल आने वाले समय में किसी को नहीं होगा! लोग भूल जाएँगे। उड़िया भाषा के कवि वरवर राव पर किसी ने एक कविता पोस्ट किया है, जो ऊपर से तो ठीक नहीं है, पर क्रूर सच है-

 

कवि तुम्हें अब कोई याद नहीं करेगा

भूलना हम सब कि नियति है

हम भूल जाएँगे।

तुम्हारे गीत धरे रह जाएँगे खेतों में

तुम्हारे नारे झंडों और पोस्टरों से लिपट कर फड़फड़ाएँगे

हवा में उड़ेंग पत्ते की तरह टूट कर 

रौंदे जाएँगे वक्त के पैरों तले!

यह अलग बात है

कि पहली बारिश में जब कभी

शब्दों के बीज

फूल बन कर खिलेंगे

हम उनके रंगों

और सुगंधों से

अपना घर भर लेंगे।

मगर तब भी तुम बेदखल ही रहोगे

एक मजदूर की तरह  उस फसल से

जिसमें पानी बन कर तुम्हारे श्रम का लहू बहता है

आलोचना की किताबों में कुछ लोग 

तुम्हारी आस्था की हत्या कर

नई स्थापना को जन्म देंगे

यही तुम्हारी विरासत होगी

यही श्रद्धांजलि

तुम अपने ही लोगों से

छले जाओगो!

 

सोचो, क्या दुर्गति है देश की! अपने पैरों पर अगर भरोसा नहीं रखोगे तो कुचल दिए जाओगे, देखो एक कोरोना  की आपदा नहीं संभल रही, तुम ऐसे लोगों को भविष्य कैसे सौंप सकते हो?राहुल तुम इन्जीनियरिंग का अपना कोर्स पूरा करना। अंशु की पढ़ाई भी नहीं रुके! मेरा अंतिम -दर्शन मन ही मन करना। इधर भूल से भी मत आना! अलविदा!यह जान कर किसी को हैरत नहीं होनी चाहिए कि हमारे लिए कुछ फूल सिर्फ किशन  लाल की जेब में बचे पड़े हैं। जय हिन्द! जय भारत!

...

लेकिन अब इसे जो कहिए कोरेना को दया आयी  कि राम बरन ने उसे पछाड़ा। वह बच गया। करीब एक महीना जूझने के बाद वह कोरोना के चंगुल से सुरक्षित बचकर निकल आया। एक रोज मिलने-जुलने आए 'खोज 'पत्रिका के संपादक के मजाक में यह पूछने पर कि अब उस 'संदेश’ का क्या होगा, जो कोराना वार्ड में लिखा गया राम बरन जी?एक कवि का संदेश कह कर  छाप दें खोज में? कितना इमोशनल बयान दिया है आपने... भाभी जी का तो फ्यूज ही उड़ गया होगा। हम लोग भी दुखी हे गए थे।"

 कवि जी ने कुछ सोच कर कहा,"आप लोगो का अहसान तो है ही, अभी संदेश की बात छोड़िए,पर किशन लाल के बारे में कुछ जरूर लिखिए, वह देवदूत है कोरोना रोगियों के लिए। उसकी सेवा की बदौलत रोगी जी रहे हैं। रोगियों की पीड़ा को केवल वही समझता है...डाक्टर जब जी चुराते हैं, तब वह जान हारते मरीजों को दम देता है।"  

" कौन किशन लाल?"

"अस्पताल का स्वीपर!"

"वह तो मर गया परसों!" संपादक जी ने कहा," उसे कोरोना हो गया था।उसके घर के लोगों ने बड़ा हंगामा किया अस्पताल में कि डॉक्टरों की गलती से उसकी जान गयी। हर जगह उससे ही काम लिया जाता था....सी.एस. का पानी उतार दिया।"

राम बरन का चेहरा हवा में लटक गया। किशन लाल कोरोना का ग्रास कैसे बन गया? उसे न सिर्फ उसकी मौत का दुख हो रहा था बल्कि उन मरीजों का खयाल आ रहा था, जिन्हें कोरोना के खतरनाक गैस चेम्बर से हौसला देकर किशन लाल निकालता था,"अरे ई कोई रोग है सर पछाड़ते-पछाड़ते अपने पछड़ जाता है, खाली डरिए नही, हिम्मत रखिए..." उसे लग रहा था, जैसे उसके शब्द हवा में फड़फड़ा रहे हों!

                      ***

 

संपर्क: संजय कुमार सिंह, प्रिंसिपल, कोसी नर्सरी के समीप , युमाना नगर, चुनापुर रोड, वाया-मधुबनी, पूर्णिया- 854301

मो. 9431867283.

पेन्टिंग: सन्दली वर्मा 

 

 

 


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