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मनोज कुमार झा के द्वारा ज़िज़ेक के इन्टरव्यू का रूपान्तर

मनोज कुमार झा के द्वारा ज़िज़ेक के इन्टरव्यू का रूपान्तर

क्या उदारपंथी और लोकरंजकतावादी लोग मालिक की तलाश में हैं?

   हाल के सालों में लोकरंजकतावाद, देशीवाद और राष्ट्रवाद के उभार ने लोगों की राय को बदला है कि जनता  राजनेताओं से क्या अपेक्षा रखती है? कुछ लोग प्रतिष्ठान-विरोधी प्रवृत्ति को केन्द्रीकृत सत्ता के अस्वीकार की तरह देखते हैं, वहीं कुछ लोग कहते हैं कि असली तलाश एक नैतिक सत्ता की है, जो आज के पूंजीवाद में नहीं दिखती।

दूसरी तरह के लोगों में दार्शनिक स्लावोज जिजेक भी है। वे राजनीतिक तौर पर सही दिखने वाली अपील की आलोचना करते हैं, बिना राज्य के हस्तक्षेप के बाजार के बचे रहने की क्षमता को प्रश्नांकित करते हैं और फेयर ट्रेड के रसायन के पीछे के निहित स्वार्थ को सामने लाते हैं। अपनी हालिया किताब, Like a Thief in Broad Daylight'  में इस समय के सामाजिक परिवर्तन के बदल रहे स्वभाव की वह छान-बीन करते हैं, जिसे वह उत्तर-मानवता का युगकहते हैं। द इकॉनमिस्ट के ओपन फ्यूचर इनिशिएटिव के तहत उन से पाँच सवाल पूछे गए हैं।

द इकॉनमिस्ट - उत्तर मानवताके युग से आपका क्या तात्पर्य है? इसका चरित्र-चित्रण कैसे किया जा सकता है?

जिजेक - यह प्राथमिक तौर पर उत्पादन की प्रक्रिया में ऑटोमेटिक चीजों एवं रोबोट की भागीदारी ही नहीं है बल्कि उससे बढ़कर सामाजिक नियंत्रण और नियमन में विज्ञान, मशीन और डिजिटल मीडिया की बढ़ रही भूमिका है। हमारे सभी कार्यों और आदतों को विस्तृत तौर पर दर्ज करना डिजिटल मशीन को यह क्षमता दे देता है कि हम लोगों को, हमारे चित्त तक को, वे हमसे भी बेहतर ढंग से जान सकें। इस तरह सामाजिक नियंत्रण को सर्वसत्तावादी’’ ढंग से काम करने की जरूरत नहीं रह जाती बल्कि सूक्ष्म प्रभुत्व के द्वारा हमें पहले ही अभिचालित और नियंत्रित किया जा चुका होता है। जबकि हम अपनी आवश्यकताओं और कामनाओं के अनुसार आजादी के साथ व्यवहार कर रहे होते हैं। फिर वह शै जो उत्तर मानवतापद को औचित्य प्रदान करती है, उसका एक और पहलू है- वह है हमारे दिमाग से डिजिटल नेटवर्क को सीधे जोड़ देने की संभावना। जब यह होता है, तो बाहरी यथार्थ और मनुष्य के आंतरिक जीवन के बीच की बुनियादी दूरी खत्म हो जाती है, जहाँ स्थित होकर हम जो चाहते हैं, वह सोच सकें। अपने विचारों के द्वारा हम यथार्थ में सीधे हस्तक्षेप कर सकते हैं  लेकिन मशीन भी साफ तौर पर यह जानती है कि हम क्या सोचते हैं।

अपने आखिरी सालों में स्टीफेन हॉकिंग ने दुनिया से संवाद करने की प्रौद्योगिकी के साथ प्रयोग किया, जिसके तहत उनके दिमाग को सीधे कम्प्यूटर से जोड़ दिया गया। इससे उनके चिंतन के शब्द और वाक्य-विन्यास मशीन द्वारा चुने जाने लगे। इसे वॉयस सिंथेसाइजर से रिले किया गया, जो इसे आवाज देने लगा। जेमसन ने रेखांकित किया था कि आज कल पूंजीवाद के अंत की तुलना में दुनिया के अंत की कल्पना करना बहुत ज्यादा आसान है। यह व्यंग्यपूर्ण अन्तर्दृष्टि आज सच होने जा रही है, जहां लगता है कि पूंजीवाद बदले हुए रूप में अंत तक बचा रहेगा किन्तु पृथ्वी के अंत तक नहीं, मानवता के अंत तक।

द इकॉनमिस्ट - बे्रग्जिट एवं लोकरंजकतावादी राजनेताओं के उभार से लगता है कि मतदाता पूंजीवाद के ज्यादा सख्त प्रभाव से अपना बचाव करना चाहते हैं। इसलिए, दुनिया का अंत कल्पित करना अभी भी आसान लगता है बनिस्पत माग्रेट थैचर एवं रीगन से जुड़े मुक्त बाजार की आम सहमति के। 

जिजेक - मेरी समझ में लोकरंजकतावाद पूंजीवाद को इसके ज्यादा सख्त प्रभावों के बगैर कल्पित करता है।  एक ऐसा पूंजीवाद, जिसमें विध्वंसक सामाजिक प्रभाव नहीं है।

लोकरंजकतावाद, आज के लोगों के लिए दो तरह से अफीम है - रसायन (अपने वैज्ञानिक रूप में) हमारा हिस्सा बनता जा रहा है। हमारे जीवन का बड़ा हिस्सा रासायनिक पदार्थों के द्वारा प्रबंधित हो रहा है, जिसमें अवसाद और नींद की दवाओं से लेकर कड़े नशीले पदार्थ तक शामिल हैं। हम अभेद्य सामाजिक शक्तियों द्वारा नियंत्रित किये जा रहे हैं। हमारी भावनाएं खुद ही रासायनिक उत्तेजना द्वारा प्रभावित हैं। पश्चिम में लोगों की आवेशपूर्ण सार्वजनिक हिस्सेदारी में अधिकतर जनरंजकतावादी घृणा है, और यहीं दूसरे अफीम की बात आ जाती है।

द इकॉनमिस्ट - 1968 में लाका ने विरोध प्रदर्शन करनेवाले छात्रों को कहा था कि आप क्रांतिकारियों के रूप में जो चाह रहे हैं, वह एक नया मालिक है और आपको एक नया मालिक मिलेगा। क्या लोकरंजकतावादियों एवं तथाकथित मजबूत आदमी की अपील की वह कामना है, जो उदारवादी जनतंत्र उन्हें प्रदान नहीं कर सकता?

जिजेक-लेकिन उससे अलग रूप में, जो 1968 की उथल -पुथल के निराशावादी पाठ के तहत लाका के मन में था। 1968 का परिणाम मालिक के पुराने एकसत्तावादी रूप का पतन और सत्ताधारी के रूप में विशेषज्ञों का उत्थान था, जिसका उन्होंने विश्वविद्यालयी विमर्शके तौर पर नामकरण किया था।

इस पर विचार करें कि आजकल आर्थिकी कैसे काम कर रही है। यह राजनीतिक इच्छा और सकारात्मक सामाजिक दृष्टि का प्रतिफल नहीं है, बल्कि पक्षरहित ज्ञान का परिणाम है। इसके अनुसार इसे करना है क्योंकि इसी तरह से बाजार काम करता है।

20140 के यूरो संकट के दौरान जिस तरह ब्रुसेल्स ने काम किया, उसे याद करें। कोई बहस नहीं, बस इसे करना है। मेरी समझ में आज का लोकरंजकतावाद इस तथ्य की प्रतिक्रिया में है कि उसके विशेषज्ञ दरासर उनके मालिक नहीं है, उनकी विशेषज्ञता काम नहीं कर पा रही है। 2008 की वित्तीय मंदी को याद करें, यह विशेषज्ञों के सामने औचक रूप से प्रकट हुई। इस नाकामयाबी की पृष्ठिभूमि में पारंपरिक सत्तावादी के तौर पर मालिक की वापसी हो रही है, भले ही वह विदूषक हो। ट्रंप कुछ भी हो, विशेषज्ञ नहीं हैं।

द इकॉनमिस्ट - तो क्या आप नये स्वामी का उदभव चाहते हैं।

जिजेक - आश्चर्यजनक लगेगा, हां। लेकिन किस तरह का? हम आमतौर पर स्वामी को इस रूप में देखते हैं कि वह वर्चस्वशाली होता है। लेकिन स्वामी का एक ज्यादा विश्वसनीय रूप भी है। सही स्वामी अनुशासन और निषेध का अभिकर्ता नहीं है। उसका संदेश यह नहीं है कि तुम यह नहीं कर सकतेया तुमको यह करना होगाबल्कि तुम कर सकते हो। जो असंभव है वह करो, वह करो जो आज के ताने-बाने में असंभव है। इसका अर्थ बिल्कुल स्पष्ट है - तुम हमारे जीवन के अंतिम फ्रेमवर्क के रूप में पूँजीवादी और उदारवादी गणतंत्र के पार देख सकते हो। स्वामी लोपमान मध्यस्थ है, जो हमें, हमको वापस करता है, हमें स्वतंत्रता के गहरे कूप के हवाले कर देता है। जब हम असली नेताओं को सुनते हैं, तो हम जान पाते हैं कि हम क्या चाहते हैं, जिसे हम हमेशा से चाह रहे थे। बिना उन्हें जाने स्वामी की जरूरत है क्योंकि स्वतंत्रता की ऊँचाई तक हम खुद नहीं जा सकते हैं क्योंकि हमारी प्राकृतिक अवस्थानिष्क्रिय सुखवाद की है।

निहित विरोधाभास यह है कि हम जितना ज्यादा बिना स्वामी के स्वतंत्र व्यक्ति की तरह जीते हैं, उतना अधिक हम प्रभावी तौर पर स्वतंत्रता विहीन होते हैं। हम उपलब्ध संभावनाओं के वर्तमान फ्रेम में फंसकर रहते हैं। हमें स्वतंत्रता की तरफ स्वामी द्वारा धकेले जाने की जरूरत है।

द इकॉनमिस्ट - आपने डिजिटल ग्रिड को कब्जा करने की बात कही है लेकिन बड़ी तकनीकी फ़र्मों को हम साधारण लोग कैसे कब्जा कर सकते हैं। जबकि हममें से बहुत कम लोग अलोगरिद्म को समझने के काबिल हैं ?

जिजेक - सही बात है बहुत लोग अलोगरिद्म का विवरण नहीं जानते लेकिन यह बात आसानी से जान सकते हैं। हम इस बात को आसानी से जान सकते हैं कि डिजिटल ग्रिड के द्वारा कैसे नियंत्रित किये जा रहे हैं। साथ ही विशेषज्ञ भी नहीं जानते कि डिजिटल ग्रिड असल में कैसे काम करती है। इसके अतिरिक्त जो लोग इस ज्ञान का उपयोग करते हैं वे भी तकनीकी ब्योरों को नहीं जानते ?

क्या आपको लगता हैं कि जब स्टीव बैनन कैम्ब्रिज ने अनालिटिका का उपयोग किया तो वह काम के अलोगरिद्मीय ब्योरों को जानते थे? या पारिस्थितिकी को लीजिए। ग्लोबल वार्मिंग और ओजोन छिद्र की बाबत जानने के लिए उस विज्ञान की जरूरत है, जिसे हममें से अधिकतर लोग नहीं समझते लेकिन हम पारिस्थितिकीय दुर्घटनाओं के खिलाफ लड़ते हैं।

यहाँ जोड़-तोड़ के खतरे हैं लेकिन हमें इसे स्वीकार करना होगा। हमें साधारणजन के स्वतःस्फूर्त ज्ञान में अनुभवहीन विश्वास को छोड़ना होगा। यह हमारे युग का विरोधाभास है कि हमारा नितांत साधारण दैनिक जीवन वैज्ञानिक ज्ञान के द्वारा नियंत्रित है और इस नियंत्रण के खतरे हैं, जो कि अकसर अदृष्य हैं। इससे न्यू एज विज़डम या सहज ज्ञान से नहीं लड़ा जा सकता, हम कुछ अलग तरह के ज्ञान के द्वारा यह कर सकते हैं, इससे लड़ सकते है।

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सम्पर्क: jhamanoj100@gmail.com

पेन्टिंग: सन्दली वर्मा

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पेन्टिंग: सन्दली वर्मा.  

               


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