नंगानाच रैगिंग के बारे में बस उड़ते-पुड़ते सुना था। ये कि सीनियर बहुत खिंचाई करते हैं, कपड़े उतरवाकर दौड़ाते हैं, जूते पॉलिश करवाते है, दुकानों से बीड़ी-सिगरेट मँगवाते हैं और अगर जूनियर होने की औकात से बाहर गये तो मुर्गा बना देते हैं, फर्शी सलाम लगवाते हैं, नही तो दो-चार लगा भी देते हैं। बस। पहली पहली बार जब डी.जे. हॉस्टल पहुँचे तो ये सब तो था ही, अलबत्ता कुछ और भी चैंकाने वाले तजुर्बे हुए-मसलन, सीनियर अगर पीड़ा पहुँचाते हैं तो प्रेम भी करते हैं। किसी संजीदा सीनियर की छाया मिल जाय तो रैगिंग क्या, हॉस्टल की हर बुराई से बच सकते हैं। वगैरह-वगैरह......। एक पुराने खिलाड़ी ने समझाया था कि रैगिंग से बोल्डनेस आती है , और बोल्डनेस से सब कुछ। रैग होकर आदमी स्मार्ट हो जाता है। डर और हिचक की सच्ची मार है रैगिंग। रैगिंग से रैगिंग करने वाले और कराने वाले दोनों का फायदा होता है। धीरे-धीरे ही सही , रैगिंग के साथ बोल्डनेस बढ़ती रहती है। असल में सीनियरों को यही चिंता खाये रहती है कि सामने वाला बोल्ड क्यों नहीं है। पुराने खिलाड़ी ने आगे समझाया था कि अगर गाली-गलौज , डाँट-डपट से बचना
aap har nayi subeh ki tareh purani yaadon ko naya kar deti hain.
जवाब देंहटाएं:)
जवाब देंहटाएं