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अक्तूबर, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं
ग़ज़ल  मैं दुखों में  मुब्तिला  था हुई  शायरी  नुमायाँ  किसे फ़िक्र थी अदम है के है ज़िन्दगी नुमायाँ  कभी हंस के आंसुओं में ,कभी रो के क़ह्क़हों में  ये वही है दर्दे-पिन्हाँ जो है हर घड़ी नुमायाँ मैं मुहब्बतों का शैदा मेरा दिल उदास क्यूं है  मुझे खौफ़ है ये शायद न हो आशिक़ी नुमायाँ  वो ये कह रहा है मुझसे के सफ़र में साथ है तू  मगर उसकी तेज़कदमी से है बेरुख़ी नुमायाँ        मेरी ज़ब्त ज़ब्त शिद्दत से लगा के हो रही है  मेरी चाहतों से ज़्यादा मेरी बेबसी  नुमायाँ  मैं जुनूँ के दर पे जाकर कई बार लौट आया  ये तो ऐसी थी परस्तिश न हो बंदगी नुमायाँ   जो टपक रहा दिल में वो लहू है ,क्या है 'कुंदन' इसी शम्म से ग़ज़ल की हुई रोशनी नुमायाँ     *********************
ग़ज़ल  ख़्वाब फिर ख़्वाब है अच्छा है बुरा है क्या है  और वो दर्द जो सीने में उठा है क्या है  अश्क तो  है नहीं फिर आँख से टपका क्या है  तेरे क़दमों पे जो यकलख्त  गिरा है   क्या है  मुतमईन मुझसे नहीं है मेरे ख़्वाबों का सफ़ीर आँख पे नींद का नश्शा जो चढ़ा है क्या है     चलते चलते हुए क्यूं पाँव ठिठक जाते है  जो तेरी याद का इक क़र्ज़ चुका है क्या है  वो भला क्या है जो चलने से न बाज़ आता है  और तहे-सांस जो सदियों से रुका है क्या है  बात करते हुए ख़ामोश नज़र आते हो  और ख़ामोशी में मैंने जो सुना है क्या है  वैसे कहने को तो 'कुंदन' ने बहुत कुछ है कहा  चाहकर भी जो क़लम कह न सका है क्या है  *******************************
कभी-कभी मुझे लगता है कभी-कभी मुझे लगता है ऐसा हो जाए कहीं पे दर्द मिले और कहीं पे खो जाए मैं ढूँढ़ता फिरूं बेचैन और बेकल होकर बन के सौदाई भटकता ही रहूँ मैं दर-दर निशाँ न कोई मिले और न कुछ सुराग़ मिले हमेशा दिल पे हो रोशन कुछ ऐसा दाग़ मिले दीदाए-तिश्ना सफ़र पे रहूँ हरेक लम्हा हमेशा आँख से ओझल रहे वो दर्द मेरा वो एक पल भी तो आए कभी के आँख लगे गुनूदगी मेरी धुंधला सा कोई ख़्वाब बुने ख़्वाब में भी तो नज़र आए वो मुब्हम पैकर मैं जिसको उम्र भर ढूंढा किया बेकल होकर और फिर टीस उठे सीने में इस तरह उठे के उसके बाद तो इमकाने-दर्द ही न रहे लोग आएं तो गिरां नींद में सोया देखें गहरी ख़ामोशी में हंसता हुआ चेहरा देखें **************** i
ग़ज़ल  सांस लेना है क्या बस अपने को भरमाना है  आमदो-रफ्त रहे  यूं  ही जिए  जाना  है   छोड़िए,अब उसे किस बात का समझाना है  हम समझ लेते हैं,सबका अलग पैमाना है     हम भी  बाज़ार के आदाब से अनजान नहीं  जिन्स हम हैं तो यक़ीनन हमें बिक जाना है   अब तो  कम दुखता है    दिल टीस कहाँ होती है  शोख यादें भी नहीं  जो है शरीफ़ाना  है  वो तो साहब हैं उतरते हैं सिपाही लेकर  हम मुलाजिम हैं तो हमसे उन्हें कतराना है   ज़िंदगी  जीना बहरहाल सहल सा है अमल  अलमिया ये है के मुश्किल से पेश आना है   एक सूरत है के ख़ुशबू में बदल जा 'कुंदन' तू न जाएगा मगर तुझको वहाँ जाना है   *******************************