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जुलाई, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

विष्णु नागर की कविताएँ

विष्णु नागर की कविताएँ  किनमें हो तुम ? अब बोलने वाले कम हैं चुप रहने वाले ज्यादा समर्थन करने वाले सबसे ज्यादा बोलकर चुप हो जाने वाले भी कम नहीं वह वक्त भी आ सकता है जब चुप रहने वाले समर्थन में आ जाएँ समर्थन करने वाले हत्यारे हो जाएँ जब हत्यारे खुश होकर लाशों के ऊपर नाचें और जो यह देख कर रोने लगे चीख पड़े , बेहोश हो जाए भय से काँप- काँप जाए उसे निपटाकर बैंड बाजों के साथ आगे आगे ही आगे निकल जाएँ अनंत तक छा जाएँ इसलिए बोलनेवाले कम न हों चुप रहने वाले ज्यादा न हों   देखना तुम किनमें हो।       ***         जो होता है ,  सो होता है   जैसे जीएम ,  जीएम होता है   जैसे डीएम ,  डीएम होता है   जैसे सीएम ,  सीएम होता है   वैसे पीएम भी पीएम होता है जो भी हो ,  जैसा भी हो   पीएम तो भई पीएम ही होता है   केसरिया हो ,  तिरंगा हो   हरा हो ,  पीला हो ,  नीला हो   यहाँ तक कि पूरा का पूरा सफ़ेद हो ,  भूरा हो   होता है ,  तो फिर होता है   टटपुँजिया हो ,  घटिया हो ,  नकचढ़ा हो   आलतू हो ,  फालतू हो ,  सेल्फ़ी हो   दिमाग़ से पैदल हो   उसे साइकिल

अनीश अंकुर का लेख- मोनालिसा की मुस्कान- यूनिटी ऑफ अपोजिट्स

अनीश अंकुर का लेख- मोनालिसा की मुस्कान- यूनिटी ऑफ अपोजिट्स      ‘ मोनालिसा ’ चित्रकला में एक प्रतिमान बन चुका है। इस पेंटिंग , ‘‘ ला गियोकोंडा ’’ जिसका लोकप्रिय नाम ‘‘ मोनालिसा ’’ है , ने कलाप्रमियों की कई पीढ़ियों को अपनी रहस्यपूर्ण गुणों से अभिभूत कर रखा है। कहा जाता है कि अब जो चित्र दिखाई पड़ता है मौलिक चित्र से भिन्न है। पुराना चमकीला , चटख रंग अब धुंधले भूरे में तब्दील हो गया है। जो मौलिक तस्वीर थी उसमें आकाश , झील और नदी गहरे नीले रंग से बनाया गया था। लियोनार्दो ने ये आसमानी रंग काफी खर्च कर उस समय अफगानिस्तान से मंगवाया था। लियोनार्दो ने मोनालिसा की पेंटिंग बनाने में चार वर्ष लगाये।   कहा जाता है पैगम्बर का कोई अपना मुल्क नहीं होता। इटली के लियोनार्दो ने अपने जीवन के अन्तिम 10 साल फ्रांस में व्यतीत किए। लियोनार्दो को फ्रांस में नायक की तरह सम्मान दिया जाता। इसी दौरान लियोनार्दो ने अपना मशहूर ‘ सेल्फ पोट्रेट ’ बनाया। लियोनार्दो ने अपनी ‘ मोनालिसा ’ पेंटिंग को उसके बनने के बाद भी 16 वर्षों तक अपने साथ ही रखा। क्योंकि जिसके लिए वो बनाया , उसे दिया नहीं गया या ; उसने ये ऐ

सन्तोष चतुर्वेदी की कविताएँ

सन्तोष चतुर्वेदी की कविताएँ        गेंदे के फूल   ठण्ड की लय थोड़ी मद्धिम पड़ी है सूरज के ताप की धुन परवान चढ़ने लगी है धीरे धीरे   जीवन के एकरस सन्नाटे को तोड़ते गेंदे के फूल खिल उठे हैं अपनी भीनी भीनी सी महक लिए   हरे भरे पौधों की हरियाली के वृन्त पर सज रहे हैं एक धुन सरीखी बज रहे हैं लाल , पीले , केसरिया आभा वाले फूल   बेहिचक कहा जा सकता है यह गेंदे के फूल का मौसम है   कुछ बच्चों ने अपने बैडमिंटन की चिड़िया बना लिया है इन्हें बैडमिंटन की ठोकर खा खा कर   रेशा रेशा   छितरा जा रहे इस तरह जैसे देवताओं ने खुश हो   आसमान से बरसाई हो फूलों की पंखुड़ियां इस तरह बच्चे फूलों को बना दे रहे हैं खेल के सामान की तरह कि यह दुनिया खेल खेल में कितना सफर तय कर आयी है   ये गेंदे के फूल हैं कुछ वक़्त के लिए ही फूलते हैं फूलना ही जैसे जीवन लक्ष्य है इनका   फूल कर खुद को कुछ नया करते हैं खिल कर खुद को कुछ पुराना करते हैं यही तो जीवन है यही तो दुनिया   गेंदे के फूल है तमाम फूलों की तरह   इनमें कभी फल नहीं आते फिर भी कोई शिकन नहीं